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इन युवाओं ने बदल डाली पुरानी दिल्ली की आबोहवा, अब ऐसी दिखने लगी है ये जगहें

दिल्ली में कुछ युवा हाथों में झाड़ू लिए सफाई में जुटे हुए हैं। कुछ युवतियां घरों में जाकर लोगों को गली में कूड़ा न फेंकने के बारे में समझा रही है।

By Edited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 07:52 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 02:20 PM (IST)
इन युवाओं ने बदल डाली पुरानी दिल्ली की आबोहवा, अब ऐसी दिखने लगी है ये जगहें
इन युवाओं ने बदल डाली पुरानी दिल्ली की आबोहवा, अब ऐसी दिखने लगी है ये जगहें

नई दिल्ली, [नेमिष हेमंत]। मुगलकालीन पुरानी दिल्ली की आबोहवा बदल रही है। गलियों में स्वच्छता की बयार है। कुछ युवा हाथों में झाड़ू लिए सफाई में जुटे हुए हैं। कुछ युवतियां घरों में जाकर लोगों को गली में कूड़ा न फेंकने के बारे में समझा रही हैं। सफाई आधा ईमान है, 'कूड़ा कूड़ेदान में ही डालें' और गली में गुटखा खाकर न थूकें' जैसे जागरूकता लाने वाले नारे आकर्षक तरीके से दीवारों, दरवाजों और शटर पर नजर आ रहे हैं।

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साफ-सुथरी संकरी गलियों में रखे डस्टबिन और लाउडस्पीकर से गूंजती गलियों को साफ रखने वाली आवाज। यह बदलता जामा मस्जिद क्षेत्र है। कुछ पढ़े-लिखे और जागरूक युवाओं ने इलाके की सफाई की मुहिम को अपने जीवन में शामिल कर लिया है। इसके चलते कई गलियों और मोहल्ले की तस्वीर बदल चुकी है। कूड़े के ढेर की जगह चमकतीं गलियां और मुस्कराकर स्वागत करते लोग मिलते हैं। कूड़े नहीं हैं तो बच्चों के खेलने की जगह थोड़ी बड़ी हो गई है। नौ महीने में बदली तस्वीर इस बदलाव के पीछे 'मरहम' संस्था से जुड़े युवाओं की वह टोली है जो संकरी गलियों की दशा बदलने की मुहिम अपने हाथों में लिए हुए हैं। इस बदलाव के पीछे नौ महीनों की अथक मेहनत और जज्बा है।

जब इन युवाओं ने यह मुहिम शुरू करने की ठानी तो यह समझ लिया था कि गंदगी के खिलाफ यह लड़ाई आसान नहीं है, बल्कि वर्षो खप जाएंगे। किसी को, कभी तो, कहीं से इसकी शुरुआत करनी थी। तो हम क्यों नहीं, के जज्बे से इस जंग का आगाज हुआ। युवाओं की टोली जिसमें इर्तजा कुरैशी, सादिया सईद, अनम हसन, वकार अहमद और जव्वाद इकबाल हैं। सभी पढ़े-लिखे और कुछ अच्छे पदों पर हैं। इनमें से कुछ समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। वकार अहमद बताते हैं कि संकरी गलियों में बसी पुरानी दिल्ली की गलियां गंदगी के लिए बदनाम हैं। लोग सफाई कर्मचारियों और नगर निगम को दोष देकर आगे बढ़ लेते थे। हकीकत ये है इसके लिए यहां रहने वाले लोग ही जिम्मेदार हैं। अगर उनमें बदलाव आ गया तो तस्वीर बदल जाएगी और ऐसा हुआ भी।

नौ महीने पहले जब अभियान शुरू करने के बारे में सोचा गया तो पहले गलियों का व्यापक सर्वेक्षण किया गया। गंदगी के कारणों और उसके विकल्प पर गहन विचार किया गया। टीम के सदस्यों ने रसोई के कचरे से खाद बनाने और दीवारों पर स्वच्छता का संदेश लिखने के लिए कैलीग्राफी सीखी। फिर आरडब्ल्यूए के साथ बैठक की, जिसमें तकरीबन 20 आरडब्ल्यूए के सदस्य शामिल हुए और सहयोग के लिए सभी ने हामी भरी।

तीन महीने पहले इसकी शुरुआत कटरा गोकुल शाह से हुई। इसमें करीब 100 घर थे। टीम के सदस्य हर घर में गए। दुकानदारों से मिले। महीनों से जमें मलबे और कूड़े को गलियों से हटाया गया। कूड़ा जमा होने वाले स्थानों पर डस्टबिन रखे गए। दीवारों, शटर और दरवाजों पर स्वच्छता के संदेश लिखे गए। ये लोग बाकायदा लाउडस्पीकर लेकर गली-गली घूमे। लोगों को बताया कि कूड़ा 10 बजे से पहले कूड़ेदान में डाल दें, क्योंकि तब तक सफाई कर्मचारी कूड़ा उठाने आ जाता है। इसके बाद कूड़ा कूड़ेदान में ही डाले।

आज कटरा गोकुल शाह की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। गलियों में दीवारों के सहारे लगाए गए वर्टिकल गार्डन अलग ही आभा दे रहा है। साफ-सुथरी सड़क और स्वच्छता का संदेश देती दीवारें लोगों के आकर्षण के केंद्र में हैं। यहां रहने वाले लोग भी सफाई के महत्व को समझने लगे हैं और मिलजुल कर गलियों को साफ रखने लगे हैं। इसके बाद अभियान पहाड़ी इमली पर शुरू हुआ। यहां भी इसी तरह का अभियान चल रहा है। इस मुहिम से जुड़ी सादिया सईद बताती हैं कि लोगों को समझाना और जवाबदेह बनाना आसान नहीं था, लेकिन यह हुआ।

अब लोग कूड़ा फेंकने पर टोकना शुरू कर देते हैं। पहले लोग टोकते नहीं थे। इस कारण कूड़े के ढेर लग जाते थे। अब 99 फीसद तक गलियां साफ हैं। इर्तजा ने बताया कि उनकी इस मुहिम को पुरानी दिल्ली में व्यापक समर्थन मिल रहा है। कई आरडब्ल्यूए उनसे संपर्क कर रहे हैं, लेकिन पैसे की कमी और संसाधन आड़े आ रही है। इसलिए एक-एक मोहल्ला ही लेकर आगे बढ़ रहे हैं।


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