भारत में हर तीसरी लड़की को सार्वजनिक स्थानों पर शारीरिक शोषण का डर: सर्वे
25 फीसद से अधिक लड़कियों को लगता है कि अगर वे सार्वजनिक स्थानों पर जाएंगीं तो उनके साथ शारीरिक शोषण अथवा दुष्कर्म भी हो सकता है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। देश में एक तिहाई लड़कियों को घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर उत्पीड़न का अंदेशा रहता है। 25 फीसद से अधिक लड़कियों को लगता है कि अगर वे सार्वजनिक स्थानों पर जाएंगीं तो उनके साथ शारीरिक शोषण अथवा दुष्कर्म भी हो सकता है। हर तीन में से एक किशोरी को उसका शरीर छूए जाने व घूरे जाने का अंदेशा होता है।
रिपोर्ट में कही गई बात
गैर सरकारी संस्था सेव द चिल्ड्रेन की नई रिपोर्ट विंग्स 2018 में इस तरह की बात कही गई हैं। वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स-ए स्टडी ऑन द परसेप्शन ऑफ गर्ल्स सेफ्टी इन पब्लिक प्लेसेस की रिपोर्ट को मंगलवार को इंडिया हैबिटेट सेंटर में आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जारी किया।
कई राज्यों में किया गया सर्वेक्षण
संस्था ने दावा किया है कि भारत के 4000 से अधिक किशोरों व किशोरियों से उनकी राय जानने की कोशिश की गई। 800 अभिभावकों की राय जानने की भी कोशिश की गई। यह सर्वेक्षण दिल्ली-एनसीआर, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश के 12 जिलों, 30 शहरों व 84 गांवों में किया गया।
सुधार के लिए 30 अनुशंसाएं
शोध के दौरान मिली टिप्पणियों के आधार पर सार्वजनिक स्थलों पर लड़कियों की सुरक्षा में सुधार के लिए 30 अनुशंसाएं की गई हैं। जिनमें पुलिस सुधार, पुलिस में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व, सार्वजनिक स्थानों पर रोशनी की व्यवस्था, सामुदायिक सहयोग विधियों का विकास जैसे स्वसहायता समूह, बाल समूह और माता समूह, उबर व ओला समेत सभी चालकों के लिए लैंगिक प्रशिक्षण और राजनीति में लड़कियों की सुरक्षा के लिए अधिक सक्रियता शामिल हैं।
सुरक्षा है अहम
इस अवसर पर पुरी ने कहा कि आर्थिक प्रगति से महिलाओं को मिलने वाले अवसर बढ़ते हैं। हालांकि व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता इस प्रगति में बाधा बनती है। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि समावेशी और समानता वाले समाज के लिए महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति उनकी चिंता को सर्वाधिक महत्व दिया जाना चाहिए। भारत सरकार पॉक्सो एक्ट 2012 और क्रिमिनल एमेंडमेंट्स एक्ट 2013 जैसे कानून लाई है, लेकिन लड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी परिवारों व समुदायों की भी है।
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