गाजियाबाद इमारत हादसाः 12 जुलाई को होनी थी ध्वस्त, फिर भी चल रहा था निर्माण
जो बहुमंजिला अवैध इमारत जमींदोज हुई है, उसे तीन बार नोटिस दिए गए। इसी 12 जुलाई को इमारत के ध्वस्तीकरण का आदेश जारी हुआ था।
गाजियाबाद (जेएनएन)। बीते मंगलवार को ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी में दो इमारतों के गिरने से नौ लोगों की मौत का शोर थमा भी नहीं था कि रविवार को जिला मुख्यालय के मसूरी में निर्माणाधीन एक और अवैध इमारत जमींदोज हो गई। हादसे के वक्त चार मंजिला इमारत में 16 मजदूर व मिस्त्री थे। आठ लोगों को मलबे से बाहर निकाला गया हैं, जिनमें से एक की मौत हो गई। आठ लोग अब भी मलबे में फंसे हैं। वीं बटालियन एनडीआरएफ (नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फोर्स) के अलावा पुलिस, सिविल डिफेंस की टीमें देर रात तक राहत व बचाव कार्य में जुटी रहीं।
विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह व आइजी मेरठ जोन रामकुमार ने बचाव कार्य का जायजा लिया। हादसे की वजह इमारत के बेसमेंट में बारिश का पानी इकट्ठा होने को माना जा रहा है। छह लोगों को हिरासत में लिया गया है और देर रात नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है।
मसूरी के मिशलगढ़ी में अवैध रूप से चार मंजिला इमारत बनाई जा रही थी। बिल्डिंग में कुल 17 मजदूर व मिस्त्री काम कर रहे थे। हादसे के वक्त एक मजदूर किसी काम से बाहर गया था। अपराह्न करीब ढाई बजे जोरदार आवाज के साथ इमारत गिर गई और मजदूर दब गए। प्रत्यक्षदर्शी राजू ने बताया कि वह चिल्लाते हुए अन्य लोगों के साथ वहां पहुंचे। दो लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया। देर रात तक आठ लोगों को निकाला जा चुका था। एक युवक को मृत घोषित कर दिया गया। उनकी पहचान मध्य प्रदेश के दामोह के राजेश (30) के रूप में हुई है। मौके पर डीएम रितु माहेश्वरी, एसएसपी वैभव कृष्ण, एनडीआरएफ के कमांडेंट पीके श्रीवास्तव भी मौजूद थे।
जीडी की लापरवाही के देन है इमारत हादसा
ठीक शाहबेरी की तरह मिशलगढ़ी इलाके के आकाश नगर में हुआ हादसा जीडीए की लापरवाही की देन है। जो बहुमंजिला अवैध इमारत जमींदोज हुई है, उसे तीन बार नोटिस दिए गए। इसी 12 जुलाई को इमारत के ध्वस्तीकरण का आदेश जारी हुआ था। इसके बावजूद इमारत को नहीं गिराया गया। हश्र देखिए गिराने से पहले यह इमारत खुद ही गिर गई और अब तक दो लोगों की मौत होने की खबर है। नियत तारीख पर इमारत को गिराने का काम किया होता तो मजदूरों की जान से खिलवाड़ नहीं होता। इमारत क्यों नहीं गिराई जा सकी? इसका जीडीए के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। कह रहे हैं कि जांच में सामने आएगा।
मिशलगढ़ी इलाके की आकाश नगर कॉलोनी जीडीए के प्रवर्तन जोन-तीन के अंतर्गत आती है। यह कॉलोनी अवैध रूप से बसी हुई है। डासना ग्राम पंचायत क्षेत्र में आती है। शुरुआत में रोकटोक नहीं हुई तो एकल मकानों के अलावा बहुमंजिला इमारतें बनने लगीं। तब भी जीडीए अधिकारी सोते रहे। डासना के ग्राम प्रधान सतीश कुमार बताते हैं कि 2015 में प्रधान बनने के बाद उन्होंने क्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माण की शिकायत जीडीए से की थी। सतीश ने बताया कि तब जीडीए की टीम इस इलाके में कुछ दिन सक्रिय रही। थोड़े ही दिन बाद फिर से ढील छोड़ दी, जिसका नतीजा सबके सामने है। इतने बड़े हादसे में कोई मौत की नींद सो चुका है तो कई जिंदगी-मौत के बीच जूझ रहे हैं। सतीश का कहना है कि इस इस क्षेत्र में अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो न जानें कितनी इमारतें इसी तरह जमींदोज होने के मुहाने पर हैं। सैंकड़ों की जान खतरे में है।
संतोष कुमार राय (सचिव, जीडीए) ने बताया कि जो इमारत जमींदोज हुई है, वह अवैध है। इसका निर्माण रोकने के लिए तीन बार नोटिस दिए गए थे। 12 जुलाई को इसे ध्वस्त करना था। किसी कारणवश नहीं किया जा सका। जांच की जा रही है कि क्यों ध्वस्तीकरण रोका गया। जो दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
लौटा तो मौके पर भीड़ देखकर उड़ गए होश
इसे इत्तेफाक कहें कि या कुछ और कि एक मजदूर अरुण की जान शराब ने बचा ली। वह लंच होते ही ठेके पर गया और शराब पीकर बाहर ही खाना खाया। चार बजे लौटा तो मौके पर भीड़ देखकर उसके होश फाख्ता हो गए। अरुण की पत्नी, भाई और दो बेटे बिल्डिंग में ही फंसे हुए थे। बिल्डिंग गिरी देखकर वह चिल्लाने लगा। लोगों ने उसे संभाला और आश्वासन देकर शांत कराया।
घटनास्थल तक पहुंचने के लिए नहीं छोड़ा था कोई रास्ता
हापुड़ रोड के पास अवैध तरीके से बनाई रही चार मंजिला इमारत तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता भी नहीं छोड़ा गया था। एडीआरएफ को इसके चलते राहत एवं बचाव कार्य में काफी दिक्कत हो रही है। एनडीआरएफ आठवीं बटालियन के कमांडेंट पीके श्रीवास्तव ने बताया कि बरसात और रास्ता न होने के चलते बचाव कार्य प्रभावित हो रहा है। घटनास्थल पर जेसीबी व क्रेन आदि कई प्लॉटों की बाउंड्री तोड़कर पहुंची। बचाव कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए जेसीबी से पास में पड़े बिल्डिंग मटीरियल को बिछाकर रास्ता बनाया गया। वहीं पानी हटाने के लिए घटनास्थल के पास ही एक गड्ढा भी खोदना पड़ा। एनडीआरएफ के मीडिया प्रभारी बसंत पाबड़े ने बताया कि तीन बजकर 20 मिनट पर एनडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंच गई थीं। 40-40 सदस्यों की चार टीम मौके पर मलबे से लोगों को निकालने में जुटी हुई हैं। इसके अलावा दो डाक्टर व तीन अधिकारियों के साथ कमांडेंट मौके पर मौजूद हैं।
दो परिवार के थे इमारत में काम कर रहे अधिकतर लोग
इमारत में काम कर रही मजदूर गीता (27) निचले तल पर थीं। वह खुद को बचाने के लिए दौड़ीं और उनके ऊपर कुछ ईंट व मलबा ही गिरा था। लोगों ने ईंटें हटाकर उन्हें निकाल लिया। वह मूल रूप से मध्य प्रदेश के दमोह जिले में बटियागढ़ थाना इलाके के हिम्मतपुर गांव की हैं। गीता के पति राजकुमार (30), मां विद्या (50), बेटे आठ वर्षीय शिवा व छह वर्षीय सागर, भाई राहुल व राजेश, चाचा मुन्ना (52), चाची गुलाबरानी (47), मुन्ना का पोता आठ वर्षीय देवेंद्र के अलावा मिस्त्री शकील व क्रेन चालक बिहार के अरनिया निवासी रईस (27) इमारत में काम कर रहे थे। साथ ही मप्र के सागर जिले के अरुण, उनकी पत्नी रानी, बेटे हेमराज व अभिषेक व भाई सुरेंद्र भी काम कर रहे थे। मलबे से घायल गीता, मुन्ना, राजकुमार, शिवा, रईस, गुलाबरानी व देवेंद्र के साथ राहुल का शव निकाला जा चुका है। गुलाबरानी, शिवा और देवेंद्र को गंभीर हालत में जीटीबी रेफर किया गया है।
पलक झपकते ही चौथी मंजिल से जमीन पर
हादसे में मामूली रूप से घायल हुए मुन्ना का कहना था कि वह चौथी मंजिल की छत पर प्लास्टर का काम कर रहे थे। दिन में खाना खाने के बाद उन्होंने काम शुरू ही किया था कि अचानक उनका संतुलन बिगड़ने लगा। वह कुछ समझ पाते इससे पहले वह जमीन पर थे। पूरी इमारत एक साथ ताश के पत्तों की तरह जमींदोज हो गई। मुन्ना का कहना है कि क्या हुआ और वह कैसे नीचे आए, उन्हें पता ही नहीं चला। मुन्ना को कुछ खरोंच और चोट आईं, मगर हादसे के घंटों बाद तक उनकी मानसिक स्थिति खराब रही। उनका सिर काफी देर तक चकराता रहा।
ठेकेदार ने बकाया नहीं देने की धमकी देकर शुरू करवाया था काम
मिशलगढ़ी के आकाश नगर में गिरी इमारत के एक पिलर में दरार आ गई थी। इमारत गिरने की आशंका से मजदूरों ने काम करने से मना कर दिया था। ठेकेदार ने पिछला बकाया नहीं देने की धमकी देकर काम शुरू करवाया था। हादसे में घायल राजकुमार ने बताया कि इमारत में एक पिलर में दरार आ गई थी। सुबह से ही बरसात शुरू हो गई थी, सभी श्रमिकों ने इमारत गिरने की आशंका के चलते काम करने से मना कर दिया था। राजकुमार ने आरोप लगाया कि प्रोजेक्ट से जुड़े ठेकेदार प्रेमपाल ने काम न करने पर पिछले बीस दिन का बकाया भी नहीं देने की धमकी दी और काम शुरू करने का दबाव बनाया। इसके बाद सभी ने काम शुरू किया। मलबे में लगभग दो घंटे दबे रहे राजकुमार को यह तो नहीं पता कि उसने मलबे से बाहर निकालने वाले कौन थे, उन्होंने पुलिस की वर्दी पहन रखी थी।
बेटों, भाई और मां को ढूंढ़ रही थीं गीता की आंखें
अस्पताल में भर्ती राजकुमार की पत्नी गीता ने बताया कि दोनों परिवार मूल रूप से मध्य प्रदेश के दमोह जिले के बरियागढ़ तहसील के हिम्मतपुरा गांव के रहने वाले हैं। एक महीने पहले ही वे लोग यहां काम करने आए थे। इमारत गिरने से गीता के हाथ में चोट आई है। गीता ने बताया कि हादसे के बाद से बेटा सागर (6) व शिवा (5) के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इन दोनों के अलावा भाई राजेश व राहुल और मां विद्या के बारे में भी कोई कुछ नहीं बता रहा है। अस्पताल में आने वाले हर किसी से गीता अपनों के बारे में पूछ रही थी। 1घायल मजदूर राजकुमार ने बताया कि इमारत में उनकी पत्नी गीता, सास विद्या, साला राजेश व राहुल और दूसरा परिवार मुन्ना, उनकी पत्नी गुलाबरानी काम कर रहे थे। राजकुमार के दो बेटे शिवा व सागर और मुन्ना का पोता देवेंद्र खेल रहे थे। दोनों परिवारों में चार महिला, तीन पुरुष और तीन बच्चे थे। इनमें से चार लोग विद्या, गुलाब रानी, मुन्ना, राहुल टेरिस पर काम कर रहे थे। पत्नी गीता पहली मंजिल पर काम कर रही थी और दो लोग ग्राउंड फ्लोर पर काम कर रहे थे। राजकुमार दूसरी मंजिल पर काम कर रहे थे।