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जि़म्मेदारियों में बंधती आज़ादी की डोर

करियर और जॉब के लिए अपने शहर और घरवालों से दूर जाना अब कोई बड़ी बात नहीं है। दिल्ली, नोएडा, $गाजि़याबाद, गुडग़ांव, बेंगलुरू, मुंबई और पुणे जैसे शहरों में दूरदराज से आए यंगस्टर्स की भीड़ देखी जा सकती है। उनकी लाइफस्टाइल पर दीपाली की एक नज़र।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 06 Apr 2016 04:21 PM (IST)Updated: Wed, 06 Apr 2016 04:23 PM (IST)
जि़म्मेदारियों में बंधती आज़ादी की डोर

करियर और जॉब के लिए अपने शहर और घरवालों से दूर जाना अब कोई बड़ी बात नहीं है। दिल्ली, नोएडा, $गाजि़याबाद, गुडग़ांव, बेंगलुरू, मुंबई और पुणे जैसे शहरों में दूरदराज से आए यंगस्टर्स की भीड़ देखी जा सकती है। उनकी लाइफस्टाइल पर दीपाली की एक नज़र।

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अपने घरों के प्रिंस और प्रिंसेस एक अदद किंगडम की चाह में घरों से दूर अपने पंखों को आज़ाद उड़ान देने के लिए तैयार करते हैं। घरवालों के लाड़-प्यार में जीने वालों के लिए बाहर की दुनिया बिलकुल नई होती है। जहां पहले पानी के लिए घर में किसी को आवाज़ लगा देते हैं, वहीं अब पानी ख़्ारीदने तक ख़्ाुद जाते हैं। अपनी पसंद का खाना न बनने पर बाहर खाने की धमकी देने वाले अब घर के स्वाद को याद करते हैं। घर के सदस्यों को तरह-तरह की ज़रूरतें बताकर रुपये ऐंठने वाले अब अपनी कमाई के साधन ढूंढने की जुगत में लग जाते हैं।

बदलावों में सिमटती जि़ंदगी

लाइफ के चलते रहने के लिए फ्लो बहुत ज़रूरी होता है। जहां भी ठहर गए, वहीं व्यक्तित्व विकास बाधित होने लगता है। चलते रहने का मतलब है कि परिस्थितियां बदलेंगी और हमें उनसे सामंजस्य बैठाना होगा। बदलाव सहज होकर भी बेहद मुश्किल होते हैं। कोई उनमें आसानी से ढल जाता है तो किसी को समय लगता है। बदलाव ही हमें बनाते और बिगाड़ते भी हैं। यंगस्टर्स के लिए यही समय होता है ख़्ाुद को साबित करने का। टीनएज या अर्ली ट्वेंटीज़ में जब अपने शहर को छोड़कर दूसरे शहर में शिफ्ट होते हैं तो मन में मिश्रित भाव होते हैं। जहां अकेले सर्वाइव कर पाने का डर होता है, वहीें आज़ादी की एक अदद चाह भी। पर उन सबके साथ ही बहुत सी जि़म्मेदारियां अपने ऊपर लेनी पड़ती हैं।

टिप : परिस्थितियों के अनुसार ढलते जाएं पर अपनी मौलिकता को न खोएं।

मच्योर बनाती हैं जि़म्मेदारियां

सबके घरों का माहौल अलग होता है। ज़रूरी नहीं है कि हर कोई अपने घर में बहुत जि़म्मेदार रहा हो। ऐसे में बाहर निकलने के बाद उन्हें अपनी जि़म्मेदारियों का सही मायने में एहसास होता है। पहले बच्चों को दूसरे शहर जाने पर रिश्तेदारों के घरों में रखा जाता था, पर अब मेट्रो सिटीज़ में दोस्तों के साथ मिलकर रूम लेने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। सब मिलकर घर और बाहर की जि़म्मेदारियां आपस में बांट लेते हैं। रूममेट हो या दूसरे दोस्त या कलीग्स, किसी को भी ज़रूरत पडऩे पर सब पारिवारिक सदस्यों की तरह साथ निभाने को तैयार रहते हैं। सब्ज़ी लानी हो, मेड को निर्देश देना हो, घर की स$फाई करनी हो या कोई और काम, हर पल ये पहले से ज़्यादा मच्योर होते जाते हैं।

टिप : शुरुआत में अपने ऊपर वही जि़म्मेदारी लें, जिसे कर पाने के लिए आपमें आत्मविश्वास हो।

बजट के भी हैं पक्के

पॉकेट मनी मिल रही हो या ख़्ाुद अर्न कर रहे हों, कहां और कितना ख़्ार्च करना है, यंगस्टर्स सब बख़्ाूबी समझते हैं। उन्हें पता होता है कि महीने भर का सारा ख़्ार्चा इतने में ही चलाना है तो वे अपनी प्लैनिंग उसी हिसाब से करते हैं। उनमें बहुत से ऐसे भी होते हैं जिनकी सैलरी कम भले हो, पर वे घरवालों से एक्स्ट्रा रुपये नहीं लेते हैं। अब तो कई ऐसे एप्स भी हैं जो बजट मेंटेन करने में मदद करते हैं। छात्र जीवन दीप बताते हैं, 'रूम का रेंट, इलेक्ट्रिसिटी बिल और बा$की ज़रूरी ख़्ार्चे पूरे करने के बाद जो रुपये बचते हैं, उन्हें मैं सेव करता हूं। वे शॉपिंग, घरवालों के लिए गिफ्ट्स ख़्ारीदने और इमर्जेंसी नीड्स के काम आते हैं।Ó जहां कुछ यंगस्टर्स आराम से सारे ख़्ार्चे करने के बाद सेव भी कर लेते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो सैलरी आते ही पार्टीज़, शॉपिंग और ट्रैवलिंग में ख़्ार्च कर देते हैं। मंथ के एंड तक उनका अकाउंट खाली होने लगता है। बाहर रहने पर न सि$र्र्फ अपने ख़्ार्चे नियमित करने चाहिए, बल्कि सेव करना भी बहुत ज़रूरी होता है। बेहतर होगा कि इन्वेस्टमेंट प्लैन्स के बारे में सही जानकारी इक_ïी कर उनका $फायदा उठाएं।

टिप : उधार लेने और देने से बचें, जब तक कि बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी न हो।

अब सब हैं बराबर

कई बार लड़कों को घरेलू काम करने की आदत नहीं होती है। पर बाहर निकलने के बाद वे ख़्ाुद-ब-ख़्ाुद सब सीख जाते हैं। बहुत से ऐसे यंगस्टर्स हैं जो घर की स$फाई से लेकर खाना बनाने तक का सारा काम ख़्ाुद ही मैनेज करते हैं। धीरे-धीरे झाड़ू लगाना, सब्ज़ी लाना और काटना, बर्तन धोना जैसे काम करने में वे महारत हासिल कर लेते हैं। कौन सा काम लड़कों के जिम्मे है और कौन सा लड़कियों के, बाहर आकर ऐसी कैटेगरीज़ का कोई मतलब नहीं रह जाता है। कुछ ऐसे भी अपार्टमेंट्स हैं जहां लड़के और लड़कियां मिलजुल कर रहते हैं। वे एक ही कॉलेज या प्रोफेशन के होते हैं। कंटेंट राइटर प्रज्ञा बताती हैं, 'मेरे अपार्टमेंट में बहुत से यंगस्टर्स रहते हैं। दो-तीन रूम्स के बीच में एक किचन है। जब मैं ऑफिस से लेट आती हूं तो मेरा नेक्स्ट-डोर-नेबर खाना रेडी रखता है। जब वह बिज़ी होता है तो मैं उसके बाहर के काम कर देती हूं।Ó बाहर रहने वालों की आपस में म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग होना बहुत ज़रूरी है। कभी कोई मतभेद होने पर उसी समय सुलझा लेना चाहिए, मनभेद नहीं करना चाहिए।

टिप : बाहर रहने पर अपनी सुरक्षा की जि़म्मेदारी ख़्ाुद लें और लोगों को परखने की समझ विकसित करें।

रहें सचेत और सावधान

आज़ादी का मतलब यह नहीं होता है कि आपकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही न रहे। गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के साथ होने पर भी किसी को ज़रूर बताएं, मसलन फ्रेंड्स, कलीग्स या फैमिली मेंबर। इससे कभी कोई समस्या होने पर लोगों का सपोर्ट मिल सकेगा। किसी भी तरह की परेशानी होने पर स्ट्रेस लेते रहने के बजाय उसे बांटना सीखें। इससे कभी डिप्रेशन जैसी स्थिति नहीं होगी। अपने फ्रेंड सर्कल में फनी, वर्कोहॉलिक, सीरियस.. हर तरह के लोगों को शामिल करें। वहां आपके शहर के जो लोग हों, उनके भी संपर्क में रहें। बाहर रहने पर तबियत ख़्ाराब होने या कोई और समस्या होने पर दोस्त ही काम आते हैं, इसलिए कुछ विश्वसनीय दोस्तों को $करीब ज़रूर रखें। उनके अलावा कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में भी रहें जो गार्जियन की तरह आपका ख़्ायाल रख सकें और सही सलाह दे सकें। आपकी जि़ंदगी में उनका मार्गदर्शन सकारात्मकता की कुंजी का काम करेगा। हमेशा अपने अधिकारों को जानें और समझें, ज़रूरत पडऩे पर उनका प्रयोग भी करें।

टिप : नकारात्मक भावों और लोगों से दूर रहें। जितना हो सके, ख़्ाुशियां बांटें। कोई परेशान दिखे तो हरसंभव मदद करने की कोशिश करें। आपका सपोर्ट किसी की जि़ंदगी बदल सकता है।

दुनियादारी को समझा

घर में मेरे ऊपर कोई ख़्ाास जि़म्मेदारी नहीं थीे, मुंबई आई तो टैक्स और बजट जैसे टम्र्स को जाना। रेंट और इलेक्ट्रिसिटी बिल्स जमा करने की डेट्स नोट करती हूं। 10 रुपये से लेकर 40000 रुपये तक के ख़्ार्चे मैं डायरी में नोट करती जाती हूं। इससे अपने ख़्ार्चों पर सेल्फ कंट्रोल रहता है। मैं हर काम प्राथमिकता के आधार पर करती हूं। अगर 2 बजे भी शूट ख़्ात्म होता है तो उसके बाद अपने फ्रेंड्स के लिए टाइम निकालती हूं। वर्क के अलावा मेरा मी टाइम, फ्रेंड्स टाइम और फैमिली टाइम भी फिक्स रहता है। मैं स्ट्रेस नहीं लेती, ख़्ाुश होकर लाइफ को एंजॉय करती हूं। दूसरे शहर जाने पर कभी घबराना नहीं चाहिए, अपने दम पर कुछ बनने से आपमें आत्मविश्वास और लोगों को पहचानना आता है। हर स्तर पर अपना ख़्ायाल रखना चाहिए।

पूजा बैनर्जी, टीवी ऐक्ट्रेस


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