एम्स में सिर्फ 13 फीसद कोरोना पीड़ितों को दी गई रेमडेसिवीर
कोरोना के इलाज में अब तक कोई ऐसी दवा नहीं जो पूरी तरह कारगर हो। इस वजह से कई दवाएं इस्तेमाल हो रही हैं। हाल के दिनों में रेमेडिसिविर व टोसिलिजुमैब का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। खासतौर पर निजी अस्पतालों में काफी मरीजों को रेमडेसिविर दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर एम्स के डॉक्टर रेमडेसिविर व अन्य महंगी दवाओं के इस्तेमाल को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। एम्स में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले दो माह में सिर्फ 13 फीसद मरीजों के इलाज में रेमेडिसिविर दवा इस्तेमाल की गई। इस महंगी दवा के बगैर भी मरीज ठीक हो रहे हैं।
रणविजय सिंह, नई दिल्ली
कोरोना के इलाज में अब तक कोई ऐसी दवा नहीं मिल पाई है जोकि पूरी तरह से कारगर साबित हो। इस कारण कई दवाएं इस्तेमाल हो रही हैं। हाल के दिनों में रेमडेसिवीर व टोसिलिजुमैब का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। खासतौर पर निजी अस्पतालों में काफी मरीजों को रेमडेसिवीर दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर एम्स के डॉक्टर रेमडेसिवीर व अन्य महंगी दवाओं के इस्तेमाल को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। एम्स में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले दो माह में सिर्फ 13 फीसद मरीजों के इलाज में रेमडेसिवीर दवा इस्तेमाल की गई। इस महंगी दवा के बगैर भी मरीज ठीक हो रहे हैं।
एम्स के डॉक्टर कहते हैं कि सिर्फ लैब जांच के आधार पर ही मरीज को रेमडेसिवीर या टोसिलिजुमैब दवाएं नहीं दी जानी चाहिए। क्लीनिकल जांच और मरीज की हालत को भी ध्यान में रखकर दवा देनी चाहिए। एम्स के डॉक्टरों ने दो दिन पहले नेशनल ग्रैंड राउंड में 300 मरीजों के इलाज का एक डाटा पेश किया। जिनका इलाज पिछले दो माह में हुआ है। इनमें से 66 मरीजों को कोई लक्षण नहीं था। शेष 234 मरीजों में से 152 को हल्का संक्रमण, 20 मरीजों को मॉडरेट व 62 मरीजों को गंभीर संक्रमण था। सभी गंभीर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के बाद स्टेरॉयड दी गई। इस अध्ययन में पाया गया कि 234 में से सिर्फ 31 मरीजों को रेमडेसिवीर दी गई।
हल्के या मॉडरेट श्रेणी के मरीजों को यह दवा नहीं दी गई। हालत गंभीर नहीं होने के बावजूद सिर्फ एक मरीज को ही यह दवा दी गई। एम्स में कोरोना पीड़ित ऐसे मरीज भी देखे गए, जिनका इंफ्लेमेट्री मार्कर इएल-6 बढ़ा हुआ था। फिर भी उन्हें टोसिलिजुमैब व रेमडेसिवीर दवा देने की जरूरत नहीं पड़ी।
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि यदि मरीज की हालत ठीक है, उसके स्वास्थ्य में गिरावट नहीं हो रही है तो उसे उन दवाओं को देने की जरूरत नहीं है। क्योंकि उन दवाओं का भी साइड इफेक्ट हो सकता है। मरीज की हालत व क्लीनिकल जांच को ध्यान में रखते हुए ही दवाएं देनी चाहिए। यदि शुरुआती दवा से मरीज को फायदा नहीं हो रहा है या फिर हालत और बिगड़ रही है तो दवा बदलकर देनी चाहिए। वैसे एम्स ने सिर्फ 234 मरीजों पर यह आंकलन किया है। इसे बड़े स्तर पर अध्ययन करने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना के इलाज में रेमडेसिवीर के कारगर होने पर सवाल उठाए थे। हालांकि अब अमेरिका के एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने इसे कारगर बताते हुए कोरोना केइलाज में इस दवा के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। इन मरीजों पर होता है दवा का बेहतर असर :
विदेश में हुए शोध में यह पाया गया है कि जो मरीज लो फ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट पर होते हैं उनके इलाज में
रेमडेसिवीर दवा असरदार है। जिन मरीजों को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है उन पर इसे कारगर नहीं पाया गया है।