स्वास्थ्य पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को लेकर गंभीर नहीं सरकार
रणविजय सिंह, नई दिल्ली : दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा जहरीली होने पर इन दिनों पर्यावरणविद, डा
रणविजय सिंह, नई दिल्ली :
दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा जहरीली होने पर सबकी चिंता प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर ही है। फिर भी हैरानी की बात यह है कि इस दुष्प्रभाव के संबंध में कोई ठोस आंकड़ा नहीं है। प्रदूषण से कितने लोग और किन-किन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, यह जानने के लिए देश में कोई पैमाना तय नहीं है, जबकि प्रदूषण कई गंभीर बीमारियों का बड़ा कारण बन रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि स्वास्थ्य पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव के संबंध में सभी आकलन प्राप्त करने के लिए बड़े स्तर पर शोध की दरकार है, लेकिन इस पर सरकार गंभीर नहीं है।
देश में पर्यावरण प्रदूषण के आकलन का पैमाना भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय मानकों से अलग है। डब्ल्यूएचओ ने हवा की गुणवत्ता मापने के लिए पीएम (पार्टिकुलेट मैटर)-10 का सामान्य स्तर 24 घंटे में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम- 2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित किया है। पीएम 2.5 की वार्षिक मात्रा 10 और पीएम-10 की वार्षिक मात्रा 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित है, जबकि यहां पीएम-10 का सामान्य स्तर 100 और पीएम-2.5 का सामान्य स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित है। पर्यावरणीय व व्यावसायिक स्वास्थ्य केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. टीके जोशी कहते हैं कि डब्ल्यूएचओ के मानकों पर खरा उतरना यहां कभी संभव नहीं है। इसलिए हवा की गुणवत्ता का मानक भी सही तय नहीं किया गया है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार वायु प्रदूषण फेफड़ों, हृदय, तंत्रिका तंत्र, मस्तिष्क, पाचन तंत्र और त्वचा पर असर डालता है। इससे अस्थमा, सांस की अन्य बीमारियां, कैंसर, हृदय की बीमारियां व लकवा (स्ट्रोक) और मानसिक बीमारियां होने का खतरा रहता है। फिर भी देश के संस्थानों में प्रदूषण के दुष्प्रभाव को लेकर कोई बड़ा शोध नहीं हुआ है। सिर्फ विदेशी संस्थानों द्वारा अनुमान लगाए जाते रहे हैं। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. विवेकानंद झा ने बताया कि बीमारियों की वैश्विक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में हर साल 18 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण के कारण हर साल करीब 30 हजार लोग समय से पहले जान गंवा देते हैं, लेकिन यह सब अनुमान पर आधारित है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के आकलन के लिए छोटे-छोटे शोध हुए हैं, लेकिन उनसे सही स्थिति का आकलन मुश्किल है। डॉ. विवेकानंद झा ने बताया कि भारत में इस विषय पर कोई बड़ा शोध नहीं हुआ, जिससे यह पता चल सके कि स्वास्थ्य पर प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ रहा है।
क्या कहती है डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
पूरे विश्व में प्रदूषण से 34 फीसद लकवा की बीमारी से, 36 फीसद फेफड़े के कैंसर से और 27 फीसद मौतें हृदय की बीमारी से होती हैं।