[अरविंद कुमार सिंह]। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट 2019-20 में संकेत दे दिया है कि भारतीय रेल जिन गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है, उसे दूर करने के लिए 2030 तक 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश की दरकार है। दरअसल रेलवे की हैसियत अब पहले जैसी नहीं रही। वर्ष 2017 में रेल बजट को आम बजट में समाहित करते समय सरकार ने दावा किया गया था कि उसकी अलग पहचान बरकरार रहेगी। रेलवे को मिलने वाली सहायता में कमी नहीं आएगी। लेकिन पूरे बजट भाषण में भारतीय रेल चंद लाइनों में सिमट कर रह गई है।

फिर भी केंद्रीय परिवहन ढांचे में रेलवे को अन्य साधनों की तुलना में अधिक तवज्जो देना मजबूरी है, क्योंकि भारतीय रेल इस विशाल देश की लाइफ लाइन अब भी बनी हुई है। अपने 18 क्षेत्रीय रेलों और 67,368 किमी रेल लाइन नेटवर्क से यह देश का सबसे बड़ा नियोजक और परिवहन का मुख्य आधार स्तंभ बनी हुई है। माल ढुलाई में भी यह अमेरिका, चीन व रूस के साथ एक बिलियन टन के क्लब में 2010 से ही शामिल है।

तमाम उपायों के बावजूद भारतीय रेल रफ्तार में फिसड्डी
हाल के वर्षो में भारतीय रेल ने सुरक्षा और संरक्षा पर खास ध्यान दिया है, जिसका असर दिख रहा है। आर्थिक समीक्षा 2018-19 में रेल दुर्घटनाओं में आई अप्रत्याशित गिरावट को रेखांकित करते हुए माल ढुलाई राजस्व में 5.33 फीसद बढ़ोतरी के साथ कई उपलब्धियों का बयान किया गया था। वर्ष 2018-19 के दौरान सुरक्षा और संरक्षा मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई जिससे ट्रेनों के टकराने के मामले शून्य हो गए और रेलगाड़ियों के बेपटरी होने की घटनाओं में कमी आई।

रेलवे ने 2018-19 में 1159.55 मिलियन टन माल ढुलाई की जो पहले की तुलना में 61.84 मिलियन टन अधिक है। रेल यात्रियों की संख्या भी आशानुरूप नहीं बढ़ी। संरक्षा कोष बनाने के कई फायदे सामने आए हैं। टक्कर रोधी उपकरणों की स्थापना, ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम की पहल के साथ सिग्नलिंग प्रणाली के आधुनिकीकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। बावजूद, आज भी भारतीय रेल रफ्तार में फिसड्डी बनी हुई है। एक्सप्रेस गाड़ियों की औसत रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा है, जबकि ईएमयू 40 और पैसेंजर की 36 किमी है। मालगाड़ी की रफ्तार 25 किमी से ज्यादा नहीं है।

ऐसे बढ़ेगी ट्रेनों की रफ्तार
इस दिशा में खास प्रगति के लिए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर सबकी निगाह है। हालांकि आंशिक रूप से इसकी शुरूआत इसी वर्ष हो जाएगी, लेकिन इसे पूरा होने में तीन-चार वर्ष और लगेगा। इसके बन जाने पर दिल्ली-मुंबई के बीच जो कंटेनर 15 दिनों में पहुंचता है, वह 24 घंटे में पहुंचने लगेगा। इससे यात्री गाड़ियों की रफ्तार भी बढ़ेगी। समग्र रेल नेटवर्क को विद्युतीकृत करने की दिशा में आगे बढ़ना रेलवे के लिए फायदेमंद हो सकता है। इस पर 32,591 करोड़ रुपये का व्यय होना है। अभी हमारे पास 35,488 किमी विद्युतीकृत रेलमार्ग है। संपूर्ण रेलमार्ग विद्युतीकृत होने से काफी डीजल बचेगा और ईंधन बिल में सालाना 13,510 करोड़ की बचत होगी।

बुरी दशा में है 40 फीसद रेलवे नेटवर्क
बीते सालों में रेलवे में कुछ सुधार दिख रहे हैं। लेकिन सामाजिक सेवा दायित्व और लागत बढ़ते रहना चिंताजनक बना हुआ है। रेल मंत्रलय ने 2015-16 में रेलवे में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पांच साल में 8.56 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना बना कर जो प्राथमिकताएं तय कीं उसका भी अच्छा असर हुआ है। लेकिन इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि 40 फीसद रेलवे नेटवर्क बुरी दशा में है। इसी पर लगभग 80 फीसद यातायात चल रहा है। लिहाजा अनुरक्षण के लिए समय देने, बेहतर उत्पादकता एवं संरक्षा के लिए इन्हें अपग्रेड किए जाने और इनकी क्षमता का विस्तार किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।

यात्री और माल ढुलाई बढ़ने के बावजूद घटे कर्मचारी
समग्र रूप से भारतीय रेल जिस तरह चरमरा रही है और दबावों से जूझ रही है, उस लिहाज से भविष्य की ठोस योजना और दिशा बजट में नजर नहीं आ रही है। रेलवे का परिचालन अनुपात भी लगातार बढ़ रहा है, जो रेलवे की सेहत के लिए ठीक नहीं है। बीते एक दशक में रेलवे में कर्मचारियों की संख्या में करीब नौ फीसद की कमी आई है, जबकि यात्री और माल यातायात काफी बढ़ा है। तमाम रेल परियोजनाएं भारी लेट लतीफी का शिकार हैं। इनमें से 204 रेल परियोजनाओं की लागत 1.82 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई है। इस समय रेलवे के पास 183 नई लाइन, 57 आमान परिवर्तन और 263 लाइन दोहरीकरण समेत कुल 503 परियोजनाएं विभिन्न अवस्थाओं में प्रगति पर हैं। इन पर भारी लागत की दरकार है। इन सारे तथ्यों को देखते हुए माना जा सकता है कि रेलवे को और संसाधनों की आवश्यकता है।

आमूलचूल सुधार की आवश्यकता
शुक्रवार को संसद में प्रस्तुत बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की पूरी कोशिश रही कि वंचित वर्ग के लोगों की आकांक्षाओं को अधिक से अधिक पूरा किया जाए और सक्षम लोगों से कर की उगाही के तरीकों को बढ़ाया जाए। हालांकि इसमें कामयाबी कितनी मिल पाएगी यह आने वाला वक्त बताएगा। भारतीय रेल देश की जीवन रेखा समझी जाती है। इसकी दशा में आमूलचूल सुधार की आवश्यकता है, क्योंकि बीते कुछ वर्षो से इसमें जरूरत के मुताबिक निवेश नहीं हो पाया है।

अरविंद कुमार सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार भारतीय रेल)