देश की रक्षा के लिए दिया सर्वोच्च बलिदान, साथियों की जान बचाने के लिए दी अपने प्राणों की आहुति
यशपाल ने अपने साथी अनुज कश्यप व संतोष को अपनी ओट में लिया और फायरिंग का जबाव देने ही वाले थे कि दुश्मन की गोलियां उनके सीने को छलनी कर गईं।
हापुड़ [ओमपाल राणा]। देश की आन-बान और शान पर जान न्यौछावर करने वाले अमर हो जाते हैं। वे ऐसा इतिहास रच जाते हैं, जिन पर पीढ़ियां गर्व करती हैं। ऐसी ही अमिट छाप छोड़ी है देश के जांबाज यशपाल सिसौदिया ने। महज चौबीस वर्ष की उम्र में देश की सेवा करते हुए वह आतंकी हमले में शहीद हुए। शहादत से पूर्व उन्होंने अपने दो साथियों की जान अपनी जान पर खेलकर बचाई थी। हापुड़ के गांव इकलैड़ी निवासी यशपाल ने देश की रक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
ताऊ सुनाते थे वीरता की कहानियां
एक जुलाई 1983 को जगन सिंह सिसौदिया के घर यशपाल ने जन्म लिया था। बचपन से ही उनके अंदर राष्ट्रप्रेम की बयार बह रही थी। ताऊ सेना में थे और उनसे वह वीरता की कहानियां सुनते थे। इन वीरगाथाओं से वह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने बचपन में ठान लिया था कि वे सैनिक बनेंगे। देश की सेवा के लिए यशपाल 27 दिसंबर 2001 को सेना में भर्ती हुए।
भारत माता की जय का उद्घोष कर न्यौछावर कर दिए प्राण
वर्ष 2007 में वह साथियों के साथ जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर पट्टन पर पोस्टिंग के लिए जा रहे थे। उनकी गाड़ी जैसे ही बारामुला पहुंची आतंकी हमला हो गया। भारतीय जवान कुछ समझ पाते कि गोलियों की बौछार शुरू हो गई। उन्हें संभलने का भी मौका नहीं मिला। यह देखकर यशपाल ने अपने साथी अनुज कश्यप व संतोष को अपनी ओट में लिया और फायरिंग का जबाव देने ही वाले थे कि दुश्मन की गोलियां उनके सीने को छलनी कर गईं। उन्होंने भारत माता की जय का उद्घोष कर अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए।
शहादत से सात माह पूर्व हुई थी शादी
मां परमेश्वरी देवी बताती हैं कि यशपाल के ताऊ रतन सिंह सेना में कर्नल थे। वह उनसे ही देश सेवा की बातें सुनता रहता था। उसने बचपन से ही सेना में भर्ती होने की बात ठान ली थी। 27 दिसंबर 2001 को सेना में भर्ती होने के बाद साढ़े पांच साल देश की सेवा कर यह वीर शहीद हो गया। शहादत से केवल सात माह पूर्व ही 2 नवंबर 2006 को उसकी शादी अर्चना के साथ हुई थी।
मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं
अर्चना बताती हैं कि एक दिन भावुक होकर उन्होंने कहा कि घर पर सब कुछ है तो सेना की नौकरी क्यों नहीं छोड़ देते। इस पर यशपाल ने जबाव दिया कि मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, लेकिन भारत माता की सेवा करना नहीं छोड़ सकता। देश सेवा का सुनहरा मौका नसीब वालों को हासिल होता है। अगर मेरा एक भी बेटा हुआ तो उसे भी देश सेवा के लिए समर्पित कर दूंगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनका बेटा पैदा तो हुआ, लेकिन उनके शहीद होने के करीब आठ माह बाद।
नहीं मिला फोन करने का मौका
जिस दिन यशपाल शहीद हुए उससे एक दिन पूर्व ही उनकी घर पर फोन पर बात हुई थी। उस समय वह नाश्ता कर रहे थे, इसलिए कहा कि जरा नाश्ता कर लूं। कल श्रीनगर जाऊंगा तो रास्ते में बात करूंगा, लेकिन इससे पहले ही वह शहीद हो गए।
छोटे भाई से करते थे बहुत प्रेम
यशपाल अपने छोटे भाई दुष्यंत से बहुत प्रेम करते थे। उसके लिए रिश्ते की साली को पसंद कर रखा था, लेकिन शादी नहीं हो सकी। भाई की शहादत के बाद दुष्यंत ने अर्चना से शादी करके उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
बेटे की शहादत पर गर्व करते थे पिता
भाई दुष्यंत सिसौदिया ने बताया कि भैया की शहादत पर स्वर्गीय पिता जी को बहुत गर्व था। वे कहते थे कि यह गर्व का विषय है कि वह एक शहीद के पिता हैं। उन्होंने अपने ही खेत में यशपाल सिंह सिसौदिया की प्रतिमा लगवाई थी। वे बताते हैं कि सूडान मिशन में भी भैया शामिल रहे थे।
किसान और जवान से था प्यार
दुष्यंत बताते हैं कि जब भी भैया छुट्टी पर आते थे तो दिन-रात एक करके खेती के कार्य में जुटे रहते थे। भैया कहते थे कि वे सीमा पर जवान हैं तो क्या हुआ गांव में तो वे हमेशा किसान ही हैं।