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परेड के बाद क्या होने वाला है देश की 23 झांकियों के साथ, जानकर चौंक जाएंगे आप

साबरमती आश्रम और गांधी जी के सौ वर्ष की थीम पर आधारित गुजरात की झांकी पर करीब 12 लाख रुपये का खर्च आया था।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 26 Jan 2018 07:37 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jan 2018 08:25 AM (IST)
परेड के बाद क्या होने वाला है देश की 23 झांकियों के साथ, जानकर चौंक जाएंगे आप
परेड के बाद क्या होने वाला है देश की 23 झांकियों के साथ, जानकर चौंक जाएंगे आप

नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली में शुक्रवार को राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में आकर्षण का केंद्र रहीं झांकियां परेड खत्म होते ही अस्तित्व के संकट से घिर गई हैं। इन्हें सहेजकर रखने की व्यवस्था न तो राज्यों के पास और न ही सरकारी उपक्रमो या विभागों के पास है। लाखों रुपये के बजट से तैयार की गई ये झांकियां अब कौड़ियों के भाव स्क्रैप मे बेच दी जाएंगी।

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बता दें कि 69वें गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर 23 झांकियां प्रदर्शित की गईं। इनमें 14 झांकियां राज्यों की, जबकि नौ झांकियां सरकारी विभागों/उपक्रमों की थीं। हर झांकी का बजट 12 से 31 लाख के बीच रहा, लेकिन महीनों की मेहनत से तैयार इन झांकियो की अहमियत केवल परेड तक ही थी।

साबरमती आश्रम और गांधी जी के सौ वर्ष की थीम पर आधारित गुजरात की झांकी पर करीब 12 लाख रुपये का खर्च आया था। प्रदेश के उपनिदेशक (सूचना) पंकज मोदी बताते हैं कि गांधी जी का पुतला तो गुजरात भवन में लगा दिया जाएगा, लेकिन पूरी झांकी को रखने के लिए हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए बाकी झांकी स्क्रैप मे बेची जाएगी।

रामगढ़ के प्राचीन एम्फी थियेटरों की थीम पर आधारित छलाीसगढ़ की झांकी का बजट 31 लाख रुपये था। प्रदेश के संयुक्त निदेशक (जनसंपर्क) धनंजय राठौर बताते हैं कि उनके यहां भी झांकी को सहेजने का प्रबंध नहीं है, इसलिए इसे स्क्रैप में ही बेचना पड़ेगा।

ग्रामीण पर्यटन की थीम पर आधारित उलाराखंड की झांकी का बजट 17 लाख के आसपास था। प्रदेश के जनसंपर्क उपनिदेशक के एस चौहान भी बताते हैं कि झांकी को न तो उत्तराखंड ले जाया जा सकता है और न ही उलाराखंड भवन में रखा जा सकता है। लिहाजा, इसे स्क्रैप मे ही निकालना पड़ेगा।

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय रंगशाला शिविर के विशेष कार्याधिकारी दलपत सिंह कहते हैं कि झांकियां किसी भी राज्य और सरकारी उपक्रम या विभाग की संस्कृति एवं प्रगति का आइना होती हैं। इसलिए परेड के बाद भी दिल्ली स्थित अपने भवन या प्रदेश में किसी उपयुक्त स्थान पर कुछ समय के लिए तो प्रदर्शित किया ही जा सकता है। ऐसा किया भी जाना चाहिए, ताकि स्थानीय लोग स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकें। यह जिम्मेदारी राज्यों और विभागों की है। रक्षा मंत्रालय इसमें कुछ नहीं कर सकता।


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