Delhi News: कुतुबमीनार की सच्चाई जानने के लिए एएसआइ करेगा अध्ययन, मूर्तियों के साथ लगेंगे कल्चरल नोटिस बोर्ड
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इसके बाद अनंगताल का भी दौरा किया और इसके इतिहास को समझा। इस दौरान एएसआइ के अतिरिक्त महानिदेशक आलोक त्रिपाठी संयुक्त महानिदेशक नंबीराजन उत्तरी जोन के निदेशक एन के पाठक व निदेशक स्मारक अरविन मंजुल भी रहे।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। अस्तित्व को लेकर उपजे विवाद के चलते अब कुतुबमीनार का अध्ययन होगा, जिसमें पता लगाया जाएगा कि कुतुबमीनार चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय से है या इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। इस अध्ययन की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को सौंपी गई है। परिसर में खोदाई कर जमीन में दबे इतिहास के बारे में पता लगाया जाएगा। साथ ही कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद पर लगीं हिंदू व जैन मूर्तियों के बारे में पर्यटकों को जानकारी देने के लिए नोटिस बोर्ड लगाए जाएंगे।
मूर्तियों के बारे में जानने के लिए भी सर्वे किया जाएगा।केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सचिव गो¨वद मोहन शनिवार को कुतुबमीनार पहुंचे और दो घंटे से अधिक समय तक निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को कई निर्देश दिए हैं। उन्होंने एएसआइ के वरिष्ठ अधिकारियों व अन्य विशेषज्ञों के साथ कुतुबमीनार की सच्चाई को लेकर बातचीत की, जिसमें दो तरह के मत सामने आए। कुछ का कहना था कि कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया है तो कुछ का मानना था कि यह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय की है। इसके बाद तय हुआ कि इसका अध्ययन कराया जाए, जिससे इसके इतिहास से पर्दा उठाया जा सके।
गोविंद मोहन ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में लगीं खंडित मूर्तियों का निरीक्षण किया और उन्होंने पुरातत्वविदों से इन मूर्तियों के बारे में समझा। उन्होंने निर्देश दिया कि मूर्तियों के बारे में उनके आसपास कल्चरल नोटिस बोर्ड लगाएं, जिससे पर्यटकों को पता चल सके कि ये मूर्तियां किस की हैं और इनका इतिहास क्या है।
कुतुबमीनार से दूर दक्षिण भाग में होगी खोदाई सचिव गोविंद मोहन ने विशेषज्ञों के सुझाव पर कुतुबमीनार में खोदाई कराए जाने की बात कही। विशेषज्ञ इस बात पर सहमत थे कि इस स्थल की खोदाई कराने पर मंदिरों के अवशेष मिलने की संभावना है। खोदाई का स्थल कुतुबमीनार से दूर दक्षिण भाग में चुना जाएगा। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इसके बाद अनंगताल का भी दौरा किया और इसके इतिहास को समझा। इस दौरान एएसआइ के अतिरिक्त महानिदेशक आलोक त्रिपाठी, संयुक्त महानिदेशक नंबीराजन, उत्तरी जोन के निदेशक एन के पाठक व निदेशक स्मारक अरविन मंजुल भी रहे।
लौह स्तंभ के नोटिस बोर्ड पर जताई आपत्ति सचिव गोविंद मोहन ने मस्जिद परिसर में राजा अनंगपाल के समय के लगवाए गए राजा विक्रमादित्य के लौह स्तंभ को देखा और यह पूछा कि लौह स्तंभ का कल्चरल नोटिस बोर्ड दूर क्यों है? उन्हें बताया गया कि यह 1902 से यहीं दीवार में लगा है। अधिकारियों ने अनंगताल का भी दौरा किया और उसके इतिहास को समझा।
दैनिक जागरण का अभियान, जन की भागीदारी दैनिक जागरण ने चार दिन तक लगातार प्रकाशित खबरों में विभिन्न शोध और एएसआइ के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा के हवाले से प्रकाशित किया है कि कुतुबमीनार सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वाराहमिहिर की वेधशाला थी। किस आधार पर ये लोग दावा कर रहे हैं कि इसके बारे में भी समाचारों में जानकारी दी गई है। वेधशाला होने का दावा प्रमुख रूप से हरियाणा के झज्जर में स्थित स्वामी ओमानंद सरस्वती पुरातत्व संग्रहालय के निदेशक व पुरालिपि विशेषज्ञ आचार्य विरजानन्द दैवकरणि तथा जोधपुर में रहे प्रतिष्ठित ज्योतिषी डा. भोजराज द्विवेदी ने गहन शोध कर अपनी पुस्तक 'कुतुबमीनार: ¨हदू वेधशाला' में किया था। पुस्तक में कुतुबमीनार के वेधशाला होने को लेकर विभिन्न तर्क दिए हैं।
- मैं इस बात पर कायम हूं कि कुतुबमीनार नहीं, यह सूर्य स्तंभ है। इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं, राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने खगोलविज्ञानी वाराहमिहिर के नेतृत्व में आज से करीब 1700 साल पहले पांचवीं शताब्दी में बनवाया था। यह मीनार एक वेधशाला है जिसमें 27 नक्षत्रों की गणना के लिए दूरबीन वाले 27 स्थान हैं। अभिलेख और पुरातत्व साक्ष्य इसका आधार हैं। - धर्मवीर शर्मा, पूर्व क्षेत्रीय निदेशकभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण