[ हर्ष वी पंत ]: इन दिनों करतारपुर गलियारे की चर्चा भारत में भी है और पाकिस्तान में भी। इस चर्चा ने बीते दिनों कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए आत्मघाती हमले को विमर्श से बाहर भले कर दिया हो, लेकिन उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा, ‘पाकिस्तानी सैन्य बलों के साथ ही हम चीनियों को भी दमनकारी मानते हैं।’ हमले की कड़ी निंदा करते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने व्यापक जांच के आदेश दिए। उन्होंने इसे ‘पाकिस्तान और चीन के आर्थिक एवं सामरिक हितों को चोट पहुंचाने की साजिश का हिस्सा’ बताया। उन्होंने दावा किया कि ‘ऐसे वाकये कभी भी पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में आड़े नहीं आएंगे जो रिश्ता हिमालय से ऊंचा और अरब सागर से गहरा है।’पाकिस्तान के अशांत प्रांत बलूचिस्तान में चीनी परियोजनाओं और चीनी नागरिकों पर हमले का यह पहला प्रयास नहीं था।

चीन ने जबसे बलूचिस्तान में अपनी पैठ बढ़ाई है तबसे हमलों की ऐसी शृंखला चल रही है। अगस्त की शुरुआत में आत्मघाती हमलावर ने चीनी इंजीनियरों को घायल कर दिया था। बीते कुछ वर्षों में चीनी हितों को लगातार निशाना बनाया गया है। इसके बावजूद पाकिस्तान पर चीन का भरोसा बना हुआ है। बीजिंग को चीनी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान की क्षमताओं पर संदेह नहीं है। यही बात चीनी निवेश की गारंटी बनी हुई है।

बलूचिस्तान चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी के बीचोंबीच है। यह पाकिस्तान में चीन की सबसे बड़ी निवेश परियोजना है जिसमें 62 अरब डॉलर से अधिक का निवेश होने का अनुमान है। इसे बाजी पलटने वाली योजना करार देते हुए कहा जा रहा है कि यह आर्थिक रूप से पिछड़े हुए क्षेत्र के कायाकल्प करने का माद्दा रखती है। खनिज, गैस और कोयले जैसे संसाधनों से समृद्ध बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यह उतना ही पिछड़ा हुआ भी है। परिणामस्वरूप वहां राजनीतिक असंतोष बढ़ रहा है।

बलूच राष्ट्रवादियों को भी स्थानीय जनता का समर्थन मिल रहा है। वे कहते हैं कि इस्लामाबाद उनका भयंकर शोषण कर रहा है और उसने कभी बलूचिस्तान को उसका वाजिब हक नहीं दिया। सुरक्षा बलों और बलूच राष्ट्रवादियों के बीच जारी मौजूदा संघर्ष ने इस क्षेत्र में सुरक्षा के हालात खतरनाक बना दिए हैं। इससे आर्थिक संभावनाओं पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआइ मुहिम के तहत चीन की योजना अपने पश्चिमी झिनजियांग प्रांत को बलूचिस्तान में अरब सागर पर स्थित ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की है। बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी अन्य परियोजनाओं के विकास के माध्यम से सीपीईसी का मकसद पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाकर देश की आर्थिक संभावनाओं को बेहतर बनाना है। चीनी नीति निर्माता इस पर भी विचार कर रहे हैं कि पाकिस्तान में ऐसा बुनियादी ढांचा विकसित किया जाए जो उसे अरब सागर तक सीधी पहुंच उपलब्ध कराए।

ऐसा इस मकसद से किया जा रहा है कि चीन मलक्का स्ट्रेट की दुविधा से उबर जाए, क्योंकि चीन के कुल तेल का 85 प्रतिशत आयात मलक्का स्ट्रेट के केवल एक मार्ग से ही होता है। परिणामस्वरूप चीन तमाम तरह की परियोजनाएं पाकिस्तान में विकसित कर रहा है। इनके काम के लिए चीनी लोगों की पाकिस्तान में आवक भी बढ़ी है। चूंकि पाकिस्तान पर चीन की निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है तो इस्लामाबाद यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि चीनी परियोजनाओं की सुरक्षा में कोई सेंध न लगे। 2016 में इस परियोजना की शुरुआत में ही पाकिस्तान ने सीपीईसी के लिए दस हजार सुरक्षाकर्मियों के साथ एक विशेष सुरक्षा बल के गठन का निर्णय किया था ताकि अपनी परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित चीन को आश्वस्त किया जा सके।

चीनी परियोजनाओं के समक्ष उत्पन्न हो रही चुनौतियों को देखते हुए यह दावा कमजोर ही साबित हो रहा है। लगातार हो रहे हमले इसकी बानगी हैं। सीपीईसी का जितना संबंध पाकिस्तान के चीन से प्रगाढ़ होते सामरिक संबंधों से है तो उतना ही चीन के अपने इलाके में बढ़ते अलगाववाद और चरमपंथ की निरंतर बढ़ती चुनौती से निपटने के बीजिंग के प्रयासों से भी इसका उतना ही सरोकार है। चीन को उम्मीद है कि पाकिस्तान को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने से वह अपने अशांत इलाकों को शांत करने में सफल होगा, मगर बीते दो वर्षों के दौरान सीपीईसी मुश्किलों के भंवर में फंस गया है। पाकिस्तान में भी केवल बलूच राष्ट्रवादियों में ही आक्रोश नहीं पैदा हो रहा है, बल्कि निवेश परियोजनाओं के आवंटन को लेकर वहां की केंद्रीय सत्ता और राज्यों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं।

पाकिस्तान के आर्थिक संकट से हालात और खराब हो गए हैं। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घट रहा है और भुगतान संतुलन का संकट मुंह बाएं है। देनदारियों को चुकाने के लिए उसे 12 अरब डॉलर के पैकेज की तत्काल दरकार है। इस समस्या को बढ़ाने में सीपीईसी को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान को भारी मशीनरी एवं अन्य उपकरण आयात करने पड़े हैं जिससे उसका विदेशी व्यापार बुरी तरह असंतुलित हुआ है। आर्थिक संकट की वजह से पाकिस्तान को अपनी कई अहम योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा है। इनमें कराची से पेशावर के बीच 8.2 अरब डॉलर की रेल परियोजना भी शामिल है। कई अन्य परियोजनाएं भी इसलिए रोक दी गई हैं ताकि देश पर कर्ज का बोझ कुछ कम हो सके।

शानदार शुरुआत के बाद सीपीईसी के कदम भी अब लड़खड़ा रहे हैं। खुद पाकिस्तान बदली हुई वैश्विक परिस्थितियों से दो-चार हो रहा है। अमेरिका के साथ उसके रिश्ते तल्ख हो रहे हैं। आइएमएफ से मदद की गुहार लगा रहे पाकिस्तान को लेकर ट्रंप प्रशासन आइएमएफ को चेता रहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि पाकिस्तान इस राशि का उपयोग चीनी कर्ज को चुकाने में तो नहीं करेगा। बीआरआइ परियोजनाओं को लेकर कई देश चीन को भी आड़े हाथों ले रहे हैं। थाईलैंड, लाओस, श्रीलंका, मलेशिया और मालदीव जैसे देश चीनी कर्ज की शर्तों को लेकर शिकायत कर रहे हैं।

कर्ज में फंसाने की चीनी तिकड़मों की वैश्विक आलोचना हो रही है और सीपीईसी भी इससे नहीं बच सकता। हालात यही दर्शाते हैं कि भविष्य में चीन-पाकिस्तान आर्थिक रिश्तों की कड़ी परीक्षा होगी और उनकी चुनौतियां बढ़ेंगी। इस दृष्टिकोण से चीन-पाक के रिश्तों में बदलाव अवश्यंभावी हैं।

[ लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं ]