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पुरानी दिल्ली का है अपना खास मिजाज, किसी अजूबे से कम नहीं हैं यहां की गलियां

आबादी बढ़ने के साथ जर्जर इमारतों पर नए निर्माण का बोझ बढ़ता जा रहा है। वाहनों के दबाव से गलियां और संकरी होती जा रही हैं, लेकिन चेहरे पर कोई शिकन का भाव मिले तो कहें।

By Amit MishraEdited By: Published: Sun, 10 Dec 2017 03:33 PM (IST)Updated: Sun, 10 Dec 2017 08:23 PM (IST)
पुरानी दिल्ली का है अपना खास मिजाज, किसी अजूबे से कम नहीं हैं यहां की गलियां
पुरानी दिल्ली का है अपना खास मिजाज, किसी अजूबे से कम नहीं हैं यहां की गलियां

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। पुरानी बनावट वाली दर्जी की दुकान में रेडियो से आती पुराने गीतों की मधुर आवाज। चूड़ी वालान से कुछ अंदर गली में बढ़ने पर महिलाओं का जमघट और पान में घुले हंसी ठहाके। छोटे बच्चों की धमा चौकड़ी। भट्ठी में सिंक रही नान रोटियों और सिरमाल की महक और बरामदे में बंधी बकरियों के मिमियाने की आवाजें। यह पुरानी दिल्ली का अपना खास मिजाज है, जो हर मोड़, हर गली में टकरा जाता है।

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पुरानी दिल्ली की एक अलग दुनिया है

नई दिल्ली की सरहदों से आगे दरवाजों और दीवारों के पीछे बसी पुरानी दिल्ली की एक अलग दुनिया है, जो समस्याओं से पैबंद तो है, लेकिन उसी में पीढ़ी दर पीढ़ी जीने का सलीका सीखा जाता है। इसलिए कहते तो हैं कौन जाएं दिल्ली की गलियां छोड़कर। यह अलमस्त, मस्त मिजाजी और मेहमानवाज है। यह अब भी देर से सोता और देर से जागता है। देर रात तक चौराहे, चाय की दुकानों और ढाबों पर जागते मिल जाता है।

दुआ-सलामी के साथ हंसी ठहाके

जब दिल्ली जागकर काम पर निकल चुकी होती है तब यह अलसाया सा जागता है। शेर ओ शायरी जैसे इसके रगों में है। समय के साथ बदलाव करवट ले रहा है। आबादी बढ़ने के साथ जर्जर इमारतों पर नए निर्माण का बोझ बढ़ता जा रहा है। वाहनों के दबाव से गलियां और संकरी होती जा रही हैं, लेकिन चेहरे पर कोई शिकन का भाव मिले तो कहें।

दोपहर में जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर नमाजियों के कदम बढ़ते जा रहे हैं। जैसे अपनों से मिलने का यह सही वक्त हो। दुआ-सलामी के साथ हंसी ठहाके यहां भी हैं। तो सामने मटिया महल की सड़क पर वाहनों के साथ पैदल चलने वालों का रेलमपेल है।

मुगलई व्यंजनों का स्वाद

मुगलई व्यंजनों का स्वाद चखने और पुरानी दिल्ली के जरिए भारत के असली रंगत को टटोलने विदेशी पर्यटकों का दल अभी-अभी कई रिक्शे से यहां पहुंचा है। हाथों में कैमरे लोगों पर, लटकते तारों और बंदरों पर चमकने लगते हैं। विदेशी पर्यटकों का दल इस नई दुनिया में आकर जैसे चकित है। हर कुछ अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहता है। फिर बाद में यह दृश्य देखने को मिले की न मिले। कुछ देर इधर-उधर की तस्वीरें लेने के बाद पर्यटकों का यह दल एक प्रसिद्ध मुगलई रेस्तरां की ओर रुख कर लेता है।

मुगलई रेस्तरां की लंबी श्रृंखला

मटिया महल की सड़क पर मुगलई रेस्तरां की लंबी श्रृंखला है। जहां लोग जायकों का स्वाद चखने दूर-दूर से आते हैं। रात एक बजे तक यह रेस्तरां लोगों से गुलजार रहते हैं। एक रेस्तरां में खाने वालों की लंबी लाइन लगी है। पता चला कि यहां खाना खाने के लिए कम से कम आधे घंटे का समय चाहिए। तभी बैठने के लिए जगह मिलेगी।

चाय की खुशबू

कतारों में कुछ युवा और कई अन्य विदेशी भी हैं। जिनकी बातों में पुरानी दिल्ली की चर्चा तेज है। एक युवक शायद पुरानी दिल्ली का है, जो दिल्ली के दूसरे स्थानों से आए दोस्तों को यहां का जायका चखाने ले आया है। वह बता रहा है कि यहां क्या-क्या चीजें बढ़िया मिलती हैं। चलिए इंतजार लंबा था तो आगे बढ़ गया। आगे सेवईं और सिरमाल की दुकानें, ठेले पर बिकते ब्रेड हलवा, चाय की खुशबू जैसे अपने अपने ओर खींच रहे हैं।

हर दुकान की अपनी खासियत

हर दुकान की अपनी खासियत है और अपने विशेष जायके के लिए प्रसिद्ध है। पीछे से स्कूली बच्चों का कारवां चला आ रहा है। लगता है स्कूलों की छुट्टी हो गई है। कुछ पैदल, कुछ रिक्शों में तो कुछ पिता के स्कूटर पर बैठे चले आ रहे हैं। यह अलमस्त जाम से बेपरवाह, अपने में बातचीत में मशगूल है। ऊपर लटकते तारों से आगे कुछ पतंगें उड़ती दिख जाती हैं।

बुजुर्गों के कहकशे और जिंदादिली

पतंग की डोर थामे छतों पर किशोर से लेकर बुजुर्गों के कहकशे और जिंदादिली। धूप खिली है। सामने जामा मस्जिद की गुंबद से टकराकर धूप छिटक रही है। पुरानी दिल्ली की छतों पर धूप का आनंद उठाना खास है। शरीर को जैसे सुकून पाने की लगी हो। 

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