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लाल किला हमले का वांछित आतंकी 18 साल बाद गिरफ्तार

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : वर्ष 2000 में लाल किले के अंदर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों द्वारा से

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Jan 2018 10:33 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jan 2018 10:33 PM (IST)
लाल किला हमले का वांछित आतंकी 18 साल बाद गिरफ्तार
लाल किला हमले का वांछित आतंकी 18 साल बाद गिरफ्तार

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : वर्ष 2000 में लाल किले के अंदर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों द्वारा सेना के जवानों पर गोलियां चलाने की साजिश में शामिल फरार आतंकी को गुजरात एटीएस व दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 18 साल बाद बुधवार को आइजीआइ एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया। आतंकी का नाम बिलाल अहमद कावा है। स्पेशल सेल के लोधी कालोनी स्थित कार्यालय में गुजरात एटीएस, सेल व आइबी के अधिकारी उससे पूछताछ कर रहे हैं।

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स्पेशल सेल के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बिलाल (40) के बैंक खाते से हमले में शामिल और आतंकियों के खाते में हवाला के जरिये पैसे भेजे गए थे। बिलाल 18 साल से वांछित था। हमले में शामिल कुछ अन्य आरोपी अब भी फरार हैं। दिल्ली में पहली बार लश्कर के 6 आतंकियों ने 22 दिसंबर 2000 को लाल किले के अंदर सेना पर हमला किया था। एके-47 व हैंड ग्रेनेड से लैश आतंकियों ने रात करीब 9 बजे लाल किले के अंदर चल रहे लाइट एंड साउंड प्रोग्राम के दौरान अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। उस दौरान लाल किले के अंदर सात राजपूताना राइफल्स की कई बटालियन थीं। लाइट एंड साउंड प्रोग्राम देखने दर्शक भी जाते थे। हमले में राजपूताना राइफल्स के तीन जवान अब्दुल्लाह ठाकुर, उमा शंकर व नायक अशोक कुमार की गोलियां लगने से मौत हो गई थी। हमले के बाद सभी आतंकी भागने में सफल हो गए थे। आतंकी मो आरिफ उर्फ अशफाक ने टीम का नेतृत्व किया था। इससे पहले दिल्ली में कोई हमला तो नहीं हुआ था, लेकिन लश्कर आतंकी पकड़े जरूर गए थे। घटना के तुरंत बाद 25 दिसंबर को स्पेशल सेल ने कई आतंकियों को दबोच कर केस को सुलझा लिया था। अशफाक को वर्ष 2005 में कड़कड़डूमा कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी सजा बरकरार रखी है, लेकिन अभी फांसी देने पर अंतरिम रोक लगा दी गई है।

हमले में शामिल श्रीनगर निवासी पिता-पुत्र नजीर अहमद कासिद और फारूक अहमद कासिद तथा पाकिस्तानी नागरिक आरिफ की भारतीय पत्नी रहमाना यूसुफ फारूकी सहित छह दोषियों को निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को वर्ष 2007 में हाई कोर्ट ने पलट दिया था। नजीर और फारूक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, जबकि रहमाना को सात साल कैद की सजा सुनाई गई। उन्हें आरिफ को शरण देने का दोषी ठहराया गया था। हाई कोर्ट ने बाबर मोहसिन बागवाला, सदाकत अली और मतलूब आलम को बरी कर दिया था। इन लोगों को आरिफ को पनाह देने और फर्जी भारतीय पहचान पत्र उपलब्ध कराने के मामले में सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।


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