यहां राह है सुकून की
दिल्ली में होकर अगर यहां के हिस्टॉरिकल मॉन्युमेंट्स न देखे तो दिल में इस बात का मलाल हमेशा के लिए रह जाएगा। दिल्ली के तमाम टूरिस्ट स्पॉट्स में से एक है अग्रसेन की बावली, जहां पर्यटकोंं का आना-जाना लगा ही रहता है।
दिल्ली में होकर अगर यहां के हिस्टॉरिकल मॉन्युमेंट्स न देखे तो दिल में इस बात का मलाल हमेशा के लिए रह जाएगा। दिल्ली के तमाम टूरिस्ट स्पॉट्स में से एक है अग्रसेन की बावली, जहां पर्यटकोंं का आना-जाना लगा ही रहता है। वीकेंड्स पर तो यहां इतनी भीड़ होती है कि बैठने की जगह बनाना मुश्किल हो जाता है। फ्रेंड्स के साथ एंजॉय करने और $फोटो सेशन के लिए यह स्पॉट बिलकुल मु$फीद है। भीड़ के बावज़ूद यहां सुकून महसूस होता है, सबके बीच होते हुए भी अपने लिए कुछ लमहों को चुराया जा सकता है। हमें कई ऐसे लोग मिले जो वहां के आर्किटेक्चर से बिलकुल अचंभित थे। जानते हैं उन्हीं में से एक एक्सप्लोरर साहिल का अनुभव।
मुझे हिस्टॉरिकल जगहों पर घूमना हमेशा से ही पसंद रहा है। वहां जाकर एक अलग सा रोमांच महसूस होता है। ऐसा लगता है कि मॉडर्न वल्र्ड से दूर हट कर किसी और ही दुनिया में आ गए हों। उस एहसास को कुछ शब्दों में बता पाना ज़रा मुश्किल है। यहां मैं पहली बार आया हूं, पर इतना कह सकता हूं कि दोबारा फिर आऊंगा। इतनी भीड़ है, फिर भी मुझे शांति लग रही है, बिलकुल भी शोर नहीं है यहां। मैंने अपने कैमरे में इस बावली को डिफ्रेंट ऐंगल्स से शूट कर लिया है, जिससे कि दूर बैठे फ्रेंड्स और रिलेटिव्स भी इसे देखकर मोहित हो सकें। ऐसी जगहों पर आकर मैं बहुत प्राउड फील करता हूं।Ó
लिटिल अनश्योर हिस्ट्री
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित यह बावली टूरिस्ट्स के आकर्षण का केंद्र हमेशा से रही है। सीढ़ीनुमा कुएं में $करीब 103 सीढिय़ां हैं, जो आपको बिलकुल भी खाली नहीं मिलेंगी। यह दिल्ली की उन कुछ बावलियों में से है, जो अभी भी अच्छी कंडीशन में हैं। $करीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में हुआ था। इसमें गढ़े तथा अनगढ़े लाल बलुए पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। 14वीं शताब्दी में अग्रवाल समाज के महाराजा अग्रसेन ने इसका जीर्णोद्घार करवाया था। $िफलहाल इसे एएसआई द्वारा संरक्षित किया गया है। 2012 में इस पर डाक टिकट भी जारी किया गया था।
टूरिस्ट्स ऑल अराउंड
बा$की पर्यटन स्थलों की तरह ही यहां भी फॉरेनर्स का आना-जाना तो लगा ही रहता है, पर सबसे ज़्यादा भीड़ कॉलेज स्टूडेंट्स की नज़र आती है। चूंकि इसे हॉन्टेड प्लेस भी माना जाता है इसलिए वहां मौज़ूद लोग
एक-दूसरे के साथ मज़ाक भी करते रहते हैं। पुरानी मान्यताओं को मानते हुए आज भी लोग अपने सिक्के वहां की दीवारों पर चिपका जाते हैं। वहां का सारा पानी भले ही अब सूख चुका है, पर फिर भी लोग दशकों पहले के वातावरण को वहां महसूस करने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है कि पुरानी और नई दिल्ली के लोग कभी वहां तैराकी सीखने भी जाया करते थे।
जॉइन अस, पीपल
सेल्फी व $फोटो सेशंस के तो कहने ही क्या! हर सीढ़ी पर ग्रुप्स में बैठे लोग अलग-अलग पोज़ देकर वहां की भव्यता को अपने कैमरों में $कैद करते हैं। हिस्टॉरिकल प्लेसेस का चार्म ही इतना ख़्ाास होता है कि भ्रमण
करते-करते सब एक-दूसरे को जानने लगते हैं। कुछ नहीं तो यही डिस्कशन होने लगता है कि इन ऐतिहासिक स्थलों को कब तक यूं ही आने वाली पीढिय़ों के लिए सहेजा जा सकेगा। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सि$र्फ गवर्नमेंट या पुरातत्व विभाग से ही उम्मीदें न लगाए रहें, बल्कि इनको सहेजने में अपना भी 100 प्रतिशत दें और वहां के वातावरण और माहौल को दूषित न बनाएं।
प्रस्तुति : दीपाली पोरवाल
$फोटोज़ : संजीव कुमार