गलवन घाटी में चीन की कायरतापूर्ण हरकत

चीन की कायराना हरकत: कोरोना के चलते विश्व बिरादरी के लामबंद होने से चीन की शक्ति में कमी नहीं आने वाली 

[ दिव्य कुमार सोती ]: गलवन घाटी में चीन की कायरतापूर्ण हरकत को समझने के लिए अतीत पर नजर डालना आवश्यक है। चीन इस तरह की हरकतें पहले भी करता आ रहा है-न केवल भारत, बल्कि अन्य देशों के विरुद्ध। 2 मार्च, 1969 को तत्कालीन सोवियत संघ और चीन की सीमा पर उसूरी नदी के झेनबाओ द्वीप पर सोवियत सैनिकों ने एक चीनी सैनिक टुकड़ी को नारे लगाते हुए अपनी ओर आते देखा। वे निहत्थे थे। सोवियत सैनिकों के पास आने पर निहत्थे चीनी सैनिक अचानक लेट गए। उनके पीछे हथियारबंद चीनी सैनिकों की एक दूसरी टुकड़ी थी। उसने फायरिंग शुरू कर दी।

जब सोवियत सेना ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया था

हालांकि सोवियत सेना ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया, लेकिन उसे खासा नुकसान उठाना पड़ा। इस घटना के चलते दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ डटी थीं। इस हमले को खुद माओत्से तुंग ने इसलिए मंजूरी दी थी ताकि सोवियत नेताओं को बताया जा सके कि वे कम्युनिस्ट दुनिया के अकेले सुल्तान नहीं हैं और सांस्कृतिक क्रांति की उथल-पुथल के बाद भी चीन ताकतवर है।

गलवन नदी के तट पर चीनी सैनिकों ने किया बर्बर हथियारों से भारतीय सैनिकों पर हमला

15 जून को लद्दाख में गलवन नदी के तट पर भारतीय सैनिकों पर किए गए चीनी हमले को सोवियत सेना पर चीन के घात लगाकर किए गए हमले के प्रकाश में अच्छे से समझा जा सकता है। गलवन में भी जब कर्नल संतोष बाबू दोनों देशों के बीच बनी सहमति का उल्लंघन कर रहे चीनी सैनिकों को समझाने पहुंचे थे तो उन्होंने पाया था कि रोजाना तैनात रहने वाले चीनी सैनिक बदल चुके थे और उनकी जगह नए सैनिक ले चुके थे। उन्होंने ही यकायक बर्बर हथियारों से हमारे सैनिकों पर हमला किया।

चीन के भय की कहानी बालाकोट में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई से शुरू होती है

चीन के कम्युनिस्ट तंत्र में यह संभव ही नहीं कि गलवन हमले की पटकथा बीजिंग में शीर्ष स्तर पर न लिखी गई हो। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य जमावड़े के पीछे शी चिनफिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सामरिक एवं भूराजनीतिक उद्देश्यों, भय और उनके रक्षा सिद्धांत को समझना आवश्यक है। चीन के भय की कहानी पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई से शुरू होती है, जिसने यह साफ किया कि पाकिस्तानी परोक्ष युद्ध के जवाब में नियंत्रण रेखा के पार भी भारतीय सैन्य हस्तक्षेप संभव है। बालाकोट के जरिये भारत ने खुद पर लगाई पाबंदी तोड़ दी थी।

लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने से चीन को लगा झटका

इसके बाद अनुच्छेद 370 की समाप्ति और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने से भी चीन को झटका लगा। भारत गिलगित-बाल्टिस्तान में बनाए जा रहे चीन-पाक आर्थिक कॉरिडोर को भारतीय जमीन पर अवैध निर्माण बताता रहा, पर चीन में इसे राजनीतिक बयानबाजी ही समझा गया, लेकिन इन ठोस कदमों को बीजिंग ने गंभीरता से लिया।

चीन अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत बताकर उस पर अपना दावा करता है

हर साल होने वाली चीनी घुसपैठ खासकर 2013 में देपसांग के मैदानों में हुई चीनी सेना की लंबी घुसपैठ के मद्देनजर केंद्रीय कैबिनेट ने एक आक्रामक माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन को मंजूरी दी थी। अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा से ठीक पहले यह कोर उत्तर पूर्व में अपने पहले युद्ध अभ्यास ‘ऑपरेशन हिमविजय’ की घोषणा कर चुकी थी। यह कोर सेना के नए इंटीग्रेटेड बैटेल ग्रुप्स की संकल्पना को पहाड़ी क्षेत्रों में व्यावहारिक धरातल पर उतारने जा रही थी। इसकी खबर लगते ही चीन द्वारा अनौपचारिक रूप से आपत्ति दर्ज कराई गई। भारत दौरे पर आए चीनी उप विदेश मंत्री से जब पूछा गया कि अरुणाचल में भारतीय सेना द्वारा किए जा रहे इस युद्धाभ्यास पर उन्हें क्या कहना है तो उनका जवाब था कि वह अरुणाचल शब्द ही नहीं सुनना चाहते। दरअसल चीन अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत बताकर उस पर अपना दावा करता है।

भारत की सशक्त होती राजनीतिक इच्छाशक्ति, सैन्यशक्ति से चीन के लिए सैन्य दबाव

चीन यह महसूस कर रहा है कि भारत की सशक्त होती राजनीतिक इच्छाशक्ति, सैन्यशक्ति और सीमा पर मजबूत होते इन्फ्रास्ट्रक्चर के चलते उसके लिए सैन्य दबाव उत्पन्न होने वाला है। शायद उसने लद्दाख के रणनीतिक रूप से संवेदनशील इलाकों में नए सैन्य मोर्चे इसीलिए खोले कि अगर भारत पाक अधिकृत कश्मीर या गिलगित-बाल्टिस्तान की ओर कदम बढ़ाए तो पूर्वी लद्दाख में दूसरा मोर्चा खोला जा सके।

भारत की सैन्य स्थिति काफी मजबूत है

1962 युद्ध के अगले ही साल चीन ने काराकोरम दर्रे के पार शक्स्गाम घाटी का इलाका पाकिस्तान से हस्तांतरित करा लिया था। वहां चीन ने काराकोरम हाइवे जरूर बनाया, पर उसकी रक्षा करने में चीनी सेना की स्थिति बहुत सशक्त नहीं है, जबकि काराकोरम दर्रे के दक्षिण में दौलत बेग ओल्डी और पूरे सब सेक्टर नॉर्थ में भारत की सैन्य स्थिति काफी मजबूत है। सियाचिन पर नियंत्रण के चलते भी भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान, दोनों की सेनाओं के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है। चीन देपसांग के मैदानों में घुसपैठ करके भारत की सैन्य शक्ति को काराकोरम के दक्षिण में ही बांधने की कोशिश में है।

चीनी सैन्य जमावड़े के बीच गिलगित-बाल्टिस्तान में पाक फौज की तैनाती बढ़ी

संदेश यह भी है कि भारत द्वारा अपनी जमीन वापस लेने की कोशिश में उस पर दो तरफ से हमला किया जाएगा। चीनी सैन्य जमावड़े के बीच गिलगित-बाल्टिस्तान में पाक फौज द्वारा तैनाती बढ़ाए जाने की भी खबरें हैं। कुल मिलाकर चीन यह जताने में जळ्टा है कि कोरोना के चलते विश्व बिरादरी के उसके विरुद्ध लामबंद होने से भी उसकी शक्ति में कमी नहीं आने वाली और वह सबसे निपट सकता हे।

प्रतिद्वंद्वी देशों के विरुद्ध कार्रवाई तब करनी चाहिए जब वे आपको कमजोर समझे

यह दिखाने के लिए ही वह भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि के विरुद्ध आक्रामक है। यह व्यवहार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के उस रक्षा सिद्धांत के अनुरूप है जिसके अनुसार प्रतिद्वंद्वी देशों के विरुद्ध कार्रवाई तब करनी चाहिए जब वे आपको कमजोर समझ रहे हों।

वैश्विक संकटों का लाभ उठाना भी चीन की आदत है

वैश्विक संकटों का लाभ उठाना भी चीन की आदत है। चीन में कम्युनिस्टों के सत्ता में आने के दो साल के भीतर ही चीनी सेना 1950 के कोरिया युद्ध में उस अमेरिका से भिड़ गई थी, जिसने पांच साल पहले ही जापान पर परमाणु बम गिराए थे। उस समय कमजोर चीन गृह युद्ध के चलते भुखमरी से जूझ रहा था।

1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया तब विश्व का ध्यान क्यूबा मिसाइल संकट की ओर था

1962 में भी जब चीन ने भारत पर हमला किया तब विश्व का ध्यान क्यूबा मिसाइल संकट की ओर था। 1969 में सोवियत संघ के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई भी यही दिखाने के लिए थी कि वह कमजोर नहीं पड़ा। अगर भारत यह साबित कर देता है कि चीनी आक्रामकता को रोका जा सकता है तो एशिया में चीन की दादागीरी से पीड़ित देश भारत की छत्रछाया में आ जाएंगे।

चीनी सेना को कोई झटका लगता है तो चिनफिंग की नीतियां सवालों के घेरे में होंगी 

अगर भारत से टकराव में चीनी सेना को कोई झटका लगता है तो चिनफिंग की नीतियां सवालों के घेरे में होंगी और कम्युनिस्ट पार्टी में भी उथलपुथल होगी। साफ है कि भारत के पास विश्व इतिहास की धारा मोड़ने का सुनहरा मौका है।

( लेखक काउंसिल फॉर स्ट्रेटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं )