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नोबेल पुरस्कार विजेता एलिजाबेथ ने जामिया में दिया व्याख्यान

जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एमएमएजे अकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडी•ा ने हाल ही में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण में बदलाव पैदा करना मानवीय परीप्रेक्षय एवं नागरिक समाज की भूमिका विषय पर नोबल पुरस्कार विजेता एलिजाबेथ माइनर के व्याख्यान का आयोजन किया गया। एलिजाबेथ इंटरनेशनल कैंपेन टू अबॉलिश न्यूक्लेयर वैपन (आइसीएएन) की सदस्य भी रह चुकी हैं। एलिजाबेथ आइसीएएन में उस टीम की सदस्य थी जिसे वर्ष 2017 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह ब्रिटेन आधारित उस गैर सरकारी संगठन की सलाहकार हैं जो व्यापक विनाश के हथियारों पर कड़ी सार्वजनिक निगरानी रखता है और उन्हें नष्ट किए जाने के लिए मुहिम चलाता है। यह संगठन ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की सलाह देता है जिनसे ऐसे विनाशकारी हथियारों से आम नागरिकों की सुरक्षा की जा सके। इस व्याख्यान की अध्यक्षता जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर अनुराधा चिनॉय ने की।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Apr 2019 08:13 PM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 08:13 PM (IST)
नोबेल पुरस्कार विजेता एलिजाबेथ ने जामिया में दिया व्याख्यान
नोबेल पुरस्कार विजेता एलिजाबेथ ने जामिया में दिया व्याख्यान

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एमएमएजे एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज ने बुधवार को 'अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण में बदलाव पैदा करना: मानवीय परिप्रेक्ष्य एवं नागरिक समाज की भूमिका' विषय पर नोबेल पुरस्कार विजेता एलिजाबेथ माइनर के व्याख्यान का आयोजन किया। व्याख्यान की अध्यक्षता जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर अनुराधा चिनॉय ने की।

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इस मौके पर एलिजाबेथ माइनर ने कहा कि हथियारों में मानवीय परिप्रेक्ष्य संबंधी आंदोलन की शुरुआत नौवें दशक में हुई थी। उस समय मुख्य आंदोलन ऐसी बारूदी सुरंगों के खिलाफ था, जो देशों की सीमाओं के आस-पास होती थीं और उनकी चपेट में आने से लोगों की मौत हो जाती थी। 64 देशों में दस करोड़ बारूदी सुरंगे बिछी हुई थीं। इनमें सबसे अधिक अफगानिस्तान और अंगोला में थीं। एक बारूदी सुरंग बिछाने में पांच अमेरिकी डॉलर का खर्च आता था, लेकिन उसे निष्क्रिय करने में 100 अमेरिकी डॉलर लगते थे। बारूदी सुरंगों के खिलाफ बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई गई, जिसमें राजकुमारी डायना सहित कई हस्तियों ने सहयोग किया। क्लस्टर बमों, परमाणु हथियारों, ड्रोन एवं किलर रोबोट जैसे नए हथियारों के खिलाफ भी अभियान छेड़ा गया। तथ्यों और अनुसंधानों से इन हथियारों से मानवीय परिप्रेक्ष्य में होने वाले विनाश की आशंकाओं को सामने लाया गया और इन पर प्रतिबंध लगाने की नैतिक बहस शुरू हुई। इसके चलते 1972 में जैविक हथियारों, 1993 में रासायनिक हथियारों और 1997 में बारूदी सुरंगों व 2008 में क्लस्टर बमों पर प्रतिबंध लगाने में मदद मिली। आइसीएएन की रह चुकी हैं सदस्य

एलिजाबेथ परमाणु हथियारों को हतोत्साहित करने वाले इंटरनेशनल कैंपेन टू एबॉलिश न्यूक्लियर वेपन (आइसीएएन) की सदस्य रह चुकी हैं। वह आइसीएएन की उस टीम की सदस्य थीं, जिसे वर्ष 2017 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह ब्रिटेन आधारित उस गैरसरकारी संगठन (आर्टिकल 36) की सलाहकार हैं, जो व्यापक विनाश के हथियारों पर कड़ी सार्वजनिक निगरानी रखता है और उन्हें नष्ट करने के लिए मुहिम चलाता है। यह संगठन ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की सलाह देता है जिनसे ऐसे विनाशकारी हथियारों से आम नागरिकों की सुरक्षा की जा सके।


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