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School Reopen In Delhi Ncr: उठो लाल, अब आलस छोड़ो स्कूल जाना है निद्रा तोड़ो

कितनी है निजी और सरकारी स्कूलों की संख्या कितने हैं छात्र कितना हो रहा है इनमें तय मानकों का पालन... कोरोना संक्रमण के बाद अब अलग तरह से जब स्कूल खुलने जा रहे हैं तो उनके लिए क्या हैं मानक। जानेंगे आंकड़ों की जुबानी

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 12:00 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 12:00 PM (IST)
School Reopen In Delhi Ncr: उठो लाल, अब आलस छोड़ो स्कूल जाना है निद्रा तोड़ो
अभिभावकों को आश्वस्त करने के लिए क्या किए जाएं उपाय?

नई दिल्‍ली जेएनएन। उठो लाल, अब आंखें खोलो...इन पंक्तियों को जरा आज के परिवेश में देखें... उठो लाल, अब आलस छोड़ो, स्कूल जाना है निद्रा तोड़ो। हालांकि, बच्चे तो स्कूल जाने को उतावले हैं। घरों में चली आनलाइन शिक्षा में उनका टाइम टेबल भी सख्ती के साथ बना रहा, लेकिन दिनचर्या निश्चित ही बदल गई है। इसलिए छात्रों को स्कूल जाने के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से तैयार करना होगा। देखा जाए तो अभिभावक अब भी कोरोना के भय में हैं। उन्हें आशंका है स्कूलों में कोरोना के नियमों का सख्ती से पालन नहीं होगा। पहले ही कक्षाओं में क्षमता से दोगुने बच्चों को बैठाया जाता है।

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अब कोरोना के नियमानुसार तो एक कक्षा में 15 छात्रों की ही अनुमति है। इसके अलावा स्कूल को सैनिटाइज कराना, शारीरिक दूरी के साथ स्कूल में रहें छात्र, यह सब भी बेहद जरूरी है। 18 फरवरी से स्कूलों में नर्सरी दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो रही है, एक अप्रैल से स्कूलों में नया सत्र भी शुरू होना है। स्कूल का खुलना सुखद तो है, पर कोरोना अभी भी खत्म नहीं हुआ है।

एक जरा सी चूक कब आघात कर दे, कहा नहीं जा सकता। ऐसे में छात्रों को सुरक्षित माहौल में शिक्षा प्रदान करना शिक्षकों और स्कूल प्रबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण है, तो अभिभावकों के लिए भी परेशानी का सबब है। इन परिस्थितियों में शिक्षा क्षेत्र को किस तरह सामान्य बनाया जाए? कैसे नियमों का पालन हो ताकि छात्रों का भविष्य प्रभावित न हो, अभिभावकों को आश्वस्त करने के लिए क्या किए जाएं उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :

मानक तो सिर्फ कागजी: स्कूल सरकारी हो या निजी, शिक्षक और छात्रों के अनुपात को लेकर हर जगह मानक तय हैं। एक कक्षा में जरूरत से ज्यादा छात्र शिक्षकों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं तो छात्रों को भी कई बार शिक्षक से सवाल-जवाब करने तक का अवसर नहीं मिल पाता। दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों में तय मानक के अनुपालन में लापरवाही का आलम यह है कि सरकारी में औसतन 60 तो निजी में 45 छात्र एक कक्षा में बैठने को मजबूर हैं। 


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