Inspiring Story: लॉकडाउन में स्वरोजगार की पहल कर महिलाओं को बना रहे आत्मनिर्भर
मयूर विहार फेज-एक चिल्ला खादर स्थित एक छोटे टापू पर बसी झुग्गी में सेवा भारती ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सिलाई सेंटर खोल स्वरोजगार की पहल की है।
नई दिल्ली [पुष्पेंद्र कुमार]। दुनिया में बेरोजगारी का संकट तो पहले से ही सांतवे आसमान पर था। कोविड-19 के दौरान यह संकट और गहरा गया है। ऐसे में बहुत से लोगों के सामने परिवार का पेट भरना सबसे बड़ी चुनौती है। समय ने आज ऐसी करवट ली है कि जो पांव कस्बों व गांव से रोजगार की तलाश में निकलें थे आज वह धूलफांक पुनः वापस लौट रहे हैं। पोटली में अपनी गृहस्थी समेटे लाखों लोग पैदल, साइकिल, रिक्शा, ट्रक आदि से अपने-अपने गांवों की ओर कूच कर रहे हैं। हालांकि इस अंधरे में रोशनी की मशाल थामे सेवा भारती इन बेबसी की चादर ओढ़े लोगों के लिए स्वरोजगार की पहल कर मदद के लिए आगे आ रही हैं।
आत्मनिर्भर बनाने के लिए खोला सिलाईं सेंटर
पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र के मयूर विहार फेज-एक चिल्ला खादर स्थित एक छोटे टापू पर बसी झुग्गी में सेवा भारती ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सिलाई सेंटर खोल स्वरोजगार की पहल की है। ताकि महिलाएं लॉकडाउन के चलते अपने परिवार के साथ गांव न जाए, बल्कि कोरोना से जंग लड़ देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को बचाने में सरकार की मदद करें।
महिलाएं तैयार कर रही मास्क और थैले
प्रांत द्वारा सेंटर में महिलाओं को पांच मशीने भेंट की गई है। मौजूदा समय में महिलाएं मास्क व थैले तैयार कर रही है, रोजाना महिलाएं करीब पांच सौ मास्क व 20 थैले तैयार कर रही है। जिन्हें प्रांत के सदस्य अन्य व्यापारियों को बेच देते है और जितने कुछ रुपयों की कमाई हो पाती है। इस पैसे को वह सभी परिवारों में बांट दिया जाता है। सेवा भारती के प्रांत संगठन मंत्री शुखदेव भारद्वाज ने बताया कि जैसे ही लॉकडाउन खुलेगा तो इन महिलाओं के रोजगार के दरवाजे भी खुल जाएंगे। बस्ती सभी महिलाएं सेंटर के माध्यम से घर बैठे ही काम कर परिवार का पालन पोषण कर सकेंगी।
52 दिनों से प्रांत के सदस्य कर रहे निस्वार्थ सेवा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी विभाग के संघ चालक सुशील गुप्ता बताते है कि इस छोटे से टापू पर 11 परिवारों के सदस्य मिलजुल कर रहते हैं। दुधिया रोशनी से जगमगाती राजधानी की इस छोटी सी बस्ती में आज भी लोग डीबिया (दिया) जलाते है। यहां की संख्या मतगणना सूची में तो दर्ज है, लेकिन सुविधाओं के अभाव से वंचित है। यहां न बिजली है और न ही कोई साधन, आज भी यहां के लोग नांव में सवार कर मजदूरी के लिए घर से निकलते है। लॉकडाउन के चलते सब काम काज ठप पड़ गया। ऐसे में परिवार को पेट पालने के लाले पड़ रहे थे। प्रांत के सदस्यों को जब इन परिवारों की जानकारी मिली तो वह फोरन यहां पहुंचे। जरूतमंद लोगों को 52 दिनों से रोजाना भोजन कराया जा रहा है। साथ ही इनके लिए राशन की व्यवस्था करवाई गई हैं।