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Jamia Violence: जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम सहित 11 बरी, कोर्ट की राहत के बाद भी जेल से नहीं होगी रिहाई

साकेत कोर्ट ने जामिया में हुई हिंसा मामले में शरजील इमाम को बरी कर दिया है। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों और पुलिस के बीच झड़प के बाद हिंसा भड़क गई। शरजील को 2021 में जमानत मिली थी।

By AgencyEdited By: Nitin YadavSat, 04 Feb 2023 11:48 AM (IST)
Jamia Violence: जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम सहित 11 बरी, कोर्ट की राहत के बाद भी जेल से नहीं होगी रिहाई
शरजील इमाम जामिया हिंसा मामले में बरी, साकेत कोर्ट ने दी राहत। फोटो सोर्स- एएनआई।

नई दिल्ली [रजनीश कुमार पांडेय]। दक्षिणी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दिसंबर 2019 में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़े एक मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर और आठ अन्य को आरोपमुक्त कर दिया गया है। हालांकि एक आरोपित मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया गया है।

साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुल वर्मा ने शनिवार को यह फैसला सुनाया। हालांकि इमाम को अभी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के संबंध में दर्ज अन्य मामले के चलते रिहा नहीं किया गया है और उसे न्यायिक हिरासत में ही रहना होगा।

बता दें कि जामिया नगर इलाके में दिसंबर 2019 में सीएए व एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों और पुलिस के बीच झड़प के बाद भड़की हिंसा के संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।साकेत कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा कि चार्जशीट और तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट देखने के बाद सामने आए तथ्यों से यह पता चलता है कि पुलिस हिंसा के असली साजिशकर्ताओं को पकड़ने में नाकाम रही।

इसके बजाय उन्होंने इमाम, तन्हा और सफूरा ज़रगर को बलि का बकरा बना दिया। इस तरह की पुलिस कार्रवाई ऐसे नागरिकों की आजादी को चोट पहुंचाती है जो अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए जुटते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि शरजील इमाम और आसिफ इकबाल तन्हा को इस तरह के लंबे और कठोर मुकदमे में घसीटना देश और आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है।

ये बताना ज़रूरी है कि असहमति और कुछ नहीं बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित प्रतिबंधों के अधीन भाषण देने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अमूल्य मौलिक अधिकार का विस्तार है। ये एक ऐसा अधिकार है जिसे बरकरार रखने की हमने शपथ ले रखी है। जब भी कोई चीज हमारी अंतरात्मा के खिलाफ जाती है तो हम इसे मानने से इनकार कर देते हैं। ये हमारा फर्ज बन जाता है कि हम ऐसी किसी बात को मानने से इंकार करें जो हमारी अंतरात्मा के खिलाफ है।

सर्वोच्च न्यायालय के 2012 के एक फैसले का उल्लेख करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि अदालत एक ऐसी व्याख्या की ओर झुकने के लिए बाध्य है जो अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करती है। जांच एजेंसियों को असहमति और बगावत के बीच के अंतर को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा असहमति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए न कि दबाया जाना चाहिए।

शर्त केवल यह है कि इस असहमति में हिंसा न शामिल हो। अन्यथा ऐसे लोगों के खिलाफ ऐसे गलत आरोप पत्र दायर करने से बचना चाहिए जिनकी भूमिका केवल एक विरोध का हिस्सा बनने तक ही सीमित थी। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पुलिस ने मनमाने ढंग से भीड़ में से कुछ लोगों को आरोपित और उसी भीड़ के कुछ अन्य लोगों को गवाह के रूप में चुना है। पुलिस का यह चेरी-पिकिंग का तरीका निष्पक्षता के सिद्धांत के लिए हानिकारक है।

आरोपित केवल मौके पर मौजूद थे और उनके खिलाफ कोई आपत्तिजनक सुबूत नहीं था। कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है जो पुलिस के बात की पुष्टि कर सके कि आरोपित किसी भी तरह से अपराध में शामिल थे। वहीं, साजिश के आरोप को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कोई सुबूत पेश नहीं किया जिससे पता चले कि आरोपितों के बीच कोई समझौता या साजिश थी।

अभियोजन पक्ष ने कोई वाट्सएप चैट, एसएमएस या यहां तक कि आरोपित की आपस में बातचीत का सबूत भी नहीं दिया। तस्वीरों और वीडियो में भी सभी 12 आरोपित साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि राज्य का मामला अपूरणीय साक्ष्य से रहित है, मोहम्मद इलियास को छोड़कर, सभी चार्जशीट किए गए व्यक्तियों को मामले में उन सभी अपराधों से आरोपमुक्त किया जाता है, जिनके लिए उन्हें आरोपित बनाया गया था। आगे अदालत ने कहा कि मामले से संबंधित तस्वीरों में इलियास एक जलता हुआ टायर फेंकते हुए दिखा था और पुलिस गवाहों द्वारा उसकी विधिवत पहचान की गई थी। इसलिए आरोपित मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोपपत्र में लगाए गए आरोप तय किए जाएं।

अदालत ने इलियास के खिलाफ आरोप तय करने के लिए मामले की सुनवाई 10 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी।गौरतलब है कि जामिया नगर थाना पुलिस ने इमाम, तन्हा, सफूरा जरगर, मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा खान, मोहम्मद अबुजर, मोहम्मद शोएब, उमैर अहमद, बिलाल नदीम, चंदा यादव और मोहम्मद इलियास के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी।

इमाम पर 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में भड़काऊ भाषण देकर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया था। फिलहाल अभी वह जेल में ही रहेगा क्योंकि वह 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के बड़े साजिश मामले में आरोपित है। मामले में आइपीसी की धारा 143, 147, 148, 186, 353, 332, 333, 308, 427, 435, 323, 341, 120बी और 34 के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी।