नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग, जीत गई तो पिया मोरे हारी पी के संग... अमीर खुसरो का यह सूफी दोहा प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। निजामुद्दीन दरगाह पर आपसी प्रेम और सांप्रदायिक सौहार्द्र का ऐसा ही नजारा बृहस्पतिवार को देखने को मिला, जब यहां हिंदुओं और मुस्लिमों ने पीले फूलों की होली खेलकर वसंत पंचमी मनाई। इस दौरान पूरा माहौल गंगा-जमुनी तहजीब में सराबोर था।

वसंत पंचमी के अवसर पर हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो की मजारों पर पीले रंग की चादर चढ़ाई गई। पीले फूलों से सजी दरगाह में पीली चादर के साथ कव्वालों के सुरों में वसंत की तान भी सुनाई दी। दोपहर बाद चार बजे शुरू हुआ उत्सव रात आठ बजे तक चला।

दूर-दूर से आए लोग

वसंत पंचमी के उत्सव में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे। पीले कपड़ों में सजे-धजे लोग हाथों में पीले फूल लेकर औलिया की दरगाह की ओर बढ़ रहे थे और उत्साह से एक-दूसरे को वसंत की बधाई और देश की तरक्की और भाईचारे की दुआएं दे रहे थे। कोरोना महामारी के बाद इस साल पूरे उत्साह से वसंत पंचमी मनाई गई कि दरगाह में इस कदर भीड़ हो गई कि पांव रखने तक की जगह नहीं थी।

दरगाह कमेटी के चेयरमैन सैयद अफसर अली निजामी ने बताया कि निजामुद्दीन दरगाह में वसंत पंचमी मनाने की परंपरा 700 वर्ष से ज्यादा की है। इस दिन यहां सबकुछ पीले रंग में रंगा होता है। दरगाह पर हरी चादर के बजाय पीली चादर चढ़ाई जाती है। गुलाब की पंखुड़ियों के स्थान पर पीले गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, कव्वाली में रूहानी एहसास की जगह वसंत की मस्ती होती है।

ऐसे शुरू हुआ उत्सव

हजरत निजामुद्दीन अपने भांजे के निधन से काफी दुखी थे। इससे उनके अनुयायी अमीर खुसरो परेशान हो गए। उन्होंने एक दिन कुछ महिलाओं को पीले वस्त्रों में पीले फूल लेकर गाते हुए जाते देखा। उनसे पूछने पर महिलाओं ने कहा कि वे अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए पीले फूल चढ़ाने मंदिर जा रही हैं। उनसे प्रेरणा ले खुसरो भी पीली साड़ी पहनकर और सरसों के पीले फूल लेकर हजरत निजामुद्दीन के पास पहुंच गए और ‘सकल बन फूल रही सरसों’ गाते हुए नृत्य करने लगे। उन्हें देखकर हजरत निजामुद्दीन मुस्कुराने लगे तभी से दरगाह पर वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है।

Edited By: Abhi Malviya