ग्रेटर नोएडा हादसाः मलबे से 9 शव निकाले, 40 से अधिक के दबे होने की आशंका
सात मृतकों की अब तक पहचान हो चुकी है। इसमें से चार एक ही परिवार के हैं। राहत व बचाव कार्य जारी है। अब तक पांच नामजद आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
नोएडा (जेएनएन)। दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में 17 जुलाई की रात करीब साढ़े नौ बजे दो बहुमंजिला रिहायशी इमारतें गिरने से मरने वालों की संख्या 9 पहुंच चुकी है। इनमें से सात लोगों की पहचान हो चुकी है, जबकि दो अब भी अज्ञात हैं। बचाव टीम ने नौवां शव बृहस्पतिवार दोपहर मलबे से निकाला है। उसकी पहचान फैजाबाद निवासी नौशाद अहमद के रूप में हुई है। सैकड़ों की संख्या में बचाव कर्मी अब भी मलबे में दबे लोगों को निकालने में जुटे हैं। घटनास्थल के आसपास रहने वाले लोगों ने आशंका जताई है कि मलबे में दबे लोगों की संख्या लगभग 50 तक हो सकती है। मामले में पुलिस अब तक पांच नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।
शाहबेरी गांव ग्रेटर नोएडा वेस्ट (नोएडा एक्सटेंशन) में स्थित है। यहां लाखों की संख्या में बिल्डर फ्लैट बन रहे हैं। ऐसे में कुछ कोलोनाइजर आसपास के गांवों में सरकारी जमीनों पर कब्जा कर या आबादी की जमीनों पर भी अवैध बहुमंजिला इमारत खड़ी कर रहे हैं। वैध बिल्डर फ्लैट के मुकाबले इन अवैध इमारतों में फ्लैट की कीमत काफी कम होती है। ऐसे में घर की तलाश कर रहे लोग आसानी से कोलोनाइजरों को चंगुल में फंस जाते हैं। फ्लैट बेचते वक्त उन्हें ये नहीं बताया जाता है कि बिल्डिंग अवैध है या गांव की जमीन पर है। फ्लैट की आसानी से रजिस्ट्री हो जाती है और उस पर बैंकों से लोन भी मिल जाता है, ऐसे में खरीदारों को भी लंबे समय तक बिल्डिंग के अवैध होने का पता नहीं चलता है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा के गांवों में बड़े पैमाने पर इस तरह के अवैध फ्लैट का कारोबार फल-फूल रहा है। शाहबेरी गांव में मंगलवार रात हुआ हादसा इसी का नतीजा है।
हादसे के बाद से पूरा सरकारी अमला और मशीनरी मौके पर राहत व बचाव कार्य में जुटी है। बृहस्पतिवार को मेरठ कमिश्नर अनीता मेश्रम ने घटना स्थल का मुआयना किया। उन्होंने कहा कि गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी बीएन सिंह द्वारा पहले ही एडीएम प्रशासन कुमार विनीत को हादसे की न्यायिक जांच सौंपी जा चुकी है। वह 15 दिन में जांच रिपोर्ट देंगे। उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही है। इससे पहले बुधवार सुबह एनडीआरएफ के महानिदेशक (डीजी) संजय कुमार, मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार और आइजी राम कुमार ने भी घटना स्थल का निरीक्षण कर बचाव टीम को आवश्यक निर्देश दिए थे।
शुरूआती जांच और आसपास के लोगों द्वारा दी जा गई जानकारी के आधार पर पुलिस-प्रशासन फिलहाल हादसे की वजह दोनों इमारतों के निर्माण में प्रयोग की गई घटिया निर्माण सामग्री को मान रहा है। दोनों इमारते एक ही परिसर में आसपास बनी थीं। एक का निर्माण पूरा हो चुका था, जबकि दूसरी का निर्माण अंतिम चरण में था। बताया जा रहा है कि दोनों इमारतों में कुल 12 परिवार के लगभग 50 लोग रह रहे थे। रात में हादसा होने की वजह से उस वक्त सभी लोग अपने-अपने घर में ही थे। हादसा इतनी जल्दी हुआ कि इनमें से किसी को भागने का मौका नहीं मिला। दोनों इमारतों तेज आवाज के साथ चंद मिनटों में मलबे में तब्दील हो गई थीं। मलबे से अब तक 9 शव निकाले जा चुके हैं लेकिन अभी कई और लोगों के मलबे में फंसे होने की आशंका है।
धीमी गति से मलबा हटाने पर आक्रोश
एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीमें खोजी कुत्तों और विशेष उपकरणों के जरिए मलबे में लगातार जिंदा लोगों की तलाश का प्रयास कर रहे हैं। साथ ही मलबा हटाने का भी काम जारी है। उम्मीद है कि पूरा मलबा हटाने में अभी एक दिन का वक्त और लग सकता है। मलबा हटाने का कार्य काफी एहतियात से किया जा रहा है, ताकि कोई मलबे में जिंदा हो तो उसकी जान को खतरा न पहुंचे। ऐसे में काम की रफ्तार काफी धीमी है। इससे मलबे में दबे लोगों के परिजन और जानकारों में आक्रोश है। उनका कहना है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी राहत व बचाव कार्य काफी धीमी गति से चल रहा है।
सीएम स्तर पर भी कई गई थी अवैध निर्माण की शिकायत
आसपास के लोगों ने बताया कि उनके द्वारा स्थानीय अधिकारियों और सीएम पोर्टल पर शाहबेरी गांव में धड़ल्ले से चल रहे अवैध निर्माण की शिकायत कई बार की जा चुकी है। इसमें हादसे का शिकार होने वाली दोनों इमारतों के निर्माण में घटिया निर्माण सामग्री प्रयोग होने की भी शिकायत शामिल थी। बताया जा रहा है कि कोलोनाइजर में महज तीन माह में एक छह मंजिला बिल्डिंग खड़ी कर दी थी। इसमें दो-दो कमरों के 20 फ्लैट बनाए गए थे।
इनके शवों की हुई पहचान
हादसे में अब तक 9 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। इसमें से सात लोगों के शवों की पहचान हो चुकी है। जिन शवों की पहचान हई है उसमें फैजाबाद शमशाद (25), नौशाद (23), पश्चिम बंगाल के रंजीत भीमाली (30), मैनपुरी की प्रियंका त्रिवेदी (26), राजकुमारी (50), पंखुड़ी (14 माह) और शिव त्रिवेदी (28) शामिल हैं। प्रियंका, राजकुमारी, पंखुड़ी और शिव एक ही परिवार के हैं। शमशाद व नौशाद भी रिश्तेदार बताए जा रहे हैं। पुलिस दो अन्य शवों की भी पहचान करने का प्रयास कर रही है।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के दो निलंबित, एक का ट्रांसफर
हादसे के बाद शासन, ग्रेटर नोएडा वेस्ट सर्किल का काम देख रहे प्राधिकरण के प्रबंधक वीपी सिंह व सहायक प्रबंधक अख्तर अब्बास जैदी को निलंबित कर चुका है। वहीं, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अतिक्रमण निरोधक दस्ते की प्रमुख ओएसडी विभा चहल का तबादला कर दिया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया है अवैध निर्माण करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
सपनों की कब्रगाह बनतीं इमारतें
रात के तीन बजे थे। हर तरफ खामोशी थी। शाहबेरी में छह मंजिला इमारत जमींदोज थी। जेसीबी मशीन मलबा हटा रही थी। टूटे हुए पिलर पर टिका एक क्षतिग्रस्त फ्लैट। उसके नीचे लकड़ी की आलमारी और उससे झांकते लाल और पीले रंग के दो दुपट्टे। मलबे में दबा तकिया और इंटों से दबी साड़ी, जिसका कुछ हिस्सा हवा के झोंके से हिल रहा था। लग रहा था कि मानो अंदर चंद सांसे चल रहीं हैं। मौके पर आइजी साहब मौजूद हैं और एनडीआरएफ का दस्ता बचाव अभियान में मशगूल है।
इस बीच, एक पुलिसकर्मी मशीन को रुकवाकर मलबे के ऊपर जाता है और इस उम्मीद के साथ टार्च की रोशनी के सहारे अंदर कुछ टटोलता है कि शायद कोई जिंदगी मिल जाए, कोई जिंदा मिल जाए। हालांकि कोई नजर नहीं आता है। अंदर लोगों के फंसे होने पर मलबा हटाने में सावधानी बरती जा रही है। इस गहमागहमी के बीच आसपास के भयाक्रांत और आशंकित बाशिंदे टकटकी लगाए पूरे बचाव अभियान को देख रहे हैं। आशंका यह कि न जाने खुद उनके आशियाने की नींव कितनी ऊथली है, कितनी कमजोर है।
मलबे के सामने खड़ी एक महिला से पूछा कि अंदर कितने परिवार होंगे। इस पर वह कहती है कि भैया हमें नहीं पता, हम तो लेबर हैं, यहां काम करते हैं। उसकी बातों से लग रहा था कि शायद उसे कुछ-कुछ मालूम तो है, लेकिन बताने से डर रही है। एक युवक ने बताया कि आठ से नौ परिवार होंगे। एक परिवार ने तो आज ही हवन कर गृह प्रवेश किया था। उन्हें क्या पता था कि यह इमारत उनकी जान ही ले लेगी। तभी एनडीआरएफ का एक जवान कहता है, भइया कुछ कहा नहीं जा सकता है, लोग बच भी जाते हैं। अभी त्रिपुरा से लौटा हूं, वहां बाढ़ में लोग फंसे थे। मैंने तो ऐसा भी देखा है कि तीन दिन तक मलबे में दबे रहने के बावजूद लोग जिंदा बाहर निकल आए हैं। क्या पता कोई ऐसे स्पेस में आ गया हो कि उसके ऊपर मलबा गिरा ही न हो। इस बीच कुछ जवान ऊपर से मलबा हटाते हैं, फावड़ा, बेलचा उनके हाथों में है, जहां तक मुमकिन था, हाथ से ईंट-पत्थर हटाते हैं। मलबे में तब्दील हुई इमारतों में नंगी ईंटें दिखती हैं और सीमेंट-मसाले के नाम पर महज भुरभुरा रेत, ईंटों पर उनके कोई निशां नहीं। एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि यह मकान नहीं बालू की भीत थी। देखिए न एक-एक ईंट बिखरी हुईं हैं। मौके के हालात, इस पुलिस अफसर की टिप्पणी कुल मिलाकर यही बता रही थी कि पैसे कमाने के फेर में प्राइवेट बिल्डर इमारतें नहीं, बल्कि जिंदगी की कब्रगाह तैयार कर रहे हैं। इस बीच, भोर हो चुकी थी, क्षितिज से उजाला ताक-झांक करने लगा था, मौत के मलबे की ओर लोगों के कदम बढऩे लगे थे, इस उम्मीद से कि अंदर शायद कोई जिंदा बचा हो।
(शाहबेरी गांव से सुधीर कुमार पांडेय)