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विलायती कीकर का इस कदर फैला जाल, अब इससे छुटकारा पाना है बेहद मुश्किल

दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फार एनवायरमेंटल मैनेजमेंट आफ डीग्रेडेड ईको सिस्टम के प्रमुख प्रो. सीआर बाबू ने बताया कि 423 हेक्टेयर क्षेत्र ही ऐसा है जिसे पुनस्थापित किया जाएगा। लेकिन यहां भी अभी इसी पर विचार किया जा रहा है कि इसे विलायती कीकर से मुक्ति कैसे दिलाई जाए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 11:54 AM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 11:54 AM (IST)
दिल्ली सरकार के वन विभाग ने अपने अधीन आने वाले सेंट्रल रिज के लिए एक प्लान तैयार किया है।

नई दिल्‍ली, संजीव गुप्ता। ब्रिटिश हुकूमत ने देश को आर्थिक ही नहीं, पर्यावरण की दृष्टि से भी खासा नुकसान पहुंचाया था। दिल्ली-एनसीआर तो यह नुकसान आज तक उठा रहा है। अंग्रेजों के लगाए विलायती कीकर ना सिर्फ जहरीला रसायन छोड़कर दूसरे पेड़ पौधों को पनपने से रोक रहे हैं, बल्कि भूजल को भी इससे काफी नुकसान हो रहा है।

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विलायती कीकर का जाल इस कदर व्यापक स्तर पर फैल गया है कि आज इससे छुटकारा पाना मुश्किल है। इसकी सबसे बड़ी वजह इसे कानूनी संरक्षण प्राप्त होना है। दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत सभी प्रकार के वृक्षों को सुरक्षा कवच प्राप्त है। अब इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि यह कानूनी सुरक्षा कवच अन्य वृक्षों के साथ-साथ विलायती कीकर को भी मिला हुआ है। इसलिए आमतौर पर कोई भी सरकारी विभाग व्यापक स्तर पर फैले इसके जंजाल को खत्म करने के लिए कदम नहीं उठा पाता।

प्रत्येक विभाग की अपनी प्राथमिकताएं: वर्किंग प्लान बनाकर इसके दुष्प्रभावों को कम करने के लिए काम किया जा सकता है, लेकिन विभिन्न सरकारी विभागों मेंतालमेल नहीं होने से ऐसा भी नहीं हो पाता। प्रत्येक सरकारी विभाग की प्राथमिकताएं भी अलग हैं और व्यस्तताएं भी। ऐसे में कोई एक विभाग योजना बना भी लेता है तो उसे दूसरे का सहयोग नहीं मिल पाता। कीकर के मामले में भी यही हो रहा है। समस्या पर गंभीरता से विचार किया जाए तो दिल्ली में रिज एरिया चार हिस्सों में बंटा हुआ है। नार्दर्न रिज, सदर्न रिज, सेंट्रल रिज और सदर्न-सेंट्रल रिज।

ये है योजना

  • आसपास स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे
  • सेंट्रल रिज को आसपास के पार्कों से भी जोड़ा जाएगा
  • पहले विकल्प के तहत विलायती कीकर की कैनोपी को खोलेंगे। फिर नीचे की खर पतवार हटाई जाएगी
  • जैसे जैसे स्थानीय प्रजाति के पौधे बढ़ेंगे विलायती कीकर को धूप नहीं मिलने से वे सूखते चले जाएंगे
  • झाड़ियां और घास का मैदान भी विकसित किया जाएगा। यह क्षेत्र पक्षियों और तितलियों के लिए सफारी का काम करेगा
  • दूसरा विकल्प यह है कि बहुत सारी लताएं विकसित की जाएंगी जो विलायती कीकर के ऊपर छा जाएंगी और वह मर जाएगा
  • आसपास के अलग-अलग क्षेत्र जैसे सरदार पटेल मार्ग के किनारे, जहां विलायती कीकर नहीं है, वहां स्थानीय प्रजाति के पौधों के साथ त्रिस्तरीय जंगल विकसित किया जाएगा

विभागीय पेंच है बड़ी समस्या: जब भी कभी कीकर से मुक्ति की बात चलती है तो समस्या खड़ी हो जाती है, क्योंकि रिजएरिया भी अलग-अलग विभागों की मिल्कियत है। मसलन, कुछ हिस्सा वन विभाग का है, कुछ दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का, कुछ केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) का है तो कुछ लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) का। ऐसे में विलायती कीकर हटाने के लिए सभी विभागों में सामंजस्य होना चाहिए। लेकिन असल में ऐसा है नहीं।

सेंट्रल रिज से होगी शुरुआत: हाल ही में दिल्ली सरकार के वन विभाग ने अपने अधीन आने वाले सेंट्रल रिज के लिए एक प्लान तैयार किया है। दिल्ली में कीकर हटाने की शुरुआत भी पहले चरण में यहीं से होगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फार एनवायरमेंटल मैनेजमेंट आफ डीग्रेडेड ईको सिस्टम के प्रमुख प्रो. सीआर बाबू ने बताया कि 423 हेक्टेयर क्षेत्र ही ऐसा है जिसे पुन:स्थापित किया जाएगा। लेकिन, यहां भी अभी इसी पर विचार किया जा रहा है कि इसे विलायती कीकर से मुक्ति कैसे दिलाई जाए।


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