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नींद कम ख्वाब ज्यादा

यंगस्टर्स के बदलते रूटीन की वजह से उन्हें नींद न आना एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। स्लीप डिसॉर्डर की बढ़ती प्रॉब्लम पर दीपाली की एक नजर।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 04 May 2016 11:10 AM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 11:22 AM (IST)
नींद कम ख्वाब ज्यादा

यंगस्टर्स के बदलते रूटीन की वजह से उन्हें नींद न आना एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। किसी को लेट नाइट स्टडी करना पसंद होता है तो किसी को रात का ही टाइम टीवी देखने या इंटरनेट सर्फ करने के लिए मिल पाता है। ऐसे में देर से सोना उनकी आदत में शुमार होता जा रहा है। स्लीप डिसॉर्डर की बढ़ती प्रॉब्लम पर दीपाली की एक नजर।

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आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा हैं... यह अब महज किसी गाने की लाइन ही नहीं है जिसे गुनगुनाया जाए, बल्कि यह यंगस्टर्स की जिंदगी की वास्तविकता बनता जा रहा है। ऐसे बहुत से स्टूडेंट्स और यंग प्रोफेशनल्स हैं जिनकी एक कॉमन शिकायत है, सही समय पर नींद न आना या 8 घंटे से कम की नींद लेना। सोना तो हर किसी को ही पसंद होता है, फिर आखिर ऐसी क्या वजहें हैं कि सोने में भी समस्या आ रही है?

यह नींद नहीं आसां

अर्ली टु बेड, अर्ली टु राइज.. यह कहावत अब बदलती हुई सी नजर आ रही है। लाइफ इतनी ज़्यादा बिजी हो गई है कि 6 से 8 घंटे की नींद ले पाना भी दुश्वार सा हो गया है। दिन भर काम या पढ़ाई में व्यस्त रहने के बाद मी टाइम के लिए रात में ही समय निकाला जाने लगा है। ऐसे बहुत से काम होते हैं जिन्हें करना वा$कई बहुत जरूरी होता है और उनके लिए यंगस्टर्स नींद से भी कॉम्प्रोमाइज करने को तैयार हो जाते हैं। उन कारणों के बारे में बता रहीं हैं साइकोलॉजिस्ट सुनीता सनाढ्य।

टेक्नोलॉजी- $फोन हाथ में हो और उसका नेट पैक भी ऑन हो तो सोना सच में बहुत मुश्किल हो जाता है। रात भर कोई-न-कोई पिंग करता ही रहता है। दिन भर फ्रेंड्स से बातें करने का टाइम न मिल पाने पर यंगस्टर्स रात में ही पूरे दिन का शेड्यूल डिस्कस करते हैं। सोने से तुरंत पहले जो बातें की जाती हैं, वे का$फी देर तक दिमा$ग में घूमती रहती हैं। इसका रिजल्ट यह होता है कि चाह कर भी वे सो नहीं पाते हैं।

ओवर-शेड्यूलिंग- दिन भर कॉलेज और हॉबी क्लासेज में बिजी रहने वाले अपने लिए रात में ही समय निकाल पाते हैं। किसी को डायरी लिखनी होती है तो किसी को बुक्स पढऩी होती हैं। किसी के प्रोजेक्ट्सपेंडिंग होते हैं तो किसी को सेल्फ-स्टडी करनी होती है। वहीं किसी को लेट नाइट स्टडी ही रास आती है। ऐसे में सोते-सोते देर रात हो जाना स्वाभाविक है। ज़्यादातर स्टूडेंट्स को सुबह भी जल्दी उठना पड़ता है, जिस वजह से उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है।

डिप्रेशन- अगर दिमा$ग में किसी तरह की टेंशन हो या ओवर थिंकिंग कर रहे हों तो भी सोना मुश्किल हो जाता है। टेंशन कैसी भी हो सकती है, पढ़ाई की, जॉब की, गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड की, फैमिली की...

कभी-कभी हम इतना सोचने लगते हैंं कि सोने के बाद भी वही सब चीजें दिमा$ग में घूमती रहती हैं। इसका रिजल्ट यह होता है कि सुकून वाली नींद कहीं $गायब हो जाती है।

ख़्वाब- अकसर ही यंगस्टर्स ख़्वाबों की दुनिया में जीते हुए देखे जा सकते हैं। ये ख़्वाब भी कई बार उनकी नींद चुरा लेते हैं। जो सपने खुली आंखों से देखे जा रहे हों, कभी-कभी आंखें बंद करने के बाद भी वही सपने दिलो-दिमा$ग में कौंधते रहते हैं। अब ऐसे में भला क्या सोना और क्या जगना! बात तो बराबर ही हो गई न।

नाइट लाइफ- मेट्रोपोलिटन सिटीज में नाइट लाइफ का चलन भी स्लीप डिसॉर्डर का एक अहम कारण है। हॉस्टलर्स में भी रात भर जग कर पढऩे, टहलने या बातें करने की आदत पाई जाती है।

चाह सुकून की

कोई चाहे कितना भी परेशान हो, पूरी नींद न ले पाना किसी समस्या का हल कभी नहीं हो सकता। 500 कॉलेज स्टूडेंट्स की एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि मेट्रोपोलिटन सिटीज के यंगस्टर्स में यह समस्या ज़्यादा कॉमन है। कॉस्मोस इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंस के डायरेक्टर डॉ.सुनील मित्तल कहते हैं कि इस स्टडी में नींद की कमी वाले स्टूडेंट्स में डिप्रेशन, एंजायटी, इंटरनेट और गेम्स खेलने की लत, स्मोकिंग और दवाओं के सेवन का ख़्ातरा पाया गया। आजकल स्टूडेंट्स रात में काफी देर से सोने के बाद सुबह भी देर से जगते हैं जिसके कारण उनमें डिलेड स्लीप डिसॉर्डर का खतरा भी बढ़ रहा है। इस समस्या से जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए। पर, इसको बीमारी न समझना भी अपने आप में ही एक बड़ी समस्या है। जिंदगी में सुकून की ख़्वाहिश तो हर किसी को होती है। अगर ख़्ाुद में या अपने $करीबियों में ऐसे लक्षण दिखें तो जल्द से जल्द उसका ट्रीटमेंट करवाएं।

नींद के ढूंढें बहाने

बैंकिंग की तैयारी कर रहीं शालिनी बंसल बताती हैं, 'मैं चाहे जितनी कोशिश कर लूंं, मुझे एक तय समय से पहले नींद आती ही नहीं है।Ó कई लोग कहते हैं कि भले ही फोन, टीवी, बुक्स.. आदि उनकी पहुंच से दूर हों, फिर भी वे देर रात तक करवटें ही बदलते रहते हैं। ऐसे में उन्हें सोने के बहाने ढूंढने चाहिए। सोने के लिए दवाइयों का सहारा लेने के बजाय अपनी लाइफस्टाइल में थोड़ा सा बदलाव करना ज़्यादा बेहतर होता है।

-सोने का एक सही समय निश्चित करें। अपनी दिनचर्या को ऐसे व्यवस्थित करें कि उस समय तक सारे काम हो जाएं।

-दिन भर इतनी मेहनत करें कि रात को बेड पर पहुंचते ही नींद आने लगे। सोने के टाइम पर कोई भी काम अपने जिम्मे न लें।

-जिस भी चीज से आपको एडिक्शन हो, सोने के लगभग आधे घंटे पहले ही उसे ख़्ाुद से दूर कर दें।

-पढ़ते हुए सोना कोई बुरी आदत नहीं है, बशर्ते उठ कर लाइट ऑफ कर दें। अगर गाने सुनते हुए सोने की आदत हो तो ध्यान रखें कि इयर फोन लगाए हुए ही न सो जाएं।

-जब तक जरूरी न हो, फोन को बेड तक न लाएं।

-रूम साफ करके बिलकुल फ्रेश माइंड से सोने जाएं। किसी भी टेंशन के साथ सोएंगे तो नींद पूरी होना मुश्किल होगा।

बहुत ऊंचे ख़्वाबों के लिए अपनी नींद को न बर्बाद करें। सपने तो समय आने पर पूरे हो ही जाएंगे, नींद का समय निकल गया तो सोना मुश्किल हो जाएगा। पॉजिटिव सोच के साथ जितनी गहरी और शांत नींद लेंगे, सुबह उठने पर उतना ही फ्रेश फील करेंगे।


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