Water Crisis In Delhi: गर्मी में कैसे बुझेगी दिल्ली वालों की प्यास, सवाल अब भी कायम
Water Crisis In Delhi जलाशयों की सफाई या उसमें केवल पानी भर देने से कुछ नहीं होगा इनके रखरखाव पर भी ध्यान देना जरूरी है ताकि वे फिर से बदहाल न हो जाएं।
नई दिल्ली। बार भी वही हो रहा है, जी हर साल होता आया है। गर्मी के साथ पानी की जरूरत बढ़ी और फिर पिछले साल किए गए दावों, वादों की किरकिरी हुई। पानी का टैंकर दिखते ही लोगों की भीड़ ऐसी टूट पड़त है, मानो कोरोना जैसा खौफ कहीं आसपास भी नहीं। बरसों से जल स्रोतों के संरक्षण को लेकर दोहराई जा रही बातें सिर्फ कागजी दुहाई भर हैं। सच पूछिए तो प्राकृतिक जल स्नोतों के संरक्षण को लेकर सही मायनों में प्रयास किए ही नहीं गए हैं। यहां तक कि अदालती हस्तक्षेप से भी कागजी खानापूरी ही ज्यादा हुई है। कभी कोई ऐसी मुहिम भी नहीं चली कि लोगों को उसमें भागीदार बनाया जा सके। जबकि यह ऐसा मसला है जो आमजन के सहयोग बिना सुलझ ही नहीं पाएगा। दरअसल, जलाशयों की सफाई या उसमें केवल पानी भर देने से कुछ नहीं होगा, इनके रखरखाव पर भी ध्यान देना जरूरी है ताकि वे फिर से बदहाल न हो जाएं।
पुख्ता प्लान हो तो बदल जाएगी सूरत
सरकारी स्तर पर एजेंसियों के पास ऐसा कोई पुख्ता प्लान होना चाहिए जिससे आधे अधूरे जलाशयों को बचाया जा सके, मृत हो चुके जोहड़ों को पुनर्जीवित कर सकें या लुप्त हो चुके जोहड़ों को खोज सकें। जल संचयन और भूजल स्तर में सुधार करने के लिए प्राकृतिक जल स्नोतों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। झील, बावलियां, जोहड़ एवं कुएं अनदेखी के कारण ही सूख रहे हैं। नदियों का जल स्तर भी घटता जा रहा है। दिल्ली की एकमात्र यमुना नदी मृतप्राय: हो चुकी है। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि नदियों और इनके आसपास का बाढ़ग्रस्त क्षेत्र भी सूखने लगा है। जबकि यह सारा क्षेत्र मानसून के दौरान भूजल रिचार्ज के लिहाज से बेहतर विकल्प हो सकता है।
वजीराबाद और ओखला बैराज में हो पल्ला जैसा प्रयोग
सिर्फ बाढ़ग्रस्त क्षेत्र की बात करें तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यमुना की लंबाई लगभग 50 किलोमीटर है। यमुना खादर का क्षेत्र पल्ला से ओखला बैराज तक करीब एक सौ वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है। यहां औसतन 50 मीटर की गहराई पर पानी उपलब्ध है। हमने खुद अपने शोध में पाया है कि यहां के भूजल में बालू रेत मिला हुआ है, जो जल्द नीचे बैठ जाता है। यहां के भूजल में प्रदूषण भी अधिक नहीं है। इसीलिए जल बोर्ड भी पल्ला में रेनीवेल के जरिए भूजल का इस्तेमाल पेयजल के रूप में कर रहा है। यहां नलकूप के जरिए रोजाना 30 एमजीडी पानी निकाला जा रहा है, जिसे शोधित कर उत्तर पश्चिम क्षेत्र के इलाकों में सप्लाई किया जा रहा है। वजीराबाद और ओखला बैराज में भी इस तरह का प्रयोग किया जा सकत है। इससे पेयजल आपर्ति तिगुनी हो जाएगी और पेयजल किल्लत को भी दूर किया जा सकेगा।
-लेख डॉ. शशांक शेखर (सहायक प्रोफेसर, भूगर्भ विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) से बातचीत पर आधारित है।