रांची, प्रदीप शुक्ला। देश की किसी भी बेटी के साथ हुए किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न को जाति-धर्म और राज्य की सीमाओं से जोड़कर देखने वाले उतने ही बड़े गुनाहगार होते हैं, जितना असल गुनहगार। हाथरस की घटना के बाद बेटियों की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर देश में विमर्श में आ गया है, लेकिन दुखद यह है कि राजनीतिक दल इसे जाति-धर्म के उसी संकीर्ण चश्मे से देख रहे हैं जिसमें उनके फायदे निहित हैं।

हाथरस पर कई दिनों तक उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कोसने वाले कांग्रेस के बड़े नेताओं को शायद यह पता भी नहीं होगा कि उनके गठबंधन की झारखंड सरकार में बेटियों के साथ क्या सलूक हो रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र बरहेट में एक किशोरी के साथ हैवानियत की पराकाष्ठा देखने को मिली। उससे तब तक सामूहिक दुष्कर्म होता रहा, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई।

गुमला में एक नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म तो हुआ ही, बाद में पूरे परिवार को मारने तक की साजिश रची गई। सलाम गांव की उन साहसी महिलाओं को हमें करना चाहिए जो दुर्गा बनकर सामने खड़ी हो गईं। पर यहां सत्ताधारी कांग्रेस मौन है। जब भारतीय जनता पार्टी ने इन मुद्दों को उठाया तो जवाब में उनकी सरकार के दौरान के मामले गिनाए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि बेटियों की अस्मत पर भी सियासत ही हो रही है।

झारखंड में बेटियां बहुत सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट ने एक मामले में कठोर टिप्पणी करते हुए कहा था, राज्य में भी हाथरस जैसी घटनाएं लगातार घट रही हैं। इसकी संभावना कम ही है कि राज्य सरकार ने इससे कोई सबक लिया होगा। अगर ऐसा होता तो गुमला और बरहेट मामले में लापरवाही बरतने वाले पुलिसकíमयों के खिलाफ अब तक सख्त कार्रवाई की जा चुकी होती।

दुमका और बेरमो में उपचुनाव होने जा रहे हैं और अब भाजपा महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को मुद्दा बना रही है तो सत्ताधारी दल चौकन्ने हुए हैं। वह उनकी सरकार के दिनों की याद दिला रहे हैं। हाथरस पर हाय-तौबा मचाने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता तो दूर, राज्य स्तरीय नेता भी मौन साधे हुए हैं। इन बेटियों को न्याय दिलाने की कहीं से कोई मांग नहीं उठ रही है।

राज्य में कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता, जिस दिन दुष्कर्म की घटनाएं न घटित हो रही हों। गुमला जिले के चैनपुर थाना क्षेत्र में 14 साल की नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म तो हुआ ही, आरोपितों ने भाई और मां की पिटाई भी कर दी। मुंह बंद रखने के लिए घर पर हमले की तैयारी कर ली। गांव की महिलाएं संगठित हो रातभर पीड़िता के घर की पहरेदारी करती रहीं। तीन दिन बाद इस मामले की जानकारी पुलिस को हुई। साहिबगंज में नाबालिग आदिवासी किशोरी को अगवा कर पांच किशोरों ने सामूहिक दुष्कर्म किया।

किशोरी की अत्यधिक रक्तस्नाव और दम घुटने के चलते उसी समय मौत हो गई। दुष्कर्मियों का दुस्साहस देखिए, घर के छज्जे पर किशोरी का शव रखकर चले गए। पीड़ित परिवार थाना पहुंचा तो निकम्मी पुलिस ने केस दर्ज करने के बजाय पंचायत में मामला सुलझाने की बात कहकर उन्हें वापस भेज दिया। पंचायत के दबाव में पीड़ित परिवार ने शव को दफना भी दिया। भारतीय जनता पार्टी द्वारा मामला उठाने और मुख्यमंत्री को घेरने के तीन दिन बाद पुलिस ने कब्र से शव को निकलवाया और पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया। उसके बाद पुलिस ने दुष्कर्म के दृष्टिकोण से जांच शुरू की तो शामिल किशोरों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।

भाजपा राज्य सरकार से महिला सुरक्षा के मुद्दे पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग कर रही है। बेशक राज्य में बढ़ रहे अपराध और ध्वस्त होती कानून व्यवस्था को भाजपा उपचुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन बेटियों की सुरक्षा को लेकर पूर्व सरकारों का रुख भी निराशाजनक ही रहा है। हालत यह है कि सात साल पहले शुरू हुए निर्भया फंड का न तो सही तरीके से इस्तेमाल हुआ और न ही महिलाओं-बेटियों को हैवानों से बचाया जा सका। इस फंड में 15 करोड़ रुपये के मुकाबले राज्य सरकार महज चार करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई। पूर्व की भाजपा सरकार में शक्ति मोबाइल एप समेत सुरक्षा संबंधी अन्य कई उपाय तो हुए, लेकिन धरातल पर ये सुविधाएं कारगर होती नहीं दिख रही हैं।

महिला सुरक्षा पर सभी दलों को राजनीति से परे हटकर सोचना होगा, ताकि हाथरस अथवा बरहेट जैसी घटनाएं दोबारा न घटित हों। ऐसे अपराधों में शामिल दरिंदों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के साथ लापरवाही बरतने और मामलों को दबाने वाले पुलिस-प्रशासन के अफसरों पहचान कर उन्हें भी दंडित किया जाए। अक्सर होता यह है कि मामला तूल पकड़ने पर दोषी अफसरों को या तो स्थानांतरित कर दिया जाता है या फिर निलंबन। इससे उनमें कोई खौफ पैदा नहीं होता। यदि पुलिस-प्रशासन की किसी मामले में संलिप्तता पाई जाए तो उनके साथ ऐसा सलूक किया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए नजीर बने।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]