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कोरोना संक्रमित रोगियों के उपचार में समझ-बूझ कर लें स्टेरॉयड, पढ़े एक्सपर्ट की राय

नई दिल्ली एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एम.सी. मिश्रा ने बताया कि कोरोना के इलाज में इन दिनों स्टेरॉयड का इस्तेमाल बढ़ा है। कोरोना संक्रमित रोगियों की जान बचाने के लिए स्टेरॉयड जीवनरक्षक की तरह हैं लेकिन इनका अनावश्यक इस्तेमाल सेहत के लिए घातक भी साबित हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 09:21 AM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 09:22 AM (IST)
कोरोना संक्रमित रोगियों के उपचार में समझ-बूझ कर लें स्टेरॉयड, पढ़े एक्सपर्ट की राय
डॉक्टर की सलाह व पर्याप्त मेडिकल देखरेख में ही रोगी की दशा के अनुसार दिए जाने चाहिए...

नई दिल्‍ली, रणविजय सिंह। विज्ञान वरदान है, लेकिन उसका दुरुपयोग अभिशाप भी हो सकता है। यह बात दवाओं के लिए भी लागू होती है। हर दवा जो किसी बीमारी में शरीर को फायदा पहुंचाती है उसका गलत इस्तेमाल होने लगे तो उससे नुकसान भी होने लगता है। एंटीबायोटिक इसका उदाहरण हैं। इनके गलत इस्तेमाल से कई एंटीबायोटिक दवाएं जरूरत के वक्त बेअसर हो जाती हैं। इसलिए दवाओं का सही इस्तेमाल जरूरी है। कोरोना संक्रमण के गंभीर व कम गंभीर मरीजों की जान बचाने के लिए स्टेरॉयड जीवनरक्षक की तरह हैं, लेकिन इनका अनावश्यक इस्तेमाल सेहत के लिए घातक भी साबित हो सकता है। इसलिए कोरोना मरीजों को यह दवा सिर्फ डॉक्टर की सलाह व देखरेख में ही लेनी चाहिए।

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इन दिनों डेक्सामेथासोन व प्रेडनिसोलोन स्टेरॉयड अधिक प्रचलित हैं। इसका इस्तेमाल अस्पतालों में भर्ती मरीजों में अधिक हुआ है। दरअसल, कोरोना के इलाज में वैश्विक स्तर पर रेमडेसिविर, हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन, इंटरफेरॉन व एक अन्य एंटीवायरल दवा का सॉलिडिटरी ट्रायल हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 देशों में 11 हजार से अधिक मरीजों पर यह ट्रायल कराया था। ट्रायल के दौरान आधे लोगों को ये दवाएं दी गर्इं और आधे लोगों को प्लेसिबो दिया गया। ट्रायल में ये चारों दवाएं खास कारगर नहीं पाई गईं। इन दवाओं के इस्तेमाल से न तो मृत्यु दर घटी और न ही आईसीयू में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या कम हुई। नवंबर 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्रायल के इस नतीजे को प्रकाशित किया। इस वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रेमडेसिविर को कोरोना के इलाज के प्रोटोकॉल से बाहर निकाल दिया। इंग्लैंड में नेशलन हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के प्रोटोकॉल में भी रेमडेसिविर नहीं है। इस बीच यूके (यूनाइटेड किंगडम) में कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का ट्रायल किया गया था। यह ट्रायल कम गंभीर व गंभीर मरीजों पर किया गया, जो सफल रहा। इस ट्रायल में पाया गया कि स्टेरॉयड लेने वाले मरीजों की मृत्यु दर कम रही। लिहाजा इस शोध में यह बात सामने आई कि कोरोना के कारण फेफड़े में जब सूजन आती है तो यदि स्टेरॉयड दी जाए तो इससे मरीजों को फायदा मिलता है और जान बच सकती है।

हल्के निमोनिया वाले मरीजों को नहीं देनी चाहिए स्टेरॉयड: भारत में अब इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा होने लगा है। इसके लिए डॉक्टर भी थोड़े जिम्मेदार हैं। जिस तरह रेमडेसिविर ज्यादा कारगर नहीं होने के बावजूद डॉक्टर इसका इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं। इसी तरह यह देखा जा रहा है कि हल्के निमोनिया वाले मरीजों को भी स्टेरॉयड देना डॉक्टरों ने शुरू कर दी है। इसलिए अब स्टेरॉयड का गलत व जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है। यह अस्पतालों में भर्ती कम गंभीर व गंभीर निमोनिया से पीड़ित मरीजों के इलाज में ही मदद करता है। अब घर में रहने वाले हल्के संक्रमण से पीड़ित मरीजों को भी यह दवा दी जा रही है। मरीज डॉक्टर की सलाह के बगैर खुद भी दुकान से स्टेरॉयड लेकर खा रहे हैं। इससे नुकसान भी हो सकता है। इसलिए हल्के निमोनिया वाले मरीजों को यह दवा नहीं लेनी चाहिए।

शुरुआत में स्टेरॉयड लेने से गंभीर हो सकती है बीमारी: कोरोना संक्रमण के कारण बुखार, खांसी, गले में खराश, सिर दर्द व बदन दर्द जैसे शुरुआती लक्षण आने पर ही शुरुआत में ही यदि स्टेरॉयड का इस्तेमाल करने लगें तो बीमारी गंभीर हो सकती है, क्योंकि यह दवा इम्यूनो सप्रेशन के रूप में इस्तेमाल होती है। इसलिए शुरुआत में यह दवा देने से वायरस अपनी संख्या तेजी से बढ़ा सकता है। इसलिए शुरुआत में इस दवा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।

स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से दुषप्रभाव: अधिक समय तक स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर में जल प्रतिधारण (वाटर रिटेंशन) की समस्या होने लगती है। इस वजह से शरीर के विभिन्न हिस्सों में सूजन व जोड़ों में परेशानी होती है। दिल की मांसपेशियों में कमजोरी हो सकती है। इस वजह से घबराहट व दिल संबंधी परेशानी हो सकती है। यदि यह समस्या अधिक समय तक बनी रहे तो नसों में क्लॉट, फेफड़ों में सूजन या पानी भरने की समस्या, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक व लिवर में परेशानी हो सकती है। कोरोना के इलाज में थोड़े दिन स्टेरॉयड दी जाती हैं। यदि डॉक्टर की सलाह से सही डोज में यह ली जाए तो नुकसान नहीं होता। हां, गैस्ट्रो से संबंधित थोड़ी परेशानी हो सकती है। इससे बचाव के लिए दवाएं दी जाती हैं। दवा देने से पहले डॉक्टर उसके नफा नुकसान का मूल्यांकन करते हैं। कोरोना के कम गंभीर व गंभीर मरीजों को यह दवा नहीं देने पर जोखिम होता है। यह दवा देने से मरीज को फायदा होता है। यह दवा इंजेक्शन, दवा की गोली व इनहेलर के रूप में मौजूद है।

स्टेरॉयड क्या है: स्टेरॉयड हार्मोन की तरह होता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संतुलित बनी रहती है। शरीर के आंतरिक हिस्सों में सूजन को रोकने के लिए शरीर में खुद भी कई तरह स्टेरॉयड बनते हैं, जो सूजन व साइटोकाइन स्टॉर्म होने से बचाते हैं। कोरोना के कारण फेफड़ों व शरीर के कई हिस्सों में सूजन होती है। इसलिए इलाज में यह दवा इस्तेमाल हो रही है।

डोज का ध्यान रखना बहुत जरूरी: कोरोना संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए जरूरत महसूस होने पर डॉक्टर उन्हें स्टेरॉयड देते हैं। यह उचित है। हालांकि इलाज के दौरान स्टेरॉयड की डोज का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। कोरोना के कारण निमोनिया के संक्रमण से पीड़ित मरीज का एचआरसीटी स्कोर 15 से अधिक हो तो स्टेरॉयड दवा की थोड़ी अधिक डोज दी जाती है। नौ या इससे थोड़ा ज्यादा स्कोर हो तो स्टेरॉयड की हल्की डोज दी जा सकती है। लोगों को यह समझना जरूरी है कि इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बहुत नुकसानदायक हो सकता है। इससे शुगर का स्तर बढ़ जाता है। जिन्हें मधुमेह की बीमारी है उनमें शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा हो सकती है।


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