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दिल्ली हाई कोर्ट ने माना, विश्व बैंक संविधान के तहत सरकारी एजेंसी नहीं है; जानिए पूरा मामला

न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने माना है कि विश्व बैंक संविधान के अनुच्छेद 12 के प्रयोजनों के लिए एक सरकारी एजेंसी नहीं है। पीठ ने स्पष्ट किया कि जब आप सरकारी एजेंसी कहते हैं तो इसका मतलब सरकार का एजेंट होता है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 24 Oct 2021 09:34 AM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 09:34 AM (IST)
विश्व बैंक संविधान के तहत एक सरकारी एजेंसी नहीं है : हाई कोर्ट

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। पुन: निविदा प्रक्रिया में भाग लेने से रोकने के उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम आदेश पारित किया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने माना है कि विश्व बैंक संविधान के अनुच्छेद 12 के प्रयोजनों के लिए एक सरकारी एजेंसी नहीं है। पीठ ने स्पष्ट किया कि जब आप सरकारी एजेंसी कहते हैं, तो इसका मतलब सरकार का एजेंट होता है। यह सरकार का एक विस्तारित अंग है। कल्पना के किसी भी हिस्से से आप यह नहीं कह सकते कि विश्व बैंक भारत की एक विस्तारित शाखा है।

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पीठ ने कहा कि जहां तक पुन: निविदा प्रक्रिया का संबंध है याचिकाकर्ता को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, जब तक कि प्रतिवादी निविदा शर्तो में संशोधन कर ऐसे सभी बिडर को निविदा में हिस्सा लेने से न रोके जो विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था से प्रतिबंधित किए गए हों।

पीठ ने कहा कि जहां तक विश्व बैंक का संबंध है अदालत का विचार है कि विश्व बैंक या किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय को सरकारी एजेंसी के रूप में नहीं माना जा सकता है। यही कारण है कि इनमें से कोई भी अंतरराष्ट्रीय निकाय भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों से बाध्य नहीं है।

भारत सरकार उनके मामलों, वास्तविक या व्यापक पर नियंत्रण नहीं रखती है। यही कारण है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 और 226 के तहत उन्हें हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं माना गया है, क्योंकि उन्हें उक्त अभिव्यक्तियों के अर्थ में राज्य या अन्य प्राधिकरण नहीं माना जाता है।

यह है मामला

पीठ ने उक्त टिप्पणी और आदेश एक कंपनी की चुनौती याचिका पर दिया। याचिकाकर्ता ने एनडीएमसी द्वारा उसके द्वारा लगाई गई बोली को खारिज करने और विश्व बैंक द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के आधार पर उन्हें किसी भी पुन: निविदा प्रक्रिया में भाग लेने से अयोग्य घोषित करने के फैसले को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने दलील दी थी कि विश्व बैंक समूह द्वारा प्रतिबंध सरकार या किसी सरकारी एजेंसी द्वारा रोक लगाने के लिए नहीं है।

उन्होंने कहा कि निकाय एक संघीय एजेंसी नहीं है। वहीं, एनडीएमसी की स्थायी वकील मिनी पुष्कर्ण ने कहा कि विश्व बैंक में भारत के प्रतिनिधि हैं और इसमें केंद्रीय वित्त मंत्री भी शामिल हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के पास विश्व बैंक में मतदान का अधिकार है।


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