डॉ. मोनिका शर्मा। उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ इलाकों से आ रही खबरें बताती हैं कि महिलाएं कोरोना संक्रमण को लेकर अंधविश्वास का शिकार हो रही हैं। महिलाएं समूह में एकत्रित होकर कोरोना वायरस को भगाने के लिए पूजा अर्चना कर रही हैं। यह वाकई तकलीफदेह है कि महिलाओं ने अंधविश्वास के चलते कोरोना वायरस को देवी मान लिया है। महिलाओं का मानना है कि कोरोना माई की पूजा करने से इस महामारी से बचा जा सकता है।

इन महिलाओं का मानना है कि कोरोना बीमारी नहीं, देवी के क्रोध का कहर है और पूजा करने पर कोरोना माई प्रसन्न होकर अपना क्रोध शांत कर लेंगी जिससे यह महामारी खत्म हो जाएगी।दरअसल कोरोना से जुड़ा यह अंधविश्वास भय और अशिक्षा का मेल है। आस्था के नाम पर उपजा महिलाओं का यह अजब-गजब व्यवहार जागरूकता की कमी और इस त्रसदी से जुड़ी भयावह स्थितियों को न समझ पाने का नतीजा है। जो वाकई अशिक्षा और जागरूकता की कमी की स्थितियों को सामने लाता है।

अगर ऐसे ही होता रहा तो भविष्य में अंधविश्वास की ऐसी खबरें और उनसे जुड़ी अफवाहें अंधानुकरण और विवेकहीन सोच को बढ़ावा देने वाली साबित होंगी। आज जब भारत में संक्रमण के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा होने के नजदीक हैं, ऐसे में यह अंधविश्वासी सोच इस लड़ाई को और मुश्किल बना देगी। इतना ही नहीं अंधविश्वास के चलते की जा रही पूजा-अर्चना की खबरें यूं ही आती रहीं तो यह अंधविश्वास भी व्यवसाय बन जाएगा। हमारे यहां पहले से भी कई बीमारियों के मामले में लोग झाड़-फूंक जैसे इलाज के तरीकों में उलङो हुए हैं। कोई हैरानी नहीं कि इस फेहरिस्त में कोरोना जैसे भयावह संक्रमण को भी शामिल कर लिया जाए। आपदा के इस दौर में ऐसे अंधविश्वास हालतों को भयावह बना देंगे।

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अंधविश्वास नहीं, बल्कि जागरूकता और विश्वास जरूरी है। दैवीय आपदा मानकर कोरोना भगाने के अंधविश्वास के नाम पर हो रहे ऐसे जमावड़े कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी को बढ़ावा देंगे। अफसोस की बात है कि महिलाएं आज भी अंधविश्वास के फेर में फंसी हैं। इस महामारी से हम विज्ञान का हाथ थामकर ही निकल सकते हैं। किसी भी महिला या पुरुष को अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि कोरोना एक वायरस है। इसको लेकर जो वैज्ञानिक तथ्य हैं उनके अनुसार सतर्कता बरतने की सलाह मानना बेहद जरूरी है। शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करके ही कोरोना से बचा जा सकता है। जरूरी है कि प्रशासनिक अमला भी ऐसे अंधविश्वास को मानने और इससे जुड़ी अफवाहें फैलाने वालों के साथ सख्ती बरते, ताकि रूढ़िवादी सोच ही नहीं, इस बीमारी के विस्तार पाने पर भी लगाम लग सके।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)