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पढ़िये- कैसे उत्तर प्रदेश समेत 3 राज्यों की चुनावी जीत की चाबी दिल्ली में

उत्तर प्रदेश सरकार के होर्डिंग उस दिल्ली सचिवालय के पास लगे हैं जहां मुख्यमंत्री बैठते हैं तो पंजाब सरकार ने अपने होर्डिंग दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास के पास वाली सड़क पर लगा दिए हैं। दिल्ली के लोग भी इन होर्डिंग का मतलब समझ रहे हैं।

By Jp YadavEdited By: Published: Mon, 27 Dec 2021 10:55 AM (IST)Updated: Tue, 28 Dec 2021 07:52 AM (IST)
पढ़िये- कैसे उत्तर प्रदेश समेत 3 राज्यों की चुनावी जीत की चाबी दिल्ली में
पढ़िये- कैसे उत्तर प्रदेश समेत 3 राज्यों की चुनावी जीत की चाबी दिल्ली में

नई दिल्ली, जागरण टीम। दिल्ली को ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है। यहां की खूबी है कि किसी भी राज्य में विधानसभा चुनाव हो, तो दिल्लीवासी उसमें रुचि जरूर दिखाते हैं। अगर पड़ोसी राज्यों में चुनाव होता है तो उसका असर दिल्ली में अधिक दिखता है। लेकिन, इस बार होर्डिंग के मामले में दिल्ली में एक नया माहौल दिख रहा है। उत्तर प्रदेश, पंजाब के साथ-साथ उत्तराखंड को लेकर भी यहां माहौल बन रहा है। इसमें भी खास बात है कि उत्तर प्रदेश सरकार के होर्डिंग उस दिल्ली सचिवालय के पास लगे हैं, जहां मुख्यमंत्री बैठते हैं, तो पंजाब सरकार ने अपने होर्डिंग दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास के पास वाली सड़क पर लगा दिए हैं। दिल्ली के लोग भी इन होर्डिंग का मतलब समझ रहे हैं और इन होर्डिंग को देखकर यह भी महसूस कर रहे हैं कि इन राज्यों में चुनाव नजदीक आ रहा है। दिल्ली में जहां उत्तराखंड और पंजाब के लोगों की संख्या ठीकठाक है, वहीं दिल्ली में रह रहे लोग उप्र के चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं। 

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पाठक की पहचान पर घमासान

नगर निगमों को लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच दुर्गेश पाठक की पहचान को लेकर घमासान शुरू हो गया है। दरअसल, ‘आप’ ने दुर्गेश पाठक को नगर निगमों का प्रभारी बना रखा है। पाठक की पहचान पर विवाद भाजपा के एक बयान पर शुरू हुआ। उत्तरी निगम के महापौर ने एक बयान में कह दिया कि वह नहीं जानते कि दुर्गेश पाठक कौन हैं। उन्होंने उनसे बहस करने से इन्कार कर दिया। इससे पहले पाठक ने उत्तरी निगम के महापौर की चुनौती को स्वीकार कर उनसे बहस करने की बात कही थी। लेकिन, जब महापौर ने दुर्गेश पाठक से यह कहकर बहस करने से इन्कार कर दिया कि उन्हें नहीं जानते हैं तो ‘आप’ नेता भड़क गए और भाजपा की खिंचाई कर दी। दरअसल, भाजपा ने ही ‘आप’ पर बहस का दबाव बढ़ाया था, लेकिन अब पार्टी चुप है।

बढ़ गई सिख नेताओं की चिंता

शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के नेताओं के पाला बदलने से दिल्ली के सिख नेताओं की चिंता बढ़ गई है। मनजिंदर सिंह सिरसा के बाद शिअद बादल के उपाध्यक्ष कुलदीप सिंह भोगल भाजपा में शामिल हो गए हैं। कई अन्य नेताओं के पार्टी छोड़ने की बात कही जा रही है। इससे न सिर्फ शिअद बादल, बल्कि सिखों की राजनीति करने वाली अन्य पार्टियों को अपने लोगों को एकजुट रखने की चिंता सता रही है। दरअसल, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) में दलबदल कानून लागू नहीं है। इससे सभी पार्टियों पर टूट का खतरा मंडरा रहा है। पहले शिअद बादल को लग रहा था कि वह आसानी से डीएसजीएमसी पर तीसरी बार कब्जा जमा लेगा, लेकिन अब उसे अपने नवनिर्वाचित सदस्यों को अपने साथ जोड़े रखने की चुनौती है। इसी तरह से शिअद दिल्ली (सरना) को भी अपने सदस्यों के पाला बदलने का खतरा सता रहा है।

अतिथि शिक्षकों पर राजनीति

नगर निगम चुनाव नजदीक है और इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी तेज होने लगी है। राजनीतिक दल किसी भी विषय को उठाकर एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा कर रही हैं। अतिथि शिक्षकों को नियमति करने का मुद्दा भी इन दिनों गर्म है। कांग्रेस को इस बहाने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने का मौका मिल गया है और इसे वह जोर-शोर से उठा रही है। प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी इसे लेकर बयान देने के साथ ही शिक्षकों के साथ सड़क पर उतर रहे हैं। उनका दावा है कि उनके दबाव में दिल्ली सरकार ने अतिथि शिक्षकों के वेतन में वृद्धि की है, लेकिन यह नाकाफी है। इन्हें नियमित कराने के लिए संघर्ष जारी रहेगा। दरअसल, कांग्रेस को लगता है कि इस मुद्दे को उठाकर वह दिल्लीवासियों को विश्वास दिला सकेगी कि आम जनता की लड़ाई लड़ने को लेकर कांग्रेस गंभीर है। इससे भविष्य में इसे लेकर राजनीति और तेज होगी।


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