प्रगति मैदान में बसा दुर्लभ पाण्डुलिपियों का अनोखा संसार - पढ़ें पूरी खबर
प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में पाण्डुलिपियों के अनोखे संसार में पुस्तक प्रेमी गोता लगा रहे हैं। दरअसल, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ने देश की समृद्ध ऐतिहासिकता से लोगों का परिचय कराने के उद्देश्य से पहली बार पुस्तक मेले में स्टाल लगाया है।
नई दिल्ली [ संजीव कुमार मिश्र ] । प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में पाण्डुलिपियों के अनोखे संसार में पुस्तक प्रेमी गोता लगा रहे हैं। दरअसल, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ने देश की समृद्ध ऐतिहासिकता से लोगों का परिचय कराने के उद्देश्य से पहली बार पुस्तक मेले में स्टाल लगाया है।
मिशन की को-आर्डिनेटर डॉ संगमित्रा वसु ने बताया कि मिशन से जुुड़े 4 हजार से ज्यादा लोग पूरे देश में घर-घर जाकर संपर्क करते हैं। यदि किसी घर पर पाण्डुलिपि मिलती है तो उसका संरक्षण किया जाता है।
भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती की जन्मपत्री में पढ़ा था कि उसका विवाह नहीं होगा। उन्होंने वादा किया कि बेटी के नाम पर एक ग्रंथ लिखेंगे, जो समय के अंत तक रहेगा। महज 36 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सिद्धांत शिरोमणि ग्रन्थ लिखा, जिसका एक भाग लीलावती है।
यह ग्र्रंथ पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखा गया है। इसमें काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। ओडि़आ लिपि में लिखा यह ग्रंथ मूलरूप से संस्कृत में है।
लीलावती में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। चौधरी कहते हैं कि फूलों की स्याही से ताड़ के पत्तों पर लिखी हस्त लिपियां अधिकतर ओडि़शा में मिली हैं। इसका कारण, वहां ताड़ के पड़ों की अधिकता थी। हॉल में मलयालम लिपि में बाणभट्ट द्वारा आयुर्वेद पर लिखे ग्रंथ हैं। सामदेव, विश्वकृति, मुहूर्त चिन्तामणि, छंदोमंजरी सहित गंगादास द्वारा हस्तलिखित छन्दोमंजरी लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
कालिदास की मेघदूत, पतंजलि का महाभाष्य समेत कैवल्योपनिषद, अमरकोश, कर्मविपाक के बारे में जानकारी हासिल करने लोग दिल्ली-एनसीआर से आ रहे हैं। चौधरी कहते हैं कि हॉल में आ रहे युवा पाण्डुलिपियों के बारे में जानकारी हासिल कर रहे हैं।
प्रतिदिन डेढ़ हजार से भी ज्यादा लोग दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या छात्र-छात्राओं की है। हॉल में संस्कृत का वृहद शब्दकोश अमरकोश भी देखा जा सकता है। इसमें संस्कृत के लगभग सभी शब्द अर्थ सहित हैं।
ओडि़सा, भुवनेश्वर स्टेडियम में संरक्षित गीत गोविंद माला हॉल नंबर सात में आने वाले लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। ताड़ के पत्तों पर ग्रंथों की रचना के बाद उन्हें माला के रूप में पिरोया गया है। 1817 ईसवी में आमीर खुसरो की हस्थ बेहिस्थ हस्तलिपि, जहांगीर के शासनकाल के दौरान मौलाना ताजरी द्वारा लिखित मदानुल जवाहिर की पाण्डुलिपि भी यहौं है।
ऐसे जानें इतिहास
संगमित्रा कहती हैं कि पाण्डुलिपि मिशन से जुड़े लोगों के साथ-साथ आम लोगों को भी लिपि समझने और पढऩे योग्य बनाने के लिए कोर्स मौजूद हैं, जिसे कोई भी कर सकता है। वे कहती हैं कि 18वीं सदी में देवनागरी को जैसे संस्कृत में मिला दिया गया वैसे ही अन्य लिपियां भी मिला दी गईं। वर्तमान में मोड़ी, नेवाड़ी, शारदा, ग्रंथा, अरबी, पारसियन समेत कई अन्य लिपि को पढऩे में मुश्किल पेश आती है। कोर्स के जरिये लोग इन लिपियों का अध्ययन कर पाण्डुलिपियों को पढ़ सकते हैं और इतिहास के बारे में जान सकते हैं। साथ ही मिशन अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का अध्ययन कर प्रकाशित भी करता है। वर्तमान में जो पाण्डुलिपियां प्रदर्शित की जा रही हैं, उनमें से कई के मूल लेखक कोई और हैं।
यहां आएं तो इन पाण्डुलिपियों को जरूर देखें
ग्रंथ-तर्कग्रंथ
-मलयालम लिपि में। आयुर्वेद पर आधारित। 17वीं सदी में लिखा गया।
ग्रंथ---मुहूर्त चिन्तामणि
भाषा-संस्कृत
लिपि-देवनागरी
विषय-ज्योतिष।
समय-18वीं सदी
छंदोमंजरी
लेखक--गंगादास
भाषा-संस्कृत
लिपि-देवनागरी
समय-17वीं सदी
विषय-छंद
मेघदूत-
भाषा- संस्कृत
लिपि-देवनागरी
समय-17वीं सदी
व्याकरण महाभाष्य
लेखक-पतंजलि
भाषा-संस्कृत
लिपि-देवनागरी
समय-18वीं सदी
अमरकोश
रचनाकार-अमरसिंह
भाषा-संस्कृत
लिपि-देवनागरी
समय-17वीं सदी
विषय-संस्कृत का वृहद शब्दकोश
कर्मविपाक
विषय-धर्मशास्त्र, ग्रंथ में मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का उल्लेख।
समय-19वीं सदी
हस्थ बेहिस्थ
लेखक-अमीर खुसरो
भाषा-परसियन
विषय-गजल