जानिए- '1729' को हार्डी-रामानुजन नंबर क्यों कहा जाता है, क्या है इस संख्या की खासियत?
Srinivasa Ramanujan Death Anniversary रामानुजन के द्वारा पार्टीशन नम्बर हाइपर जियोमेट्रिक सीरीज मोक-थीटा फंक्शन जैसे विषयों पर जबरदस्त काम किया गया। आज पूरा विश्व उनका ऋणी है। आज भी रामानुजन के द्वारा किये कार्यों पर विश्व के महानतम गणितज्ञ शोध कर नयी इबारत गढ़ रहे हैं।
डा. राजेश कुमार ठाकुर। आपने महान गायक मो. रफी का यह गाना तो अवश्य सुना होगा – ‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे’। यह बात भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के लिए सटीक बैठती है। 102 वर्ष पूर्व भारतीय गणित के ज्ञान के द्वारा विश्व को गणित की एक नई परिभाषा समझाने वाले श्रीनिवास रामानुजन 26 अप्रैल, 1920 में इस दुनिया से अलविदा कह गये।
गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, परिवार का दायित्व, पग-पग पर असफलता और ना जाने क्या-क्या, पर एक बात जो तय थी कि नामागिरी देवी का यह अनन्य भक्त जिसके लिए – बिना ईश्वर की अनुभूति के गणित का कोई अर्थ नहीं, जीवन में अपने गणित के प्रति प्यार, समर्पण से कभी पीछे नहीं हटा। आज का दिन रामानुजन को याद कर उन जैसे गरीब, असहाय छात्रों को हार्डी जैसा बनकर आगे लाने का प्रण लेकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है...
रामानुजन का जन्म इसी घर में हुआ था। इसे 2013 में प्रो. सुसुमुई सुकूराइ ने ढूंढा।
22 दिसंबर, 1887 को श्रीनिवास अयंगर और कोमलात्म्मल के घर में जन्मे श्रीनिवास रामानुजन बचपन से ही गंभीर और ईश्वर में आस्था रखते थे। मां के साथ मंदिर में पूजा पर जाना, ईश्वर की आराधना करना उनका दैनिक कार्य था। रामानुजन के पिता साड़ी की दुकान में मुनीम थे और मां पड़ोस के मंदिर में भजन गाने का काम करती थीं। मंदिर के प्रसाद से घर का एक वक्त खाना चलता। दो कमरे के छोटे से मकान में एक कमरे छात्रों को किराये पर दे दिया था जिससे घर कुछ बेहतर चल सके।
ऐसे घर में जन्मे बालक के द्वारा जब 13 वर्ष की अवस्था में लोनी की त्रिकोणमिति और 15 वर्ष में में जीएस कार की पुस्तक ए सिनोप्सिस आफ़ प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’ के लगभग 6000 सवालों को बिना किसी मदद से कर पाना रामानुजन की प्रतिभा के बारे में बताने के लिए काफी है। गरीबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रामानुजन ने अपने पूरे जीवनकाल में सिर्फ 3 रजिस्टर लिखे जिसमें पहले वो पेंसिल से और बाद में उसी पर हरे रंग की कलम से लिखकर अपना काम चलाते थे। इन तीन रजिस्टर में उन्होंने 3500 के करीब प्रमेय लिखे, परिणाम लिखने के लिए कापी मौजूद न होने के कारण स्लेट पर लिखकर मिटाते थे।
रामानुजन की पत्नी जानकी के द्वारा विश्व के गणितज्ञों को कांस्य प्रतिमा देने के लिए लिखा गया पत्र।
कक्षा दस तक रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती रही परंतु एफए में दो बार असफल हो जाने के कारण वो भी हाथ से जाता रहा। छात्र जीवन में ही रामानुजन ने कई शोध-पत्र इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में लिखे, जिसके कारण उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी पर असफलता तो अच्छे-अच्छे को परेशान करती है और यही रामानुजन के साथ हुआ। एफए में असफल होने के बाद घर से फरार हो गये, लेकिन माता द्वारा हिंदू अख़बार में छपे विज्ञापन को देखकर फिर घर वापस आ गये। एक अंग्रेज प्रोफेसर के सिफारिशी पत्र द्वारा इन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी मिल गयी।
चेन्नई स्थित रामानुजन म्यूजियम।
मद्रास पोर्ट पर खाली समय में गणित को तन्मयता से हल करना और इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में अपने शोधपत्र प्रकाशित करवाना यही उनका पसंदीदा काम था। फिर समय आया 1913, जब उन्होंने जीएस हार्डी को एक पत्र लिखा, जिसमे 120 प्रमेय संलग्न थे; एक ऐसा पत्र जिसे देखकर हार्डी कल्पना के लोक में विचरण करने को मजबूर हो गये और लिटिलवुड को कहने लगे – यदि यह प्रमेय सही नहीं हुए तो लोगों का गणित से विश्वास उठ जायेगा। उस समय के महान गणितज्ञों में से एक हार्डी ने रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया और उनके साथ मिलकर गणित को एक नई ऊंचाई देने और रामानुजन को एफआरएस की डिग्री दिलाने तक का सारा काम करके एक सच्चे गुरु होने का परिचय दिया।
इंग्लैंड में रामानुजन अक्सर बीमार रहते। एक तो वहां ठंड का मौसम, दूसरा रामानुजन का स्वयं खाना बनाकर खाना (प्रथम विश्वयुद्ध की वजह से इंग्लैंड में साग-सब्जी की भरी किल्लत थी) और रोज नहाना। बीमार अवस्था में जब हार्डी रामानुजन से मिलने गये तो उन्होंने टैक्सी के नम्बर प्लेट पर गणित का एक मजेदार परिणाम बता दिया :
1729 = 12 ^3 + 1^3 = 10^3 + 9^3 को आज रामानुजन-हार्डी संख्या कहते हैं। रामानुजन ने इंग्लैंड में रहते हुए अपनी बीमारी से तंग आकार आत्महत्या की कोशिश की और लंदन मेट्रो के सामने कूदने की कोशिश में पुलिस इन्हें पकड़ कर थाने ले आई, जहां हार्डी द्वारा बोले एक झूठ कि रामानुजन एफआरएस है, ने उन्हें आजीवन कैद होने से बचा लिया। हार्डी के साथ उन्होंने 50 से अधिक शोध-पत्र लिखे पर भारत आने के एक वर्ष के अंदर ही उनके जीवन त्याग कर परलोक गमन से देश से गणित का एक कोहिनूर छिन गया।
(डा. राजेश कुमार ठाकुर ने 60 पुस्तकें, 500 से अधिक ब्लॉग, 700 से अधिक लेख लिखे हैं)
(डाइट, दरियागंज, दिल्ली में सहायक प्राध्यापक)