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बदलते रिश्ते...

भारत में गुरु-शिष्य की अनूठी परंपरा का चलन सदियों से चला आ रहा है। एक ज़माना था जब गुरु-शिष्य की आदर्श जोडिय़ां हुआ करती थीं। तब से अब तक इस पवित्र रिश्ते ने कई उतार-चढ़ाव पार करते हुए अपना नया मु$काम ही बना लिया है। आख़्िार क्या वजहें रहीं कि

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2015 02:46 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2015 02:48 PM (IST)

भारत में गुरु-शिष्य की अनूठी परंपरा का चलन सदियों से चला आ रहा है। एक ज़माना था जब गुरु-शिष्य की आदर्श जोडिय़ां हुआ करती थीं। तब से अब तक इस पवित्र रिश्ते ने कई उतार-चढ़ाव पार करते हुए अपना नया मु$काम ही बना लिया है। आख़्िार क्या वजहें रहीं कि इस रिश्ते में इतने बदलाव आते जा रहे हैं और आज यह भी लोगों की नज़रों में चढ़ रहा है? पेश है दीपाली की रिपोर्ट।

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आज दिलीप सर ने मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। अब मैं उनके स्टेटस और $फोटोज़ देखा करूंगी।Ó रितिका ने घर आते ही अपनी फ्रेंड तपस्या से इस बात को शेयर किया। 'अरे, मेरी फ्रेंड लिस्ट में तो वो कॉलेज के फस्र्ट डे से ही ऐड हैं। मैंने उनकी लास्ट वीकेंड की पार्टी की पिक्स भी देखी थीं।Ó दोनों की ही बातों से सा$फ ज़ाहिर हो रहा था कि वे सर की पर्सनल लाइफ में झांकने के लिए कितनी उत्सुक थीं। फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट से अच्छा ऑप्शन तो उस काम के लिए हो भी नहीं सकता था। गुरु-शिष्य अब टीचर-स्टूडेंट बन चुके हैं। यह सि$र्फ भाषा का ही $फ$र्क नहीं, बल्कि रिश्ते के मायने का भी है।

बदलाव की है बयार

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व बढ़ते तकनीकी साधनों से

बच्चे उम्र से पहले ही मच्योर हो रहे हैं। वे अपने $फैसले ख़्ाुद ही लेने में अपनी शान समझते हैं। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना व अपनी बातें मनवाना तो आजकल सबकी आदतों में शुमार हो चुका है। ऐसे में उन्हें डील करने के तरी$के भी बदलते जा रहे हैं। घर से शुरू हुआ बदलाव स्कूल व कॉलेज तक जारी रहता है। सबकी कोशिश यही होती है कि बच्चों को डांटने-मारने के बजाय प्यार से कोई भी बात समझायी जाए, वर्ना वे गुस्सैल स्वभाव के होने लगते हैं। जब माता-पिता का व्यवहार बच्चों के प्रति ऐसा होता है, तो टीचर्स भी उन्हें वैसे ही डील करते हैं। कभी-कभी यही रिश्ता ज्य़ादा ही कैज़ुअल होने

लगता है। ऐसा होने की वजह सि$र्फ बच्चे ही नहीं होते हैं, बल्कि टीचर्स भी समान रूप से जि़म्मेदार होते हैं।

बढ़ रही है दोस्ती

स्कूल व कॉलेज में डिसिप्लिन की कमी होने से स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच का पारंपरिक रिश्ता बदल रहा है। वे अब दोस्ती जैसे इनफॉर्मल रिश्ते को ही अपनाने लगे हैं।

-फेसबुक पर ऐड करके टीचर्स की पर्सनल लाइफ में ताक-झांक करना

-बर्थडे या घरेलू फंक्शंस में एक-दूसरे को शामिल करना

-कम एज के कई टीचर्स का ख़्ाुद को अपने नाम से कहलवाना ही पसंद होना

-कोचिंग भी स्कूल व कॉलेज के टीचर्स से पढऩे से निकटता और बढ़ रही है

दोनों ही हैं जि़म्मेदार

इस बदलाव के लिए टीचर्स और स्टूडेंट्स में से किसी एक को जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन दोनों के साथ ही ऐसी और भी कई परिस्थितियां हैं जिनकी वजह से सदियों पुराने इस आदर्शवादी रिश्ते में नयापन का अहसास आने लगा है। कुछ होने पर सिर्फ टीचर्स को या स्टूडेंट्स को ही जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। दोनों ही समान रूप से जि़म्मेदार होते हैं।

टीचर..जो स्टूडेंट मन भाए

रिश्ते के बीच की दूरियां कॉलेज आ कर ही ख़्ात्म नहीं हो रही हैं, बल्कि यह बदलाव स्कूल से ही देखने को मिल रहा है। हाईस्कूल तक आते-आते टीचर्स बच्चों के दोस्त बनने लगते हैं। इसका एकमात्र कारण यह होता है कि वे अपनी स्ट्रिक्ट छवि न बना कर बच्चों के फेवरिट बने रहना चाहते हैं। विभिन्न अवसरों पर 'बेस्ट टीचर कॉन्टेस्टÓ आयोजित करवाए जाते हैं, जिसमें स्टूडेंट्स को अपने पसंदीदा टीचर को वोट देना होता है। इसके मापदंड जो भी हों, पर बच्चों के लिए टीचर वही अच्छा होता है जो उन्हें डांटने के बजाय हमेशा प्यार से दोस्तों की तरह बात करे। दिल्ली के एक स्कूल में टीचर जूही लीमा कहती हैं, 'आज के बच्चों की मानसिकता अलग है। उनसे रिदम बनाने के लिए हमें उनके नज़रिए से सोचना पड़ता है। घर से मिली फ्रीडम को वे बाहर भी चाहते हैं। मेरा मानना है कि यह का$फी हद तक टीचर्स पर डिपेंड करता है कि वे अपना लेवल क्या रखते हैं। अपने स्टूडेंट्स से ज्य़ादा हंसी-मज़ाक नहीं करना चाहिए। मैं अपने फेसबुक अकाउंट में करेंट बैच स्टूडेंट्स को ऐड करने के बजाय सिर्फ पासआउट्स को ही ऐड करती हूं।Ó

संवाद है अहम

कंफर्ट लेवल बनाए रखने के लिए संवाद के साधन तो होने चाहिए पर उतने नहीं कि वे प्रॉब्लम क्रिएट करें। बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण स्टूडेंट लाइफ से ही होता है। बच्चों के लिए भी यह ज़रूरी है कि वे टीचर्स के नरम व सरल स्वभाव को $गलत तरी$के से न लें। दोनों को ही यह समझना चाहिए कि हर रिश्ता अपने आप में ख़्ाास होता है और सबका एक दायरा होता है। रिश्तों में संतुलन बनाए रखना चाहिए। करियर के लिहाज़ से ज़रूरी बातें करते रहना चाहिए, पर एक्स्ट्रा बातें करने से रिश्ते बिगडऩे की आशंका रहती है।

थोड़ी दूरी भी ज़रूरी है

डॉ.रचना खन्ना

लाइफस्टाइल एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट डॉ.रचना खन्ना कहती हैं, 'थोड़ा फॉर्मल रहने से रिश्ते में सम्मान बना रहता है, जो कि बेहद ज़रूरी है। अगर फेसबुक पर ऐड कर रहे हैं तो प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच में एक लाइन ड्रॉ करके रखनी चाहिए। ऐसे केस सामने आए हैं जिनमें स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच रिश्ता दोस्ती से भी आगे बढ़ गया, जो कि $गलत है।Ó

घर में दें स्पेस

दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ.पी.सी.टंडन कहते हैं, 'मैं अपने स्टूडेंट्स को अपने बच्चों की तरह ट्रीट करता हूं। ज़रूरत पडऩे पर उन्हें समझाता हूं, पर साथ ही एक निश्चित दूरी भी बनाए रहता हूं। आपसी रिश्ता ऐसा होना चाहिए कि स्टूडेंट आपसे बिना डरे अपनी बात कह सके। आज का बदलाव पॉजि़टिव ज़रूर है, पर लिमिट्स बना कर रखनी चाहिए। आज के बच्चे सबमें अपना दोस्त ढूंढने लगे हैं। यह तब होता है जब घर में उनकी बात न सुनी जाए या टाइम न दिया जाए।


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