नई दिल्ली [डॉक्टर विकास सिंह]। अध्ययन के मुताबिक मैक्रो उपभोक्ता से जुड़े 10 सेक्टरों में से आठ अपने सात साल के औसत से नीचे हैं। ये सेक्टर औद्योगिक क्षेत्र पर सीधे प्रतिकूल असर डाल रहे हैं। इससे कुल मिलाकर बाजार में मांग बहुत सुस्त हो चुकी है। ये चिंता की बात है। इसी के सामांतर अन्य बातें भी प्रतिकूल हैं। मूलभूत संकेतक जैसे कीमत सिग्नल (मांग बनाम आपूर्ति) गिर रही है। आर्थिक वृद्धि के चार प्रमुख सहभागी कारक, निजी निवेश, सरकारी खर्च, घरेलू खपत और निर्यात में गिरावट है।

भारत को नए सुधारों की जरूरत है और इसे प्राथमिकता में रखना होगा। इस चुनौती को सामना करना आसान नहीं है। खासतौर पर सार्वजनिक वित्त पर दबाव और बड़े प्रोत्साहन पैकेज के लिए सीमित राजकोषीय स्थिति को देखते हुए। बजट से भी आगे ट्रिलियन डॉलर का सवाल है कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए राजकोषीय धन की गठरी के तार किस हद तक ढीले होंगे। अधिकांश इस विडंबना से नहीं भाग सकते हैं कि राजकोषीय घाटे पर स्वयं द्वारा लगाई सीमा के जरिए वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष को पुनर्जीवित करने के लक्ष्य के साथ कर राजस्व को 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है।

कॉरपोरेट टैक्स में कमी लाना एक गेम चेंजिंग रिफॉर्म है। हालांकि कर कटौती की आपूर्ति पक्ष से संबंधित अपनी अनिश्चितताएं हैं। मुनाफा उतना हो नहीं रहा है लिहाजा निवेश की भी सूरत नहीं नजर आती। अगर इसमें थोड़ा बहुत कुछ ग्रोथ को पुनर्जीवित करने की गुंजायश बनती है तो चुनौतियां और गहराती जाती हैं।नीति निर्माताओं के लिए यह ध्यान रखना अच्छा होगा कि जब कोई किसान या मजदूर किसी दुकान में जाता है और खरीदारी करता है तो वह बिक्री और खरीद की एक शृंखला शुरू करता है। इसमें कई मंच शामिल होते हैं, जो अपने साथ कई वित्तीय संस्थानों को शामिल करते हुए निर्माताओं से विनम्र खरीदार तक हर स्तर पर मूल्य जोड़ते हैं। धन का आदान-प्रदान और वस्तुओं का प्रवाह और इससे जुड़े लाभ जीडीपी में जुड़ते हैं। यह चेन कमजोर हो रही है। हमारी अर्थव्यवस्था में अवरोध आ गया है। इस गतिरोध को दूर करने के लिए सरकार खुले हाथ से पैसे खर्च करे और उपभोक्ताओं की जेब में उसे डाले।

जीएसटी कर की दर मांग पक्ष को पूरी करेगी। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनता के हाथ में अधिक धन रहे। आर्थिक विकास को शुरू करने का एकमात्र तरीका मांग पक्ष को मजबूत करना है। बजट आवंटन के लिए शोर ज्यादा है। वित्त मंत्री को आवंटन से आगे बढ़ना चाहिए। ज्यादातर बजट बड़ी सरकारों के पास जाते हैं। अब फोकस परिव्यय से परिणाम तक और आगत से अदायगी तक किए जाने की जरूरत है। ऐसे बढ़ेगी मांग ’ ग्रामीण भारत का मतलब सिर्फ कृषि ही नहीं है। इस क्षेत्र का खर्च समावेश के लिए महत्वपूर्ण है। ग्रामीण विकास गरीबी को तीन गुना तेजी से कम करता है।  कृषि चुनौती का समाधान आसान है।

किसानों की दुर्दशा घटती आय के कारण है और वास्तविक मजदूरी 5 साल के निचले स्तर पर है। असंतुष्ट उद्यमी सूक्ष्म उद्योग शुरू करता है और छोटा रहता है। अनुकूल माहौल में कई उद्यमी फल-फूल सकते हैं। सरकार को उद्यमशीलता को पोषित करने और पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने वाले उद्यमी बनाने के लिए नीतिगत उपायों को स्थापित करने की आवश्यकता है। नौकरियां विकास और मांग में वृद्धि करती हैं और मांग तब तक नहीं उठती है जब तक कि नौकरियां न हों। हम अगले दशक के करीब पहुंच गए हैं, जहां हमारी जनसांख्यिकी स्थिति जनसांख्यिकी आपदा में बदल रही है। हमारे श्रम बाजारों में बहुत अवरोध है और इस पर तेजी से ध्यान देने की जरुरत है।