आदिवासियों के विकास में सबसे बड़ी बाधा हैं नक्सली, पीड़ितों ने बयां किया दर्द
शहरी नक्सलवाद पर आयोजित सेमिनार में नक्सल पीड़ितों और पुराने नक्सलवादियों ने अपने दर्द बयां किया। नक्सलवाद के मकसद व आदिवासियों के विकास की बाधा बताई।
नई दिल्ली (जेएनएन)। नक्सली साल में एक बार आदिवासियों से फसल कटाई के समय कमीशन लेते हैं। इस तरह से नक्सली काफी पैसा इकट्ठा करते हैं। बाद में इसी पैसे को नक्सली अपनी जरूरतों को पूरा करने और देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल करते हैं। नक्सली आदिवासियों के हक के लिए नहीं लड़ रहे हैं। बल्कि आदिवासी के विकास में सबसे बड़ी बाधा ही नक्सली हैं।
यह बातें मई 2017 में आत्मसमर्पण कर चुके पोडियाम पांडा ने बयां की। पोडियाम पांडा छत्तीसगढ़ के संपन्न परिवार के रहने वाले हैं। वह वर्ष 2009 से 2017 तक नक्सली रहे। पोडियाम पांडा मंगलवार को दिल्ली दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में शहरी नक्सलवाद पर आयोजित एक सेमिनार में उपस्थित हुए थे। सेमिनार में उन्होंने नक्सवाद के अपने अनुभवों और उससे प्रभावितों लोगों का दर्द बयां किया।
कार्यक्रम में नक्सल पीड़ित पोडियाम पांडा के साथ एक और नक्सल पीड़ित फारूक अली, प्रसिद्ध स्तम्भकार एवं डीयू के एसआरसीसी कॉलेज के असिस्टेट प्रोफेसर अभिनव प्रकाश, दयाल सिंह कॉलेज के केमिस्ट्री के प्रोफेसर एवं डीयू के कार्यकारी परिषद के सदस्य डॉ ए.के.भागी, दिल्ली हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट की वकील सुमन चौहान, सुप्रीम कोर्ट के वकील संदीप महापात्रा, रामलाल आनंद कॉलेज की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर प्रेरणा मल्होत्रा मौजूद थे।
जल, जंगल व जमीन हथियाना चाहते हैं नक्सली
नक्सल प्रभावित फारूक अली के भाई पर नक्सलियों ने वर्ष 2001 में जानलेवा हमला किया था। इस हमले में बड़ी मुश्किल से उनके भाई की जान बची थी। फारुख अली ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि बस्तर में कई मासूम जिंदगियां बसती हैं। इनका किसी सरकार, पुलिस एवं सशस्त्र बलों से कोई संबंध नहीं होता है। यहां के लोग पढ़ना चाहते हैं। आगे बढ़ना चाहते हैं। बेहतर स्वास्थ्य एवं शिक्षा चाहते हैं। ऐसी इच्छा व्यक्त करने पर नक्सली, मासूम युवाओं की बेरहमी से हत्या कर देते हैं। जमीन के नीचे छिपाए गए विस्फोटक (बारूदी सुरंग) से कई मासूम बच्चों के चिथड़े उड़ चुके हैं। फारूख अपनी बात का जिक्र करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि नक्सलियों का मकसद केवल जल, जंगल और जमीन हथियाना है।