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यमुना साफ चाहिए तो पुराने सार्वजनिक सुविधा परिसरों पर भी दें ध्यान

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : यमुना की सफाई को लेकर केंद्र व दिल्ली सरकार गंभीरता दिखा

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 06:53 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 07:36 PM (IST)
यमुना साफ चाहिए तो पुराने सार्वजनिक सुविधा परिसरों पर भी दें ध्यान

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : यमुना की सफाई को लेकर केंद्र व दिल्ली सरकार गंभीरता दिखा रही है। पहले की भांति जापान इस बार भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की देखरेख में चल रहे यमुना की सफाई के अभियान में आर्थिक मदद देने के लिए भारत के साथ खड़ा है, मगर सरकारी एजेंसियां नई योजनाओं को अमली जामा पहनाने के चक्कर में कई पुरानी योजनाओं की तरफ ध्यान नहीं दे रही हैं। ऐसी ही एक योजना थी, जिसमें करोड़ों रुपये की लागत से सार्वजनिक सुविधा परिसरों का निर्माण किया गया। अब ज्यादातर परिसर अवैध कब्जों की भेंट चढ़ चुके हैं। जानकार कह रहे हैं कि अगर उचित रखरखाव कर लोगों को इनके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाए तो यमुना की सफाई में ये बहुत कारगर हो सकते हैं।

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वर्ष-1993 में लागू किए गए पहले यमुना एक्शन प्लान में 680 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसमें ढाई सौ करोड़ रुपये 175 सार्वजनिक सुविधा परिसरों को बनाने के नाम पर खर्च किए गए। वर्ष 2004 में दूसरा प्लान बना। इसकी लागत 624 करोड़ रुपये तय की गई। इसमें से भी फिर 125 सार्वजनिक सुविधा परिसर बनाने पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए। दिल्ली जल बोर्ड ने 1998-99 में 285 करोड़ रुपये और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपये खर्च किए। दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (डीएसआइडीसी) ने 147 करोड़ रुपये अलग खर्च कर दिए। ज्यादातर राशि सार्वजनिक सुविधा परिसर बनाने और औद्योगिक क्षेत्रों में कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट लगाने पर खर्च किए गए, मगर कैग की तल्ख टिप्पणी के बाद भी इन सरकारी एजेंसियों ने इतनी राशि खर्च कर बनाए गए इन परिसरों की तरफ ध्यान नहीं दिया।

दिल्लीवासी सबसे ज्यादा गंदा कर रहे हैं यमुना को

यमुना को गंदा करने में सबसे अधिक भूमिका दिल्ली के लोगों की है। वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज तक 22 किलोमीटर लंबी यमुना की गंदगी में 79 फीसद हिस्सा दिल्ली के खाते में दर्ज है। करीब 22 नालों से आज भी यमुना में गंदगी जा रही है। इनमें सर्वाधिक गंदगी खुले में शौच क्रिया करने वालों की ओर से की जाती है।

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यह सोचने वाली बात है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद आज यमुना पहले से ज्यादा प्रदूषित हो गई है। बेहतर होगा पुरानी योजनाओं के तहत जो काम हुए उनका इस्तेमाल किया जाए, अन्यथा आशंका तो यही है कि हजारों करोड़ फिर खर्च हो जाएंगे और यमुना कहीं पहले से ज्यादा और प्रदूषित न होती चली जाए। देखना यह भी होगा कि यमुना सफाई के लिए जापान की आर्थिक मदद कुछ लोगों के लिए मोटी कमाई का रास्ता न बन जाए।

- विनय कंसल, पर्यावरणविद।


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