World Cancer Day : कभी खुद थी पीड़ित, अब मरीजों को बांट रहीं मुस्कान
इंदिरा जसूजा इंडियन कैंसर सोसायटी के गुरुग्राम चैप्टर की इंचार्ज हैं। वे मरीजों के बीच जाकर जिंदगी को जीतने की राह ही दिखातीं हैं। इसे साथ ही आर्थिक मदद करती हैं।
गुरुग्राम [पूनम]। उनके चेहरे की चमक और मुस्कुराहट, बड़े प्यार से गले लगाना, अपनापन और वात्सल्य लुटाती ममता। यह सब जिदंगी की जंग लड़ रहे लोगों को जीवन के लिए लड़ने की हिम्मत दे जाता है। एक समय खुद कैंसर से जूझ कर उस पर विजय पाने वाली इंदिरा जसूजा आज कैंसर पीड़ितों की सेवा में जुटी हैं। कैंसर से विजय पाने में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण काफी कारगर साबित होता है।
लोगों के अनुसार इस बुजुर्ग महिला का जोश और जीवंतता ही कैंसर पीड़ितों को जीवन उम्मीद दे जाता है। 81 वर्ष की उम्र में भी पूरे उत्साह के साथ कैंसर के मरीजों को जीने का और स्वस्थ होने का जज्बा भरती हैं। उनके परिवार को भावनात्मक संबल देने और आर्थिक मदद के लिए भी काम कर रही हैं।
पेशे से मनोवैज्ञानिक
इंदिरा जसूजा इंडियन कैंसर सोसायटी के गुरुग्राम चैप्टर की इंचार्ज हैं। वे अस्पतालों में मरीजों के बीच जाकर जिंदगी को जीतने की राह ही नहीं दिखातीं बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की सहायता भी करती हैं। पेशे से मनोवैज्ञानिक रह चुकी 81 वर्षीया इंदिरा जसूजा गुरुग्राम के प्रमुख अस्पतालों के कैंसर वार्ड के मरीजों से मिलकर उन्हें उम्मीद देती हैं।
हो चुकी है सम्मानित
गुरुग्राम के अलावा दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न हिस्सों में कैंसर जागरुकता अभियान में शामिल होती हैं। जागरूकता अभियान, कैंसर पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद और अस्पतालों में मरीजों और उनके परिजनों को भावनात्मक बल देने में इंदिरा जसूजा ने इतना प्यार हासिल किया है कि हर बार कैंसर पर विजय पाने वालों के कार्यक्रम फेस्टिवल ऑफ होप में इन्हें हर बार सम्मानित किया जाता रहा है।
मुस्कुराहट ही देती है जीने की आशा
गुरुग्राम के डीएलएफ फेज वन स्थित सिल्वर ओक सोसायटी में रहती हैं। उनकी मुस्कुराहट जीवन के प्रति आशा का संदेश कैंसर के रोगियों को बल देता है। आर्टिमिस, फोर्टिस और मेडिसिटी के कैंसर मरीजों के बीच इंदिरा काम करती रही हैं। करीब 22 वर्ष पहले इनके मन में कैंसर पीड़ितों की सेवा का विचार तब आया जब इन्होंने खुद कैंसर पर विजय पाई।
खुद हुईं थी कैंसर का शिकार
वे बताती हैं कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। क्योंकि मैं जागरूक थी, इसलिए मैंने इसकी पहचान की, इलाज कराया और आज सबके सामने हूं। कैंसर को लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है। महिलाओं को खास तौर पर सतर्क रहने की जरूरत है। मैं जब कैंसर से बाहर निकली तब उसके बाद कैंसर पीड़ित मरीजों के लिए काम करना शुरू कर दिया।
काम में मिलता है सबका सहयोग
इंदिरा जसूजा अपनी युवावस्था में मनोवैज्ञानिक के तौर पर मुंबई में गैर सरकारी संगठनों में लोगों को सलाह दिया करती थीं। अब कैंसर पीड़ितों के लिए काम कर रही हैं। वे बताती हैं कि वे जब कैंसर पीड़ितों की सहायता करती हैं तो डॉक्टर, केमिस्ट, अस्पताल सभी सहयोग करते हैं। इस सेवा में सब शामिल हो जाते हैं। इससे जरूरतमंदों का इलाज होना आसान हो जाता है। सोसायटी को दान भी मिलते हैं और डॉक्टर अपनी फीस, केमिस्ट दवाओं के रियायती दर, अस्पताल सर्जरी आदि की फीस माफ कर देते हैं। मनोवैज्ञानिक और काउंसलर रह चुकी हूं इसलिए मरीजों के परिवारों को भावनात्मक रूप संबल देने में सहायक बन जाती हूं।