एनसीआर में स्मॉग नहीं फॉग की चादर
- दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में वायु प्रदूषण से बने हालात व समाधान विषय पर हुआ जागरण विम
- दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में वायु प्रदूषण से बने हालात व समाधान विषय पर हुआ जागरण विमर्श का आयोजन
ललित मोहन बेलवाल, नोएडा :
बीत कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर के लोगों का दम जहरीली हवा से घुट रहा है। मौसम वैज्ञानिक, पर्यावरण एजेंसियां, मीडिया इसे स्मॉग का असर बता रही हौं। मगर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अपर निदेशक दीपाकर साहा का मानना है कि यह स्मॉग नहीं फॉग है। उन्होंने पराली को भी इसके लिए जिम्मेदार मानने से इन्कार किया है। साहा सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में एनसीआर में वायु प्रदूषण से बने हालात व समाधान विषय पर आयोजित जागरण विमर्श में बतौर अतिथि वक्ता पहुंचे थे।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के इस मर्ज की एकमात्र दवा शुद्ध हवा है। मनुष्य कुछ भी न करे तो भी प्रदूषण फैलाता है, क्योंकि वह सांस लेते समय आक्सीजन लेता और कार्बन डाइआक्साइड छोड़ता है। उन्होंने आजकल के स्कूलों का उदाहरण देते हुए बताया कि बंद कक्षाओं में कार्बन डाइआक्साइड का स्तर बढ़ जाने से एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब हो जाता है। इसका असर बच्चों की एकाग्रता और स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इस कारण कुछ बच्चे क्लास रूम में ही उंघने लगते हैं और पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते।
1952 का ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन
साहा ने एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने दावा किया कि एनसीआर में छाई जिस धुंध को स्मॉग कहा जा रहा है वह दरअसल फॉग है। बकौल साहा स्मॉग में सल्फर डाइआक्साइड होती है जैसा कि 1952 के ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन के दौरान हुआ था। तब 5 से 9 दिसंबर 1952 के दौरान पूरे लंदन में स्मॉग की घनी परत छा गई थी और 4000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। ऐसा इसलिए हुई क्योंकि सर्दियों में लोग खुद को गर्म रखने के लिए सामान्य से काफी ज्यादा कोयला जलाते थे। साथ ही कोयले से जलने वाले पावर स्टेशनों के कारण वातावरण में सल्फर डाइआक्साइड की मात्रा बहुत बढ़ गई थी। दिल्ली की स्थिति ऐसी नहीं है। यहा बहुत अधिक मात्रा में छोटे-छोटे धूल के कण वातावरण की नमी से मिलकर फॉग बनाते हैं, जिस कारण दृश्यता घट गई है। स्मॉग के कारण वातावरण का तापमान बढ़ता है, जबकि फॉग के कारण ठंड महसूस होती है।
भौगोलिक स्थिति भी जिम्मेदार
दिल्ली की भौगोलिक स्थिति भी इसके लिए जिम्मेदार है। इस मौसम में यहा हवा उत्तर व दक्षिण दिशा से आती है। दक्षिण की ओर से आने वाली हवा हिमालय के कारण दिल्ली से बाहर नहीं जा पाती है, इससे उत्तर की ओर से आने वाली हवा भी घूमकर यहीं लौट आती है। वाहनों-जेनरेटर का धुआ, औद्योगिक गतिविधियों और निर्माण कार्य आदि से उठने वाली धूल हवा में मिल रही है। यह प्रदूषित हवा बाहर नहीं निकल पा रही है, जिससे यह स्थिति बन गई है।
सिर्फ पराली ही नहीं है कारण
दीपाकर साहा ने स्पष्ट किया कि जब दिल्ली में हवा आने की ही जगह नहीं है तो यहां की हवा को जहरीला बनाने के लिए पराली का धुआ कैसे दोषी है। उन्होंने बताया कि पराली जलाने से सल्फर डाइआक्साइड नहीं निकलती इसलिए इसे स्मॉग के लिए जिम्मेदार बिल्कुल नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने बताया कि पराली साल में दो बार जलाई जाती है, लेकिन समस्या सिर्फ इसी मौसम में होती है।
ऑड-इवेन व कृत्रिम बारिश नहीं है समाधान
ऑड-इवेन व कृत्रिम बारिश क्षणिक समाधान हैं। साहा के मुताबिक जैसे ही यह प्रयोग बंद किया जाएगा, स्थिति जस की तस हो जाएगी। क्योंकि 15 अक्टूबर से 15 दिसंबर के बीच मौसम दिल्ली-एनसीआर का साथ नहीं देता तो हम सभी का प्रयास होना चाहिए कि हमारी तरफ से बिल्कुल भी प्रदूषण न फैले। हमें इस वक्त औद्योगिक गतिविधियां, निर्माण कार्य, थर्मल पावर प्लाट व जेनसेट आदि को बंद रखना चाहिए। कूड़ा न जलाएं, वाहन कम इस्तेमाल करें, तभी हालात पर काबू पाया जा सकेगा।