प्रदीप गुप्ता : महाराष्ट्र विधानसभा में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने बहुमत परीक्षण की परीक्षा पास कर ली। इससे पहले रविवार को विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी ताकत दिखाई। पहली बार विधायक बने भाजपा के राहुल नार्वेकर विधानसभा अध्यक्ष चुन लिए गए। बीयर की फैक्ट्री में काम करने और फिर आटो चलाने से लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास के सबसे शक्तिशाली चेहरों में से एक बनने तक एकनाथ शिंदे ने एक लंबा सफर तय किया है। बाल ठाकरे को अपना गुरु मानने वाले एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व के लिए हमेशा एक उत्साह के साथ संयुक्त मराठा पहचान पर जोर दिया। सतारा छोड़ने के बाद ठाणे उनका गढ़ बन गया। सही अर्थों में एक जनप्रतिनिधि के तौर पर जनता से जुड़े एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करके भाजपा ने कई राजनीतिक लाभ हासिल किए हैं। अक्सर उच्च जातियों की पार्टी होने का आरोप झेलने वाली भाजपा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के साथ न केवल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले महाविकास आघाड़ी गठबंधन को करीब-करीब खत्म करने में कामयाब रही, बल्कि आगामी बीएमसी चुनावों के लिए भी अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल रही।

एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से महाराष्ट्र में जनादेश का भी पालन हुआ। सवाल पूछे जा रहे हैं कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोही धड़े ने उद्धव ठाकरे से खुद को कैसे अलग किया या फिर इस विद्रोह के क्या कारण रहे? इन कारणों में सबसे महत्वपूर्ण रहा-एकनाथ शिंदे और जमीनी स्तर के शिवसेना कार्यकर्ताओं का पार्टी आलाकमान के प्रति असंतोष।

वास्तव में 2019 में जब शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़कर लंबे समय से अपनी राजनीतिक दुश्मन कही जाने वाली राकांपा और कांग्रेस से हाथ मिलाया तो उसके जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष की एक अंतर्धारा देखी गई। इसे ठाकरे परिवार महसूस नहीं कर सका। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों में पार्टी के अंदर उनके बेटे आदित्य ठाकरे के प्रति असंतोष उपजने लगा, जो सरकार में एक कनिष्ठ मंत्री थे। आरोप यह भी लगा कि आदित्य ठाकरे दूसरे मंत्रालयों के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे थे। पार्टी के विधायक किनारे किए जाने लगे। शिवसेना के कोटे के मंत्रियों की बात भी नहीं सुनी जा रही थी। स्पष्ट है कि इससे उनमें नाराजगी बढ़ने लगी। ऐसे तमाम अंसतुष्ट मंत्रियों और विधायकों ने एकनाथ शिंदे का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। चूंकि उद्धव ठाकरे बाल ठाकरे के आदर्शों से समझौता करते नजर आ रहे थे, इसलिए शिंदे की राह और आसान हो गई। महाराष्ट्र में तख्तापलट से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि शिवसेना आलाकमान न केवल आम आदमी की भावना से दूर था, बल्कि अपने ही कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली समस्याओं से भी अनजान था।

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन को छिन्न-भिन्न करके और उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करके भी भाजपा इस आलोचना का सामना करने से बच गई कि वह सत्ता की भूखी है और 'मराठा माणूस' की परवाह नहीं करती, क्योंकि उसने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। एकनाथ शिंदे को आगे कर भाजपा ने यह भी सुनिश्चित किया कि हालिया घटनाक्रम का फायदा आगामी बीएमसी चुनावों और फिर लोकसभा चुनावों में भी मिले।

एकनाथ शिंदे अब 'मूल शिवसेना' के रूप में एक नए अवतार में सामने आने की कोशिश करेंगे। उन्होंने हमेशा शिकायत की कि उद्धव ठाकरे वैचारिक रूप से प्रतिकूल प्रकृति वाले राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करके हिंदुत्व की विचारधारा को कमजोर कर रहे हैं। यह सब आम मराठा को प्रभावित करेगा। एकनाथ शिंदे एक मराठा नेता हैं और वह अपनी पार्टी को क्षेत्रीय राजनीति में बढ़त दिलाने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

मुख्यमंत्री पद नहीं लेने का भाजपा का फैसला एक बड़ी जंग जीतने के लिए एक छोटा मुकाबला हारने के तौर पर देखा जाना चाहिए। अपने ऊपर लगाए जा रहे तमाम आरोपों का पूरी तरह मुकाबला करते हुए भाजपा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी विजेता बनकर उभरी है। देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री नियुक्त करके उसने सरकारों को गिराने के आरोपों पर भी विराम लगा दिया। भाजपा ने महाराष्ट्र की जनता को यही संदेश दिया कि शिंदे गुट केवल भाजपा द्वारा समर्थित है और सरकार तो शिवसेना की ही है।

यह संदेश देने में भी कामयाब रही कि शिवसेना में हुई बगावत भाजपा के हस्तक्षेप से अधिक स्वतंत्र आंतरिक विद्रोह का परिणाम है। एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री का पद देने के साथ उन स्थितियों का भी ध्यान रखा गया, जिनमें महाविकास आघाड़ी गठबंधन द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता था और पार्टी में वापस आने के लिए प्रेरित किया जा सकता था। शिवसेना में विद्रोह यही बताता है कि किसी दल को विचारधारा से समझौते की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

यह भी ध्यान रहे कि उद्धव ठाकरे ने खुद कुर्सी संभाली, जबकि बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी और नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाया था। आने वाले समय में यह तय है कि एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के खिलाफ

पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के लिए लड़ेंगे। यह समय बताएगा कि वह ठाकरे परिवार से शिवसेना को मुक्त करने में सफल हो पाते हैं या नहीं, लेकिन यह तय है कि उद्धव ठाकरे की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। इसी कारण फिलहाल शिंदे-फडणवीस टीम के लिए राह बेहद आसान नजर आ रही है।

(लेखक एक्सिस माई इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक हैं)