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टूटती सांसों को नहीं मिल पा रहा वेंटिलेटर का सहारा

रणविजय सिंह, नई दिल्ली : देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या हालत है, यदि यह जानना है तो कि

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 09:55 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 09:55 PM (IST)
टूटती सांसों को नहीं मिल पा  रहा वेंटिलेटर का सहारा
टूटती सांसों को नहीं मिल पा रहा वेंटिलेटर का सहारा

रणविजय सिंह, नई दिल्ली

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देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या हालत है, यदि यह जानना है तो किसी दूरदराज के अस्पताल में जाने की जरूरत नहीं है। संक्रामक रोगों के इलाज के लिए दिल्ली में स्थित उत्तर भारत के एकमात्र महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में इसका नजारा साफ देखा जा सकता है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के इस अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड की उपलब्धता की बात कौन करे, डिप्थीरिया से पीड़ित बच्चों की टूटती सांसों को वेंटिलेटर का सहारा तक नहीं मिल पा रहा है।

डॉक्टर कहते हैं कि डिप्थीरिया गंभीर संक्रामक रोग है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसके जीवाणु सांस के जरिये संक्रमित कर सकते हैं। इसके अलावा, पीड़ित मरीज को छूने या उसके संपर्क में आने पर भी यह बीमारी हो सकती है। इसलिए डिप्थीरिया की बीमारी से पीड़ित मरीजों को अलग कमरे (आइसोलेशन रूम) में रखने की जरूरत होती है। महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में डिप्थीरिया, खसरा जैसे गंभीर संक्रामक रोगों से पीड़ित मरीज बड़े अस्पतालों से भी स्थानांतरित किए जाते हैं। इन दिनों उत्तर प्रदेश से डिप्थीरिया पीड़ित बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। डिप्थीरिया से पीड़ित एक बच्ची के पिता ने बताया कि एक-एक कमरे में तीन से छह मरीज भर्ती हैं। वार्ड में परिजनों का आना-जाना भी होता है। ऐसे में अस्पताल में संक्रमण बढ़ने का खतरा है, जबकि ऐसी बीमारी से पीड़ित मरीजों को अलग रखने की जरूरत होती है। हालांकि, अस्पताल प्रशासन का कहना है कि डिप्थीरिया से पीड़ित बच्चों को आइसोलेशन वार्ड में रखा जा रहा है। उन वार्डो में किसी और बीमारी से पीडि़त मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। अस्पताल के कुछ कमरों में दो-दो मरीज भर्ती किए गए हैं। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुशील गुप्ता ने स्वीकार किया कि अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। उन्होंने कहा कि जरूरतमंद बच्चों को ट्यूब के जरिये ऑक्सीजन दी जाती है। यह हाल तब है जब डिप्थीरिया की बीमारी होने पर गले में गांठ बन जाने के कारण सांस लेने में परेशानी होने लगती है और मरीज का दम घुटने लगता है। ऐसी स्थिति में मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। मरीज को अलग रखना जरूरी

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को अलग रखना (आइसोलेट) जरूरी है। साथ ही इलाज के लिए दवाओं के साथ वेंटिलेटर की सुविधा भी होनी चाहिए।


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