अमेरिकी ट्रेड वार के कारण दवाब में चीन, मौके का फायदा उठाए भारत
अमेरिकी ट्रेड वार और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ चल रहे तनाव से चीन दबाव में है। ऐसे समय में भारत को चीन से मजूबत आर्थिक संबंध स्थापित करने चाहिए। इससे दोनों को लाभ होगा।
नई दिल्ली [शशांक]। कश्मीर मसले को लेकर चीन के आए अलग-अलग बयानों से पता चलता है कि वह भारत-पाकिस्तान में से किसी का बुरा नहीं बनना चाहता है। वह अपने इन बयानों से दोनों को साधने में जुटा है। दोनों देशों के साथ उसके हित जुड़े हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा उभरता हुआ बाजार है। इससे उसको हर साल करीब 53 अरब डॉलर की कमाई होती है।
दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग के साथ आगे बढ़ रहे हैं और मतभेदों को संवेदनशीलता के साथ संभाल रहे हैं। ऐसे में भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते खराब न हों इसलिए वह कश्मीर मसले को द्विपक्षीय संवाद के जरिये सुलझाने की बात करता है। यही नहीं पाकिस्तान के साथ वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू करने से पहले भी चीन ने कहा था कि कश्मीर का विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच का है। दोनों जो फैसला लेंगे वह हमें स्वीकार होगा।
दूसरी बात यह कि दक्षिण चीन सागर की सीमा को लेकर दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ चल रहे विवाद को भी चीन द्विपक्षीय संवाद के जरिये सुलझाने की बात करता है। हालांकि वह इसपर बात करने से बचता है। इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट भी चीन के स्टैंड का विरोध कर चुका है। जबकि कश्मीर मामले में वह यह अच्छी तरह से जानता है कि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने बिना कोई शर्त इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किए थे।
यह बात ठीक है कि कारोबार के नजरिये से चीन भारत से रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहेगा। लेकिन पाकिस्तान के साथ उसके बहुत गहरे हित जुड़े हैं। एक तो पाकिस्तान ने अपने यहां उनको कई सारी परियोजनाओं के लिए जमीन और ग्वादर बंदरगाह तक के लिए रास्ता दे रखा है तो इसकी वजह से चीन पाकिस्तान और वहां मौजूद आतंकी संगठनों को नाराज नहीं करना चाहता है। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र में जब मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने की बारी आई थी तो चीन पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा था।
अमेरिका जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों से पीछे हट गया है तो एशिया के दो सबसे बड़े देश होने के नाते भारत और चीन एशिया में, संयुक्त राष्ट्र में और द्विपक्षीय भी इस मामले को लीड कर सकते हैं। दोनों देशों को उच्च संवाद जारी रखना चाहिए और मजबूत करोबार की ओर ध्यान देने की जरूरत है।
लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं।