सेल्युलर जेल देखना है तो अब अंडमान नहीं, जाएं लालकिला, दिखेगी अंग्रेजों के जुल्म की कहानी
लालकिला में प्रतीकात्मक रुप से सेल्यूलर जेल बनाया गया है। इस जेल को ठीक वैसे ही बनाने की कोशिश की गई है जिस तरह की पोर्ट ब्लेयर में आज भी यह जेल स्थित है।
नई दिल्ली [वी.के.शुक्ला]। यदि आप आजादी के दीवानों के लिए बनाई गई सबसे खतरनाक जेल यानी सेल्यूलर जेल (काला पानी) नहीं गए हैं, मगर इसे देखना चाहते हैं तो ढाई हजार किलोमीटर दूर अंडमान निकोबार जाने की अब जरूरत नहीं है। इसे आप दिल्ली में भी देख सकते हैं। जी हां लालकिला में सेल्युलर जेल के प्रतीकात्मक इस जेल को बनाया गया है।
इस जेल को ठीक उसी तरह बनाने की कोशिश की गई है जिस तरह की अंडमान-निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में आज भी यह जेल स्थित है। लालकिला के आजादी के दीवाने संग्रहालय के भूतल पर इस जेल को स्थान दिया गया है।
एक बड़े से लोहे के गेट पर जब पर्यटक सेल्यूलर जेल लिखा देखते हैं तो ठहरते हैं। उनके मन मस्तिष्क में वही सब घूमने लगता है तो उन्होंने इस जेल के बारे में किताबों में पड़ा है। पर्यटक जेल के अंदर जाते हैं। जेल के अंदर का नजारा अंग्रेजों की यातनाओं की कहानी कहता है। जेल की दीवारें मानों कह रही हों कि इन्हीं दीवारों के अंदर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बेशुमार जुल्म किए गए।
कैद कर रखे गए स्वतंत्रता सेनानियों की हथकडिय़ां, बेडिय़ां रखी हैं जिनमें उन्हें डालकर रखा जाता था। जेल में एक लालटेन है तो कोड़ा भी है जिससे स्वतंत्रता सेनानियों की बेवजह पिटाई की जाती थी। स्वतंत्रता सेनानियों को पहनने के लिए टाट के कपड़े दिए जाते थे। इसी जेल में विनायक दामोदर सावरकर को भी बहुत यातनाएं दी गईं। जेल में उन्होंनें कविता लिखी कि जहां चाह वहां राह।
जब अंग्रेजों को वीर सावरकर के लेखन प्रेम के बारे में पता चला तो उनसे कलम और कापी छीन ली गई। मगर अंग्रेजों की यातनाएं उन्हें नहीं रोक पाईं। उन्होंने दीवारों पर कोयले से कविताएं लिखीं और उन्हें याद किया। इस जेल में पहुंचकर लोग खो जाते हैं और दीवारों पर यातनाओं के बारे में लिखी गई जानकारी पढ़ कर सिहर उठते हैं।
जेल में अंग्रेजों के जुल्म की कोई सीमा नहीं थी
आजादी के दीवानों से नारियल का तेल निकलवाया जाता था। रस्सियां बनवाई जाती थीं और कई तरह का कठिन परिश्रम कराया जाता था। उन्हें जानवरों से बदतर खाना मिलता था और कोई चिकित्सीय सुविधा नहीं मिलती थी। तब भी यदि कोई आजाद उठाता था तो उसके साथ अमानवीय व्यवहार होता था। कई भारतीयों को हाथ ऊपर कर हथकडिय़ों से बांधा जाता था। कई कई दिनों तक खड़ा रखा जाता था।
सेल्यूलर जेल में भूख हड़ताल
भूख हड़ताल द्वारा अंग्रेजों का विरोध करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को जबरदस्ती खाना खिलाकर मार डाला जाता था। अपने अमानवीय व्यवहार को छुपाने के लिए मेडिकल प्रमाणपत्र में अंग्रेज डाक्टर मौत का सही कारण नहीं लिखते थे। 1933 में सेल्यूलर जेल में भूख हड़ताल हुई थी। तीन स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हुई थी। जिसमें महावीर ङ्क्षसह की मौत का कारण शॉक लिखा गया था, जबकि मोहित मित्र और मोहन किशोर की मौत का कारण निमोनिया बताया गया था।
क्या है सेल्यूलर जेल का इतिहास?
यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी। जो कि दिल्ली से ढाई हजार किलोमीटर दूर है। यह उस समय काला पानी के नाम से कुख्यात थी।
अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को यहां कैद किया गया। अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं।