कोरोना काल में संवर रहा पुराने रेल कोच का रूप
सफर के दौरान होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए ट्रेनों के पुराने कोच की सूरत बदलने की कवायद चल रही है। इसके लिए स्वर्ण व उत्कृष्ट दो परियोजनाओं पर काम चल रहा है। स्वर्ण परियोजना के तहत राजधानी व शताब्दी ट्रेनों के पुराने कोच को आकर्षक बनाया गया है। वहीं उत्कृष्ट परियोजना मेल व एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए है। कोरोना संकट के दौरान भी पुराने हो गए कोच को बेहतर बनाया जा रहा है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : सफर के दौरान होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए कोरोना काल में ट्रेनों के पुराने कोच की सूरत बदलने की कवायद चल रही है। उत्कृष्ट परियोजनाओं के तहत मेल व एक्सप्रेस ट्रेनों के पुराने कोच को आकर्षक बनाया जा रहा है।
सफर के दौरान अक्सर यात्री टूटी हुई खिड़की, फटी हुई सीट, गंदे फर्श व बदबूदार शौचालय की शिकायत करते हैं। पुराने हो गए कोच का रखरखाव भी ठीक ढंग से नहीं होता है जिससे यात्रियों का सफर कष्टदायक हो जाता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए रेलवे ने ये दोनों परियोजनाएं शुरू की है।
आहिस्ता-आहिस्ता ट्रेनों में (एलएचबी) लिक हॉफमैन बुश कोच लगाए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी काफी संख्या में आइसीएफ (इंटिग्रेटेड कोच फैक्ट्री) कोच उपलब्ध हैं। इनमें से अधिकांश पुराने हो चुके हैं। कोच के आंतरिक साज-सज्जा में भी बदलाव किया जा रहा है। फटे-पुराने सीट कवर को बदलकर नया लगाया जा रहा है। इसी तरह से कोच के पुराने हो गए फर्श को बदलकर पॉली विनायल क्लोराइड (पीवीसी) फ्लोरिग की जा रही है। कोच के पैनल भी बदलने के साथ ही अंदर पेंटिग लगाई ज रही है। सामान्य लाइटों को बदलकर एलईडी लाइटें लगाने के साथ ही कोच में अग्निशमन उपकरण की भी व्यवस्था की जा रही है।। शौचालय खाली है या नहीं, इसकी जानकारी भी संकेतक से यात्री को मिल जाएगी। इनमें सामान्य शौचालय की जगह जैविक शौचालय लगाए जा रहे हैं।
अधिकारियों का कहना है कि कोरोना काल में अब तक 11 रैक में जरूरी बदलाव करके उसे बेहतर बना दिया गया है। कुछ दिनों पहले बनारस-बरेली का एक रैक भी इस परियोजना के तहत दुरुस्त किया गया है।