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4डी एस्पाई एंजियोग्राफी तकनीक से सर्जरी कर उत्तर प्रदेश के बच्चे को दी नई जिंदगी

बच्चा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला है। आग में झुलसने और इलाज में देरी के कारण बच्चे के चेहरे की ठुड्डी पेट से चिपक गई थी।

By Edited By: Published: Sat, 26 May 2018 12:16 AM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 03:47 PM (IST)
4डी एस्पाई एंजियोग्राफी तकनीक से सर्जरी कर उत्तर प्रदेश के बच्चे को दी नई जिंदगी
4डी एस्पाई एंजियोग्राफी तकनीक से सर्जरी कर उत्तर प्रदेश के बच्चे को दी नई जिंदगी

नई दिल्ली (जेएनएन)। झोलाछाप डॉक्टर के चक्कर में पड़कर आगजनी की घटना में करीब 40 फीसद तक झुलस चुके आठ वर्षीय बच्चे की जिंदगी खतरे में पड़ गई थी। वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला है। आग में झुलसने और इलाज में देरी के कारण बच्चे के चेहरे की ठुड्डी पेट से चिपक गई थी।

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इस वजह से बच्चे का मुंह हमेशा खुला रहता था। उसका खाना पीना भी मुश्किल हो गया। बाद में गैर सरकारी संगठन और व्यवसायी की मदद से वह मैक्स अस्पताल में पहुंचा, जहां प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने 4डी एस्पाई एंजियोग्राफी तकनीक से रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया। हालांकि, उसे बाद में एक और सर्जरी से गुजरना पड़ सकता है।

बच्चे के पिता मुकेश ने बताया कि घटना के वक्त बच्चे की उम्र चार साल थी। खेलते हुए माचिस की तिल्ली से उसके कपड़े में आग पकड़ लिया। इस वजह से उसके कमर के ऊपर का हिस्सा झुलस गया। इलाज के दौरान पता चला कि बिजनौर के डॉक्टर के पास बच्चे को ले गए। 18 महीने तक उस डॉक्टर की सलाह पर पट्टी बदलते रहे पर घाव बढ़ता चला गया।

मैक्स अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. सुनील चौधरी ने कहा कि घटना के करीब साढ़े तीन साल बाद बच्चे को इलाज के लिए यहां चिल्ड्रेन बर्न फाउंडेशन की मदद से लाया गया। बच्चे की ठुड्डी पेट से चिपके होने के कारण वह हमेशा नीचे जमीन की तरफ देखने को मजबूर था। नौ घंटे की जटिल सर्जरी में लोकल एनेस्थिसिया देकर पेट से चेहरे को अलग किया गया।

इसके बाद उसके जांघ से त्वचा लेकर उसकी गर्दन बनाई गई। इसके अलावा सीने पर भी त्वचा ग्राफ्ट की गई। उन्होंने बताया कि बच्चों की नसें बहुत पतली होती हैं। इसलिए उन्हें जोड़ पाना आसान नहीं होता है।

नसों को आपस में जोड़ने के बाद नेक्सजेन 4डी एस्पाई एंजियोग्राफी मशीन से दवा देकर यह देखा गया कि नसों में रक्त संचार ठीक हो पाएगा या नहीं। इस मशीन की कीमत डेढ़ करोड़ है। वर्तमान में देश के किसी अन्य अस्पताल में यह मशीन उपलब्ध नहीं है।

त्वचा या ऊपरी अंगों की रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के वक्त उत्तक प्रत्यारोपण के दौरान नसों को जोड़ने पर इस तकनीक से ऑपरेशन टेबल पर ही यह पता चल जाता है कि नसों में रक्त संचार ठीक होगा या नहीं। रक्च संचार अवरुद्ध होने पर उसे तुरंत ठीक किया जा सकता है। इस कारण सर्जरी असफल होने की आशंका नहीं रहती। इस तकनीक से 250 मरीजों की सर्जरी हो चुकी है।


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