Delhi: 'इलेक्ट्रिक बसें पर्यावरण के लिए अनुकूल, लेकिन तैयार करना होगा अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर'
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर लाभकारी संगठन “द अर्बन वर्क्स इंस्टीट्यूट” ने ई-बसों पर केंद्र सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं। इसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रिक बसें पर्यावरण के अनुकूल हैं लेकिन अनुरूप इनके इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार करना होगा।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर लाभकारी संगठन “द अर्बन वर्क्स इंस्टीट्यूट” ने ई-बसों पर केंद्र सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं। इसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रिक बसें पर्यावरण के अनुकूल हैं, लेकिन बसों की उपलब्धता के साथ-साथ उसी के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार करना होगा।
फेम इंडिया (फास्टर एडाप्शन एंड मैन्यूफैक्चरिंग आफ इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड व्हीकल्स इन इंडिया) के दो चरणों के तहत 6000 इलेक्ट्रिक बसों को मंजूरी दी गई है। इनमें से ज्यादातर बसों को दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद और मुंबई में उतारा गया है।
दिल्ली में 2023 के मध्य तक करीब 10,000 बसों के बेड़े का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें से एक बड़ी संख्या इलेक्ट्रिक बसों की होगी। लेकिन लोगों द्वारा सार्वजनिक परिवहन को अपनाने, एक से दूसरे छोर तक पूरी कनेक्टिविटी देने, रूटों को व्यावहारिक बनाने और बसों को लेकर संचार की सही व्यवस्था को लेकर अभी भी बहुत सवाल बने हुए हैं। इन सभी का निराकरण करने की जरूरत है।
सुझावों में कहा गया है कि ई-बसों को सार्वजनिक परिवहन के किफायती एवं स्वच्छ माध्यम के रूप में तेजी से स्वीकारा जा रहा है। यह सभी ठोस पहल हैं। लेकिन बसों को लेकर लोगों के मन में बनी छवि को बदलना जरूरी है।
इंस्टीट्यूट की संस्थापक व मैनेजिंग ट्रस्टी श्रेया गडेपल्ली कहती हैं, ‘बसों की संख्या, विशेषरूप से ई-बसों की संख्या में बढ़ोतरी वास्तव में उत्साहजनक है, मगर लोगों को बस की सवारी के लिए प्रेरित करने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास करना होगा। बसों की गैर आरामदायक और गैर भरोसेमंद की छवि को आकर्षक एवं दक्ष बसों की छवि से बदलने की जरूरत है।’
उन्होंने कहा कि पिछले साल अगस्त में अर्बन वर्क्स ने कर्नाटक और गुजरात में बसों को लेकर लोगों का समर्थन जुटाने के लिए ‘बस फार अस’ के नाम से एक अभियान चलाया था। अगले चरण में इसे अन्य राज्यों में विस्तार देने के लिए एक और राष्ट्रीय बस मिशन शुरू करने की योजना है।
गडेपल्ली ने कहा कि बसों की छवि बदलने के अलावा बसों को मिलने वाले वित्तीय सहयोग की कमी की समस्या को भी दूर करना होगा। इस मसले पर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ सांइस (आइआइएससी), बेंगलुरु की आइआइएससी सस्टेनेबल ट्रांसपोर्टेशन (आइएसटी) लैब के संयोजक प्रोफेसर आशीष वर्मा ने बताया, ‘सरकार की तरफ से सीधा वित्तीय समर्थन परिचालन एवं रखरखाव (ओएंडएम) व बसों की खरीद के साथ-साथ फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भी मिलना चाहिए।
यह सहयोग इतना होना चाहिए कि बीएमटीसी (बेंगलुरु मेट्रोपालिटन ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन) जैसी संबंधित परिवहन एजेंसियां पूरे क्षेत्र में न केवल बसों का पूरा नेटवर्क कवरेज उपलब्ध कराने में सक्षम हो सकें, बल्कि सर्विस फ्रिक्वेंसी और किराए के मामले में प्रतिस्पर्धी एवं किफायती भी बन सकें।’