32 साल में कन्नौज से सांसद बनीं Sheila Dikshit और राजीव गांधी ने बनाया था मंत्री
शीला दीक्षित पर भरोसा जताते हुए 32 साल की राजीव गांधी मंत्रिमंडल में उन्हें पहले संसदीय कार्य राज्य मंत्री और फिर पीएमओ में राज्य मंत्री बनाया गया।
नई दिल्ली, जेएनएन। कांग्रेस की कद्दावर नेता और दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं Sheila Dikshit के राजनीतिक सफर की शुरुआत यूं तो 1970 के दशक में हुई थी, लेकिन 1980 के दशक में उन्होंने पहली बार संसदीय राजनीति का रुख किया और 1984 में उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा सीट से कांग्रेस की प्रतिनिधि चुनकर आईं। इसके बाद उनका उत्तर प्रदेश से भी गहरा संबंध बन गया।
सांसद के तौर पर उन्होंने लोक सभा की एस्टीमेट्स समिति के साथ कार्य किया। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की चालीसवीं वर्षगांठ की कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की थी। 1984 से 1989 तक सांसद रहने के दौरान वह यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन स्टेटस ऑफ वीमेन में भारत की प्रतिनिधि रहीं।
उन पर भरोसा जताते हुए 32 साल की राजीव गांधी मंत्रिमंडल में उन्हें पहले संसदीय कार्य राज्य मंत्री और फिर पीएमओ में राज्य मंत्री बनाया गया। उन्होंने अपने कामकाज से सभी को प्रभावित किया। यही कारण था कि गांधी परिवार से उनका पारिवारिक संबंध बन गया।
गांधी परिवार से था गहरा नाता
शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित एक समाजसेवी थे और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भाग लिया था। बाद में वह इंदिरा गांधी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। शीला दीक्षित ने अपने ससुर से राजनीति के गुर सीखे थे। शीला दीक्षित की प्रशासनिक क्षमता को देखते हुए इंदिरा गांधी ने संयुक्त राष्ट्र कमिशन के दल का सदस्य नामित किया। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत यही से हुई।
अपनी आत्मकथा सिटीजन दिल्ली: माई टाइम्स, माई लाइफ (CITIZEN DELHI: MY TIMES, MY LIFE) में गांधी परिवार से नजदीकियों के बारे में शीला दीक्षित ने बताया कि एक दिन उमाशंकर दीक्षित ने इंदिरा गांधी को खाने पर बुलाया और शीला ने उन्हें भोजन के बाद गर्मागर्म जलेबियों के साथ वनीला आइस क्रीम परोसी गईं।
शीला ने बताया कि इंदिराजी को यह प्रयोग बहुत पसंद आया। अगले ही दिन उन्होंने अपने रसोइए को इसकी विधि जानने के लिए हमारे पास भेजा। उसके बाद कई बार हमने खाने के बाद मीठे में यही परोसा गया, लेकिन इंदिरा गांधी के देहांत के बाद मैंने वो सर्व करना बंद कर दिया।
सबसे लंबे वक्त तक रहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री
1998 में शीला दीक्षित दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं। 1998 में ही लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं, मगर जीत नहीं पाईं। इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ना छोड़ दिया और दिल्ली की गद्दी की ओर देखना शुरू कर दिया।
महंगाई खासकर प्याज के मुद्दे पर भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बाद वह दिल्ली की सीएम बनीं। एक बार क्या मुख्यमंत्री रहीं उसके बाद लगातार 2013 तक सत्ता में बनी रहीं। इसकी वजह उनका दिल्ली के लगभग सभी इलाकों पर विकास के मामले में फोकस करना रहा।
1998 और 2003 में गोल मार्केट और 2008 में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व किया। राजधानी के रंग- रूप बदलने को लेकर उनकी काफी प्रशंसा हुई। यह पूछे जाने पर कि 15 साल के उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है, शीला दीक्षित का कहना था कि पहला 'मेट्रो', दूसरा 'सीएनजी' और तीसरा दिल्ली की हरियाली, स्कूलों और अस्पतालों के लिए काम करना।
उन्होंने कहा कि इन सबने दिल्ली के लोगों पर बहुत असर डाला। मैंने पहली बार लड़कियों को स्कूल में लाने के लिए उन्हें 'सेनेटरी नैपकिन' बंटवाए। मैंने दिल्ली में कई विश्वविद्यालय बनवाए और 'ट्रिपिल आईआईटी' भी खोली।