एंजॉय द लर्निंग प्रोसेस
मेरे लिए अपनी लिखी हुई कहानी को परदे पर साक्षात होते हुए देखना ही सक्सेस है। जब मैं ऑडियंस को उसमें खोते हुए देखता हूं तो मेरी मेहनत सफल हो जाती है।
कॉमर्स की फील्ड में ग्रेजुएशन करने के बाद मात्र 23 वर्ष की उम्र में प्रखर गौतम ने कई ख़्ाास उपलब्धियां हासिल की हैं। वे नाटकों की स्क्रिप्ट राइटिंग करने के साथ ही उनका डायरेक्शन भी करते हैं। परिंदे प्रोडक्शन नाम का उनका अपना थिएटर ग्रुप भी है। अपने दोस्ताना व्यवहार और धैर्य के लिए वे बेहद चर्चित हैं। पेश है उनसे एक मुलाकात।
आप राइटर और डायरेक्टर होने की दोहरी जि़म्मेदारी कैसे निभाते हैं?
मुझे लिखने का शौक है, इसलिए एक्सपेरिमेंट करता रहता हूं। मैं नाटकों के लिए दूसरों की कहानियां न लेकर नई और ओरिजिनल कहानियों पर काम करता हूं। कुछ ऐसा लिखता हूं जिसका प्रभाव लोगों पर पड़े और वे मेरी स्टोरीज़ को लंबे समय तक याद रख सकें। मेरे किरदारों को निभाने वाले पेशेवर ऐक्टर्स नहीं होते हैं। मैं बिलकुल आम लोगों को ट्रेन करता हूं। जब कुछ ठान लेता हूं तो पूरी मेहनत कर अपने काम को सफल भी बनाता हूं।
अपनी फैमिली और स्टडी बैकग्राउंड के बारे में बताइए।
मेरे पापा कॉस्ट अकाउंटेंट हैं। मैंने बी.कॉम. ऑनर्स किया हुआ है। कॉलेज के टाइम पर मैंने एक बुक लिखी थी, जिसे का$फी अच्छे रिव्यूज़ मिले थे। उसके बाद ही इस फील्ड में आने के लिए प्रयासरत हो गया था। शुरूआत में पेरेंट्स इस डिसीज़न को लेकर संशय में थे, पर धीरे-धीरे उन्हें मेरा काम समझ आने लगा।
आपने 25 आम लोगों को ट्रेन कर ऐक्टर बना दिया। इसमें किस तरह की दिक्कतें आईं?
अकसर लोगों को यह बहुत डिफिकल्ट टास्क लगता है, जबकि यह सबसे ज़्यादा आसान है। जिसे पहले से ही सब आता हो, उसे अपने अनुसार ढालने में समस्या आती है। मेरे प्ले में जो लोग ऐक्टिंग करते हैं, वे सामान्य लोग होते हैं। मैं अपने किरदार की ज़रूरत के अनुसार उन्हें ट्रेन करता हूं। मेरे सभी ऐक्टर्स अलग-अलग फील्ड से हैं, ऐसे में प्रैक्टिस या ट्रेनिंग के लिए सबको एक जगह इक_ïा करना मुश्किल हो जाता है। मैं उनके टाइम और लोकेशन की सहूलियत को देखते हुए उन्हें पर्सनली ट्रेन करता हूं।
इतनी मेहनत वाले काम के लिए किस तरह की स्किल्स का होना ज़रूरी है?
स्किल्स से ज़्यादा सही अप्रोच का होना ज़रूरी है। अगर आपकी स्टोरी अच्छी होगी तो ऑडियंस को पसंद आएगी, वर्ना सिरे से नकार दी जाएगी। ऑडियंस के माइंडसेट को समझना आना चाहिए। अगर अपने काम से प्यार करेंगे तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं। मैं अपने काम को बहुत पसंद और एंजॉय करता हूं। हर फील्ड की तरह ही इसमें भी मेहनत बहुत करनी पड़ती है। उससे घबराने के बजाय हर तरह की सिचुएशन और लोगों के साथ काम करना आना चाहिए। डायरेक्टर होने के नाते प्ले से जुड़े हर पहलू को समझना आना ज़रूरी है। कुछ भी सीखते या करते व$क्त उसे एंजॉय करना चाहिए।
आपके लिए सक्सेस क्या है?
मेरे लिए अपनी लिखी हुई कहानी को परदे पर साक्षात होते हुए देखना ही सक्सेस है। जब मैं ऑडियंस को उसमें खोते हुए देखता हूं तो मेरी मेहनत सफल हो जाती है।
दिल्ली के बारे में क्या कहेंगे?
यहां बहुत अपनापन है। मैं फूडी हूं, इसलिए दिल्ली में स्ट्रीट फूड के लिए फेमस मार्केट्स में जाता रहता हूं। दिल्ली छोडऩे की बात कभी सोचता तक नहीं हूं।
दीपाली