इलाहाबाद, लालजी जायसवाल। Cyber frauds in India: देश में वित्तीय सेवाएं लेने वाले अधिकांश ग्राहकों ने डिजिटल बैंकिंग को अत्यंत उत्साह के साथ अपनाया, लेकिन चिंता की बात यह है कि बैंकिंग फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा शिकार भी उन्हें ही होना पड़ा। निश्चित तौर पर साइबर सुरक्षा को लेकर सदा से सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन इस सवाल का कोई ठोस जवाब आज भी प्राप्त नहीं हो सका है। यूं तो भारत सरकार डिजिटल भारत की ओर कदम दर कदम बढ़ाती जा रही है, लेकिन आज भी साइबर सुरक्षा की दीवार के लिए एक ईंट भी ठोस तरीके से नहीं रख सकी है। जहां एक तरफ भारत डिजिटल दुनिया की सैर कर रहा है तो दूसरी तरफ डिजिटल दुनिया के अपराधी अपनी जड़ें मजबूती से जमाते जा रहे हैं।

डिजिटल भारत : आज सबसे पहली आवश्यकता इस बात की है कि बैंकिंग फ्रॉड से बचाव के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक किया जाए। निश्चित तौर पर हम डिजिटल भारत की ओर बढ़ तो रहे हैं, जैसा कि इकोनॉमिक सर्वे 2020-21 रिपोर्ट कहती है और बजट 2020-21 में डिजिटल गांव की अवधारणा को साकार करने बाबत एकमुश्त राशि का प्रावधान भी किया गया है तथा ‘भारत नेट’ के जरिये गांवों को ब्रॉडबैंड कनेक्शन से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।

धोखाधड़ी के बढ़ते चलन : आज गांवों में एक छोटी दुकान पर भी ऑनलाइन पेमेंट का माध्यम उपलब्ध होता है। लेकिन हम सब आज इस डिजिटल तकनीक के अपहरण का शिकार होते जा रहे हैं। क्या कभी हमने इससे अपनी पुख्ता सुरक्षा की चिंता की? क्या कहीं इस धोखाधड़ी के बढ़ते चलन पर कोई विशेष कदम उठाने की बात सुनी अथवा कोई डिजिटल अपराध को नियंत्रण करने बाबत किसी संबंधित आयोग की बात सुनी? आखिर हम यह क्यों नहीं सोचते हैं कि किसानों को डिजिटल दुनिया से तो जोड़ रहे हैं, लेकिन उनको डिजिटल फ्रॉड का शिकार होने से बचाने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं।

नए नए तरीकों से हो रही धोखाधड़ी : हाल के दिनों में साइबर धोखाधड़ी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं जिसमें अपराधी, लोगों के बैंक अकाउंट से लाखों की ठगी को सरलता से अंजाम देता है। आज अपराधियों के फ्रॉड का तरीका भी नवाचारी हो गया है। जहां पहले अपराधी किसी भी बैंक ट्रांजेक्शन के लिए बैंक खाता धारक के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेज कर अपनी किसी चालबाजी से ओटीपी को प्राप्त कर खाता धारक के खाते में जमा रकम पल भर में खाली कर देता था, वहीं आज अपराध का तरीका पहले से कुछ बदला प्रतीत होता है।

वर्तमान में अपराधी अनेक एप आदि के माध्यम से खाता धारक को लालच देकर एक बड़ी राशि का रिक्वेस्ट मैसेज भेजता है और व्यक्ति को फोन कर उसे एक्टिवेट करने पर रिवॉर्ड मिलने की बात करता है। जैसा कि मनुष्य स्वभाव से ही लालची प्रकृति का होता है, वह अपराधी के रिक्वेस्ट को एक्टिवेट कर देता है। इस प्रकार वह धोखाधड़ी करने वाले व्यक्ति के बनाए हुए जाल में फंस जाता है। बहरहाल आपके जेहन मे एक सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था क्यों नहीं की जाती है?

लगातार बढ़ रहे फ्रॉड के मामले : आरबीआइ की रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल लेनदेन के चलते वर्ष 2018- 19 में 71,543 करोड़ रुपये का र्बैंंकग फ्रॉड हुआ है। इस अवधि में बैंक फ्रॉड के 6,800 से अधिक मामले सामने आए। वर्ष 2017-18 में बैंक फ्रॉड के 5,916 मामले सामने आए थे। इनमें 41,167 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी हुई थी। पिछले 11 वित्त वर्ष में बैंक फ्रॉड के कुल 53,334 मामले सामने आए हैं, जबकि इनके जरिये 2.05 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है। परिणामस्वरूप आज कुछ स्थायी उपाय किए जाने की दरकार है जिसमें लोगों को साइबर सुरक्षा के प्रति अधिक से अधिक जागरूक किया जाए।

आज प्रत्येक डिजिटल उपभोक्ता को ‘फिशिंग’ व ‘विशिंग’ से सावधान रहना होगा। दरअसल फिशिंग ऐसी ईमेल को कहते हैं जो बैंक या किसी लोकप्रिय शॉपिंग वेबसाइट या संस्थान से भेजी हुई लगती हैं। इनसे ग्राहक की व्यक्तिगत जानकारियां हासिल करने की कोशिश की जाती है। इन पर दिए गए लिंक को क्लिक करने पर वास्तविक जैसी दिखने वाली नकली वेबसाइट खुल जाती है। उस पर अपना यूजर आइडी और पासवर्ड दर्ज करते ही आपकी ऑनलाइन सुरक्षा पर खतरा बढ़ जाता है। इससे मोबाइल नंबर, लॉग-इन आइडी, पासवर्ड, डेबिट कार्ड संबंधी जानकारी, सीवीवी, जन्म तिथि, मां का प्रथम नाम जैसी अहम जानकारियां चोरी की जा सकती हैं।

अज्ञात स्नोतों से प्राप्त ईमेल, कॉल और एसएमएस के प्रति सतर्क रहना चाहिए। साथ में सभी लोगों को जागरूक किया जा सके, इसके लिए जरूरत इस बात की है कि ग्रामीण पंचायतों में एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाए जो ग्रामवासियों को डिजिटल मिशन के प्रति प्रेरित भी करें और धोखाधड़ी से अपने धन की सुरक्षा के उपाय बाबत पुख्ता प्रशिक्षण भी किसानों, मजदूरों अथवा कम शिक्षित लोगों को प्रदान करें।

साथ ही सरकार को भी चाहिए कि यूपीआइ के माध्यम से ऐसे सभी एप में जिन्हें मुद्रा के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है उसे पूरी तरह समाप्त कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि आज इस तरह के फर्जीवाड़े का मुख्य केंद्र बिंदु यही बनता नजर आ रहा है। साथ में सुरक्षा की एक ऐसी दीवार का निर्माण करे जिसे भेद पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो, तभी वास्तव में डिजिटल भारत का अभियान सफल माना जा सकेगा।

[अध्येता, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]