दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में आज बंद रहेंगे ओपीडी, लाखों मरीजों की बढ़ेगी मुश्किल
दिल्ली में बृहस्पतिवार को 15 हजार रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर रहेंगे। हड़ताल के दौरान सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद रहेंगी।
नई दिल्ली, जेएनएन। नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) बिल के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) की ओर से बुधवार को हड़ताल की घोषणा की गई थी, लेकिन इसका राजधानी के सरकारी अस्पतालों में कोई असर नहीं हुआ। हालांकि बृहस्पतिवार से दिल्लीवासियों की मुसीबत बढ़ सकती है। दरअसल रेजिडेंट डॉक्टरों के तीन प्रमुख एसोसिएशनों ने बृहस्पतिवार से हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी है।
तीनों एसोसिएशनों की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि अगर राज्यसभा में मौजूदा स्वरूप में ही बिल पारित हुआ तो अनिश्चितकालीन और देशव्यापी हड़ताल होगी। दिल्ली के सभी अस्पतालों में करीब 15 हजार रेजिडेंट डॉक्टर हैं। वहीं केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और निगम के अस्पतालों में प्रतिदिन एक लाख से अधिक मरीज ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचते हैं। रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से मरीजों को परेशानी हो सकती है।
एनएमसी बिल राज्यसभा में होगा पेश
गौरतलब है कि बृहस्पतिवार को ही एनएमसी बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा। हड़ताल की घोषणा के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी लगातार डॉक्टरों से बातचीत कर रहे हैं। बुधवार को रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए), एम्स, यूनाइटेड रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (यूआरडीए) और फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) की संयुक्त बैठक हुई। इसमें हड़ताल की घोषणा की गई है।
सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद रहेंगी
हड़ताल के दौरान सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद रहेंगी। ऑपरेशन नहीं होंगे। सबसे ज्यादा दिक्कत एम्स, सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया, (आरएमएल), लेडी हार्डिग, एलएनजेपी, जीटीबी आदि अस्पतालों में हो सकती है। यहां मरीजों की भीड़ सबसे ज्यादा होती है। अकेले एम्स में दस हजार, सफदरजंग में सात से आठ हजार, आरएमएल में छह से सात हजार, एलएनजेपी में आठ से नौ हजार और जीटीबी अस्पताल में सात से आठ हजार मरीज प्रतिदिन ओपीडी में आते हैं।
अनुमान है कि एक लाख से ज्यादा मरीज हड़ताल की वजह से प्रभावित होंगे। आरडीए, एम्स के अध्यक्ष डॉ. अमरिंदर सिंह ने कहा कि जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी, तब तक हड़ताल जारी रहेगी। वहीं फोर्डा के अध्यक्ष डॉ. सुमेध ने कहा कि हम किसी भी सूरत में मौजूदा स्वरूप में इस बिल को पास नहीं होने देंगे। इससे चिकित्सक वर्ग पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ेगा। सरकार इस बिल के जरिये ऐसे लोगों को दवा लिखने यानी इलाज करने का लाइसेंस दे रही है, जिन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई तक नहीं की है।
निजी अस्पतालों में नहीं होगी हड़ताल
इस बीच दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) अपने रुख पर कायम है। डीएमए ने किसी तरह की हड़ताल का समर्थन नहीं किया है। डीएमए के अध्यक्ष डॉ. गिरीश त्यागी का कहना है कि हमारी तरफ से हड़ताल नहीं है। निजी अस्पतालों में मरीजों का इलाज रोजाना की तरह होगा।
क्या है एनएमसी बिल?
अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से संबंधित काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) के जिम्मे था। लेकिन संसद से पास होने के बाद एनएमसी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह ले लेगा। कई प्रावधानों पर है डॉक्टरों को आपत्ति बिल के तहत सामुदायिक केंद्रों में आयुष, डेंटल या नर्सिंग कोर्स करने के बाद काम कर रहे कर्मचारियों को प्रशिक्षण के बाद लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवा लिखने और इलाज करने का कानूनी अधिकार दिया जा रहा है, जिसका डॉक्टर विरोध कर रहे हैं।
इसके अलावा देश के निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रबंधक/एनआरआइ कोटा की सीटें 50 फीसद की सीमा से भी बढ़ाने का प्रस्ताव शामिल है। इसका भी विरोध है। डॉक्टरों का कहना है कि इस प्रस्ताव से देश के गरीब तबके के बच्चों के लिए डॉक्टर बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा क्योंकि निजी मेडिकल कॉलेजों में मोटी फीस भरना सबके लिए संभव नहीं होगा। इसी तरह डॉक्टर एमबीबीएस के आखिरी साल की परीक्षा को नेशनल एक्जिट टेस्ट के रूप में आयोजित करने के प्रावधान के खिलाफ भी हैं।
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