संकल्प से ‘वेस्ट’ चीजों को ‘गोल्ड’ में किया तब्दील, बारिश के पानी का भी किया जा रहा व्यवस्थित उपयोग
दिल्ली के एक शिक्षण संस्थान ने अपने संकल्प के बल पर कालेज के अनुपयोगी कचरे से जैविक खाद बनाकर इसको उपयोगी बना दिया है। कालेज की टीम ने पेपर व प्लास्टिक वेस्ट बायो-डिग्रेडेबल और ई-वेस्ट के निस्तारण के जरिये इस कचरे का कायाकल्प कर रहा है।
रजनीश कुमार पाण्डेय, नई दिल्ली। दक्षिणी दिल्ली दक्षिणी दिल्ली के एक शिक्षण संस्थान ने अपने संकल्प के बूते कालेज के अनुपयोगी कचरे से जैविक खाद बनाकर इसको उपयोगी बना दिया है। जी हां, दक्षिणी दिल्ली के पीजीडीएवी कालेज (प्रात:) ने कचरा व जल प्रबंधन को लेकर पूरे देश को नई राह दिखाई है। कालेज की टीम ने पेपर व प्लास्टिक वेस्ट, बायो-डिग्रेडेबल तथा ई-वेस्ट के निस्तारण के प्रभावी एवं कुशल प्रबंधन के जरिये इस कचरे का कायाकल्प कर दिया है।
कालेज में जैविक कचरा इत्यादि से जैविक खाद बनाई जाती है, वहीं दूसरी ओर सालिड वेस्ट और ई-वेस्ट को अलग-अलग जमा करके रिसाइक्लेबल संस्थानों को देकर उसके बदले कालेज के उपयोग की स्टेशनरी अथवा पैसे लेकर कचरे से कमाई की जाती है। कालेज में वर्षा के जल के उपयोग के लिए रीचार्जेबल पिट्स भी बनाए गए हैं, जो भू-जल स्तर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वाटर प्योरीफायर से निकलने वाले बेकार जल को एकत्रित करके महाविद्यालय परिसर के रोजमर्रा के कार्यों में उपयोग किया जा रहा है।
महाविद्यालय (प्रात:) के पर्यावरण विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर ऋचा अग्रवाल मलिक ने बताया कि प्रबंधन की यह पूरी योजना महाविद्यालय की प्राचार्य कृष्णा शर्मा के सहयोग से शुरू की गई है। इसके लिए बच्चों को कंपोस्टिंग व कचरा प्रबंधन से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है। महाविद्यालय की कचरा प्रबंधन समिति में संयोजिका के रूप में प्रो. ऋचा अग्रवाल अग्रवाल व सह संयोजक के रूप में डा. प्रदीप सिंह, डा. गौरव और डा. अपर्णा दत्त शामिल हैं। इस पूरे कचरा प्रबंधन का खर्च कालेज की ओर से वहन किया जाता है और कमाई में से खर्च को निकालकर बाकी की राशि को प्रोत्साहन राशि के रूप में अभियान से जुड़े पिछड़े समूहों के लोगों को दे दिया जाता है।
महाविद्यालय की ओर से तैयार की गई जैविक खाद का उपयोग परिसर में बनाए गए धंन्वंतरि उद्यान और संजीवनी वाटिका में लगाए गए दुर्लभ व औषधीय पौधों के पोषण के लिए किया जाता है। बाकी बचे हुए जैविक खाद को अच्छी पैकेजिंग करके बेचने के लिए उपलब्ध करा दिया जाता है। इन उद्यानों में अजवाइन, अश्वगंधा, निर्गुंडी, पत्थरचट्टा, एलोवेरा, इलायची, लेमन ग्रास, पुदीना, पामारोजा, हड़जोड़ इत्यादि दुर्लभ व औषधीय पौधे लगाए गए हैं।
संतरे के छिलके से बनाया जा रहा बायोएंजाइम
कालेज की एक सोसायटी पीजीडीएवी इनैक्टस की ओर से परिसर में उपयोग होने वाले फूलों को एकत्र करके उनसे खुशबूदार धूपबत्ती बनाई जाती है। कालेज के बाहर लगी फलों के रस की दुकान पर पड़े संतरे के छिलके को संरक्षित करके उससे बायो एंजाइम बनाया जाता है, जिसका टायलेट व फ्लोर क्लीनर के रूप में उपयोग किया जाता है। इन उत्पादों को बेचकर कमाई की जाती है। सोसायटी के सदस्य कई स्थानीय समूहों को इसका प्रशिक्षण देकर उनके लिए रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध करा रहे हैं। पीजीडीएवी इनैक्टस सोसायटी अभियान चलाकर पेपर व प्लास्टिक कचरे का संग्रह भी करती है और फिर संग्रहित कचरे में से पेपर व प्लास्टिक कचरे को अलग करके निगम को सौंप देती है। इसका उपयोग निगम के वेस्ट प्लांटों में विभिन्न रूपों में किया जाता है।
ई-कचरे के बदले मिल रहा जरूरत का सामान
ई-कचरे के प्रबंधन का काम कालेज की सतर्क सोसायटी देखती है। इसके तहत कालेज ई-परिसर नामक रिसाइक्लिंग कंपनी को ई-कचरा देता है, जिसके बदले कालेज को ई-वेस्ट मैनेजमेंट का प्रमाण-पत्र मिल जाता है। कालेज की ओर से पेपर वेस्ट को ग्रीन-ओ-टेक नामक कंपनी को दे दिया जाता है। इसके बदले कंपनी की ओर से कालेज को स्टेशनरी के सामान, पौधे अथवा रुपये दिए जाते हैं। ई-कचरा और पेपर वेस्ट के संग्रह के लिए पूरे परिसर में कई जगह अलग-अलग कूड़ेदान वाले बाक्स लगाए गए हैं।
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