स्कूल के शौचालय में सफाई नहीं तो छात्राओं ने कर ली छुट्टी
दिल्ली सरकार के दक्षिणी दिल्ली के छह स्कूलों की 600 छात्राओं पर जनवरी 2016 में अध्ययन किया गया था, जिसमें यह बात सामने आई की इनमें से 40 फीसद छात्राएं मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं गई। इन छात्राओं ने उस दिन छुट्टंी कर ली। यह अध्ययन 2015 में तीन महीने के दौरान हमदर्द इंस्टि्टयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च की ओर से किया गया था। जो हाल में जरनल ऑफ फैमिली एंड कम्युनिटी मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दिल्ली सरकार के दक्षिणी दिल्ली के छह स्कूलों की 600 छात्राओं पर जनवरी 2016 में अध्ययन किया गया था, जिसमें यह बात सामने आई की इनमें से 40 फीसद छात्राएं मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं गई। इन छात्राओं ने उस दिन छुट्टंी कर ली। यह अध्ययन 2015 में तीन महीने के दौरान हमदर्द इंस्टि्टयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च की ओर से किया गया था, जो हाल में जरनल ऑफ फैमिली एंड कम्युनिटी मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
यह अध्ययन संस्थान की छात्रा अदिति वशिष्ठ की ओर से किया गया। इस कार्य में कम्युनिटी मेडिसन विभाग की प्रमुख डॉ. रंभा पाठक ने उनका मार्गदर्शन किया। डॉ. पाठक ने कहा कि महीने में एक बार मासिक धर्म पर शिक्षकों को स्कूल में पढ़ने वाली 12 से 14 साल की छात्राओं के लिए दो घंटे का सेमिनार का आयोजन करना चाहिए। हमारे समाज में आज भी यह मानसिकता पनप रही है कि मासिक धर्म आने पर बच्चियों को जागरूक नहीं किया जाता है। यह बात अध्ययन के दौरान सामने आई। 76 फीसद छात्राओं ने दर्द और बेचैनी की वजह से ली छुट्टंी -
डॉ. रंभा ने बताया कि अध्ययन के दौरान दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली के छह स्कूलों की 600 बच्चियों से यह सवाल पूछे गए थे कि वह किन वजहों से स्कूल से छुट्टंी लेती हैं। इस अध्ययन का मकसद यह था कि 2015-2016 के दौरान स्वच्छ विद्यालय की बात उठी थी। इस संदर्भ में हमारी तरफ से अध्ययन किया गया। इसमें 8वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की छात्राओं को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 12 से 18 वर्ष के बीच है। इसमें यह बात सामने आई की 76 फीसद बच्चियां मासिक धर्म के दौरान दर्द और बेचैनी के कारण स्कूल नहीं पहुंचीं। स्कूलों की हालत जर्जर, शौचालयों में नहीं थी पानी की सुविधा
डॉ. रंभा ने बताया कि अध्ययन के दौरान छह स्कूलों की कई बच्चियों ने शिकायत की थी कि स्कूलों में शौचालयों में पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। शौचालयों में न तो साबुन हैं और न साफ-सफाई है। उसमें साफ पानी की सुविधा भी नहीं है। आगे क्या करेंगे -
डॉ. रंभा ने कहा कि हम एक और अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें यह पता किया जाएगा कि जिन स्कूलों में 2016 में स्टडी की गई थी, उनके क्या हालात हैं। क्या उनमें कुछ सुधार हुआ है। हमने जो सिफारिशें लागू करने के लिए कहीं थी, क्या वह लागू हो पाई हैं। जनवरी 2019 तक यह अध्ययन सामने लाने का प्रयास करेंगे।